अंतरराष्ट्रीय रेणुकाजी मेला 11 नवंबर से, मां-पुत्र का ऐतिहासिक मिलन होगा

0
39

हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक धार्मिक स्थल श्री रेणुकाजी में आज से शुरू होने वाले रेणुका उत्सव का आगाज होगा। यह उत्सव 15 नवंबर तक चलेगा और इस दौरान मां रेणुकाजी का अपने पुत्र भगवान परशुराम के साथ भव्य मिलन होगा। हजारों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक मिलन को देखने के लिए उत्सुक हैं।

इस साल के अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुकाजी मेले में देवताओं की चार पालकियां हिस्सा लेंगी, जिनमें जामू, कटाह शीतला, महासू और मंडलाहां स्थित भगवान परशुराम की पालकियां ददाहू बाजार से शोभायात्रा के रूप में निकाली जाएंगी। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू 11 नवंबर को इस उत्सव का विधिवत शुभारंभ करेंगे और परंपरागत रूप से देव पालकियों को कंधा देकर शोभायात्रा की अगवानी करेंगे। मान्यता के अनुसार इस शोभायात्रा के दौरान देवताओं की पालकी के दर्शन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

उत्सव के शुभारंभ के बाद त्रिवेणी घाट के संगम तट पर मां और पुत्र का ऐतिहासिक मिलन होगा। इस दिन के बाद रात को रेणुकाजी तीर्थ में रात्रि जागरण की परंपरा भी जारी रहेगी।

सदियों पुरानी इस परंपरा को सिरमौर राज परिवार आज भी निभाता है। राज परिवार के वंशज कंवर अजय बहादुर सिंह अपने परिवार के साथ देवताओं की पालकी को कंधे पर उठाकर पंडाल तक लाते हैं। कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि भगवान परशुराम उनके कुल के देवता हैं और वह इस परंपरा को हर हालत में निभाते हैं।

मेले की शुरुआत का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के घर भगवान परशुराम का जन्म हुआ। परशुराम ने अपनी मां रेणुका को सहस्त्रबाहू नामक अत्याचारी शासक से बचाया और पृथ्वी को पापमुक्त किया। यह मिलन हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी को होता है और मेला कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।

इस मेले में हजारों श्रद्धालु स्नान कर पाप मुक्ति प्राप्त करते हैं और भगवान परशुराम एवं मां रेणुकाजी की पूजा करते हैं।

मेले के मुख्य आकर्षण:

देवताओं की शोभायात्रा और पालकी दर्शनमां-पुत्र का ऐतिहासिक मिलनरात्रि जागरण और धार्मिक अनुष्ठानसिरमौर राज परिवार की परंपराओं का निर्वाह

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here