शो मैन राजकपूर

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एस.एन.वर्मा

फिल्म इन्डस्ट्री में देश और विदेश में राजकपूर ग्रेटेसेट शो मैन के रूप में जाने जाते है। उनका जन्म 14 दिसम्बर 1924 में हुआ था और मृत्यु 2 जून 1988 को हुआ। राजकपूर अपने फिल्मी कैरियर में हसोड़ अभिनेता चार्ली चैपलिन से प्रभावित थे। कुछ लोग उन्हें चैपलिन की नकल करने वाले अभिनेता मानते है। जो हो उनमें कई प्रतिभाये थे। अच्छे डायरेक्टर अच्छे प्रोडयूसर अच्छे अभिनेता थे। सिनेमा व्यापार की उन्हें अच्छी समझ थी। नरगिस जिससे उनके बहुत अच्छे और गहरे सम्बन्ध बहुत दिनों तक चले। वह कहा कहते थे मै दिल और बिजनेस बिल्कुल अलग-अलग रखता हूूं। उनका आर.के.स्टूडियों बहुत शानादार था। उनमें प्रतिभा पहचान की बहुत बडी काबलियत थी।
अभी दिलीप कुमार की जन्मशती थी पूरा मीडिया खामोश रहा जब जिन्दा थे तो मीडिया उनके पीछे पागल रहता था और दर्शक भी। राजकपूर की भी शती ऐसे ही गुंजर जाती अगर उनसे सम्बन्धित सामानों, तस्वीरो, पोस्टरो और प्रतीक चिन्ह के नीलामी का बात प्रसारित न होती।
राजकपूर अपने जमाने के मशहूर अभिनेता पृथ्वी राजकपूर के सबसे बड़े पुत्र थे। राजकपूर जब पढ़ रहे थे तो दसवीं की परीक्षा में फेल हो गये। अपने पिता से कहा मैं फिल्मो में काम करना चाहता हॅू फिल्म बनाना चाहता हॅू। पिता अपने पुत्र को अपने प्रोफेशन में आने की ललक देख बहुत खुश हुये। राजकपूर ने बाल कलाकार के रूप में 1935 में प्रदर्शित फिल्म इनक्लाब से की। 1947 में प्रदर्शित फिल्म नीलकमल उनकी वयस्क अभिनेता के रूप में पहली फिल्म थी।
उनके फिल्म कैरियर शुरू करने का किस्सा किसी बम्बइया फिल्म जैसा ही दिलचस्प है। पृथ्वीराज कपूर ने जवान राजकपूर को पहले क्लैपर ब्वाय बनकर फिल्म की बारिकीयां समझने के लिये क्लैपर ब्वाय का काम करने की सलाह दी और उन्हें उस समय के मशहूर डायरेक्टर केदार शर्मा की युनिट में लगवा दिया। फिल्म की शूटिंग के दौरान राजकपूर अक्सर शीशे के सामने चले जाते थे और अपने बाल संवार कर चले आते थे। उनकी ख्वाइश किसी तरह उनकी सूरत कैमरे के सामने आ जाये। एक बार इसी कोशिश में उनकी सूरत कैमरे के सामने आ गयी और क्लैप बोर्ड में अभिनेता की डाढ़ी उलझ कर गिर गयी। केदार शर्मा ने गुस्से से आकर राजकपूर को एक थप्पड़ लगा दिया। केदार शर्मा को पृथ्वीराज के बेटे को मारने का अफसोस रात भर रहा सब उन्होंने अपनी फिल्म नीलकमल में हीरो की हैसियत से साइन करा लिया।
राजकपूर ने 1949 में आर.के.स्टूडियो की स्थापना की। पहली उनकी फिल्म आग थी जिसका संगीत तो सफल हुआ पर संगीतकर गागुली से उनकी अनबन हो गई और उसे छोड़ दिया। 1949 में राज ने फिल्म बरसात की शुरूआत की। इसमें हीरो खुद थे हिरोइन नरगिस और नई अभिनेत्री निम्मी थी। इस फिल्म में राजकपूर ने कई नये कलाकारों कई क्षेत्रों में मौका दिया। निम्मी तो नई थी ही संगीतकार के रूप में शंकर और जयकिशन की जोडी थी और गीतकार के रूप में हसतजैपुरी और शैलेन्द्र की जोडी थी। इन जोड़ियों ने सिनेमा जगत में कई दशकों तक राज किया। जयकिशन और शैलेन्द्र की अकस्मिक मौत से ये जोडी टूट गयी। राजकपूर ने बाबी फिल्म में अपने पुत्र ऋषिकपूर को और डिम्पल कपाडिया को पहली बार मौका दिया साथ ही गायक के रूप में शैलेन्द्र को मौका दिया।
1952 में राजकपूर की प्रदर्शित फिल्म आवारा ने राजकपूर के नाम की धूम मचा दी देश और विदेश में भी उसका गाना आवारा हॅू खासकर रूस में खूब चला। राजकपूर ने अपने साथ नरगिस को अभिनेत्री के रूप में रखकर एक जोड़ी कायम कि यह जोड़ी कई फिल्मों में साथ रही। फिर नरगिस ने सुनील दत्ता से शादी कर ली और जोड़ी टूट गयी। नरगिस ने फिल्म से सन्यास ले लिया।
राजकपूर को मुकेश की आवाज बहुत पसन्द थी। वह खुद भी मुकेश की मिलती आवाज में गाना गा लेते थे। कभी शुरूआत में मुकेश और राजकपूर एक ही गुरू से संगीत की शिक्षा ले रहे थे। फिर मुकेश फिल्म की अनेक विधाओं में शामिल हो गये। ऐक्टर भी और प्लेबैक सिंगर भी रहे। राजकपूर कि आखिरी फिल्म 1991 में हिना बनाई थी। दिल्ली में एक फिल्मी समारोह में उनकी तबियत अचानक खराब हो गई, उन्हें दमा की बिमारी थी, वह अस्पताल ले जाये गये। फिर वही वह सबको छोड़ इस दुनिया से कूच कर गये।
भारतीय सिने उद्योग में राजकपूर के योगदान लिये डेरियाज एन्ड इवेस ने 14-16 दिसम्बर तक सिलीब्रेटिंग द ग्रेटेस्ट शो मैन निलामी की घोषणा की है। इसमें राज से सम्बन्धित 51 यादगार वस्तुओं की नीलामी की जायेगी।
भारतीय सिनेमा के पहले शो मैन थे राजकपूर उनके बाद इन्डस्ट्री में कई लोग शो मैन बनने की कोशिश की पर नाकाम रहे। राजकपूर भाई शम्मी कपूर और शशि कपूर हालाकि सफल ऐक्टर थे पर राज कपूर वाली चमक नही थी। राजकपूर की पार्टिंया भी बहुत शानदार होती थी। होली उत्सव भी उनका लाजवाब होता था। कलकत्ता के एक संगीत सभा में मैने कई कलाकारों के साथ राजकपूर और नर्गिस को देखा था। कई और कलाकारों के साथ स्टेज पर आ रहे थे। डेविड कमेन्ट्री कर रहे थे।
हमारे बाद महफिल में अफसाने बयां होगे।
बहारे हमको टूढेगी नजाने हम कहां होगे।।

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