शुआट्स वैज्ञानिकों ने विकसित की अलसी की नई किस्म

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अवधनामा संवाददाता 

 प्रयागराज। सैम हिग्गिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (शुआट्स), प्रयागराज के वैज्ञानिकों ने 17 वर्षों के गहन अनुसंधान के उपरान्त अलसी की नई किस्म विकसित की है जिसे भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है।
निदेशक शोध डा. शैलेष मारकर ने बताया कि प्रदेश में अलसी की औसत उत्पादकता 630 किग्रा/हे0 है जो राष्ट्रीय उत्पादकता 644 किग्रा/हे0 से कम है। रबी के मौसम में उगायी जाने वाली अलसी, दूसरी प्रमुख तिलहनी फसल है जिसको सिंचित एवं असिंचित दोनों ही अवस्थाओं में उगाया जा सकता है। साथ ही अलसी की फसल में गेहूँ तथा अन्य रबी फसलों की तुलना में कम खाद-पानी तथा रखरखाव की आवश्यकता होती है। उक्त को ध्यान में रखते हुए कुलपति मोस्ट रेव्ह. प्रो0 राजेन्द्र बी. लाल के मार्गनिर्देशन में वैज्ञानिकों ने वर्ष 2005 मंे अनुसंधान कार्य प्रारम्भ किया और 17 वर्षों के अनुसंधान के बाद अलसी की नई किस्म शुआट्स अलसी-2 ¼SHA-2½  विकसित की जिसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गैजेट नोटिफिकेशन के माध्यम से प्रदेश के किसानों के लिये अधिसूचित किया गया है।
डा. शैलेष मारकर ने बताया कि अलसी-2 की औसत उत्पादकता, प्रदेश के 10  RATDS     में  लगातार तीन वर्षों के परीक्षण में 1110 किग्रा/हे0 पायी गई। इस किस्म में तेल की मात्रा 37.40 प्रतिशत है जो कि जोनल चेक शेखर से 34.0 प्रतिशत से अधिक है। यह किस्म पाउडरी मिल्डयु एवं रस्ट के प्रति अवरोधी तथा विल्ट एवं बड फ्लाई के लिये मध्यम अवरोधी पायी गयी है यह किस्म 123.125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिसमें नीले रंग के फूल आते हैं।
डा. मारकर ने शुआट्स अलसी-2 की विशेषता बताते हुए कहा कि इसमें 53ण्16 प्रतिशत लिनोलेनिक अम्ल पाया गया है जोकि ओमेगा-3 सस्लेषण के प्रीकरसर के रूप में कार्य करता है। इसके सेवन से रिमैटिक अर्थीरिटीस, स्केलेरोसिस इत्यादि में अत्यधिक फायदा होता है। यह रक्त में एच.डी.एल. की मात्रा को बढ़ाता है जोकि हृदयघात को रोकने में अहम भूमिका निभाता है।
आईसीएआर के एडीजी डा. संजीव गुप्ता, एडीजी डा. पी.के. यादव, पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ के कुलपति की उपस्थिति में आईसीएआर के उपमहानिदेशक डा. टी.आर. शर्मा ने अलसी की इस नई किस्म को विकसित करने के लिये डा. शैलेष मारकर व उनकी टीम को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
डा. मारकर ने इस अनुसंधान में सहयोग देने के लिये डा विक्रम सिंह, डा. सुनील जकरिया, डा. प्रशान्त एन्थोनी, इन्द्रानील भट्ाचार्य व समस्त शोध सहयोगियों का आभार जताया।

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