एस.एन.वर्मा
मो.7084669136
कभी एक रहे दोनो सहयोगी कदम पर कदम पर टकरा रहे है। इस समय दोनो में होड़ मची है साबित करने कि असली शिवसेना वह है। बाल ठाकरे ने शिवसेना का जो जलवा महाराष्ट्र में बिखेरा था दोनो में से किसी के भी वश में नहीं है कि वे उस जलवा को बिखेर सके। लड़ाई सिमट कर असली नकली पर आ गई है। मुम्बई का शिवाजी पार्क शिवसेना की जन्मस्थली है जहां विजयदशमी के दिन बाल ठाकरे अपार भीड़ को सम्बोधित किया करते थे और लोगो में भारी जोश भरा करते थे। वाकई वह हृदय सम्राट थे। उनके एक इशारे पर पूरा महाराष्ट्र जिधर वह चाहते थे उधर धूम जाता था। वह जादू न तो शिन्दे में है न ठाकरे में ।
वैसे शिन्दे ठाकरे पर भारी पड़ते जा रहे है क्योकि ठाकरे का साथ उनके बहुत से सहयोगी और विश्वासपात्र सहयोगी शिन्दे की ओर खिसकते जा रहे है। ठाकरे वक्ता के रूप में शिन्दे से उन्नीस है। लगते है। नेता के रूप में जो गतिशील चाहिये वह उनमें नहीं दिखती है। उनके करीबी उनसे दूर होते जा रहे है इसकी उनको खबर नही रहती है कि पार्टी में क्या चल रहा है। बाल ठाकरे के नाम को उनके द्वारा अर्जित यश के उत्तराधिकारी तो बने पर सहेज नही पा रहे है।
पर विजय दशमी का उत्सव शिवाजी पार्क में मनाने को लेकर उन्होंने शिन्दे को पछाड़ दिया। चूकि शिन्दे मुख्यमंत्री है, राज्य प्रशासन उनके हाथ में है इसलिये वह शिवाजी पार्क में अपना विजयदशमी उत्सव मनाना चाहते थे। पर ठाकरे राज्य प्रशासन से उम्मीद न लगाकर बाम्बे हाईकोर्ट पहुच गये जिसने उनके पक्ष में अनुमाति दे दी। शिन्दे को बान्द्रा में जाकर अपनी रैली करनी पड़ी।
दोनो हिन्दुत्व को लेकर एक दूसरे पर तीर चला रहे थे। शिन्दे कह रहे थे उद्धव एनसीपी, कांग्रेस के साथ जाकर अपने को सेकुलर दिखने की कोशिश कर रहे थे। हिन्दुत्व का भार वह खुद अपने ऊपर ले रहे थे। बहरहाल दोनो की रैली में चमक देखने को नही मिली शिन्दे की रैली में भीड़ ज्यादा दिखी। जहां तक भाषण का सवाल है न ठाकरे के भाषण में कोई चमक थी न शिन्दे के भाषण में ठाकरे के शिवाजी पार्क का फायदा मिला नही तो शायद इतनी भीड़ नही बटोरपाते शिवाजी पार्क की रैली महाराष्ट्र के मानुष लोगो में एक मिथक बनकर रह रही है। एक तो बाल ठाकरे के पिता जी प्रवोथकर ठाकरे ने आजादी को बाद मुम्बई का गुजरात राज्य में जाने से बचाया था। उन्होंने मुम्बई को गुजरात राज्य में शामिल किये जाने के खिलाफ भारी विरोध करके और बचाकर मुम्बई के मानुष लोगो में काफी प्रिय हो गये थे। फिर पुत्र बाल ठाकरे ने यही शिवसेना बनाकर बेताज बादशाह बन कर अपने जीवन भर राज किया। माफिया से लेकर सरकारे तक उनसे थर्राती थी। यह माना जाता है जिसकी रैली में शिवाजी पार्क आम लोगो से भर जाता है वही हर मोर्चे पर विजयी रहेगा। इस बार शिन्दे के यहां ज्यादा दिखी।
अब शिन्दे और उद्धव की परीक्षा होने वाले तीन असेम्बली चुनाव में होगी। उसके बाद मुम्बई महापालिका चुनाव होगा जहां शिवसेना का बिज है। असेम्बली का चुनाव महापालिका चुनाव को प्रभावित करेगा। शिन्दे को भाजपा का साथ है जो वहां प्रभावी है और शिवसेना से इस लिये ज्यादा प्रभावी है कि ठाकरे उनका साथ छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस का हाथ थाम लिया। विचार धारा के स्तर पर भाजपा शिवसेना में बहुत कुछ समानता थी। पर उद्धव विचार धारा की जगह कुर्सी के तरजीह दी वह भी पूरे समय नहीं चल पायी।
अन्धेरी ईस्ट के चुनाव वहां के एमएलए की वजह से होने जा रहा है। शिन्दे उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाना चाहते थे पर ठाकरे ने उनसे पहले पत्नी को उम्मीदवार घोषित कर दिया। अगर भाजपा याहं जीतती है तो उद्धव के लिये एक और झटका लगेगा उनके पार्टी में एक और एमएलए कम हो जायेगा। अब हृदयसम्राट जो बाल ठाकरे वास्तव में थे बनने के लिये, शिन्दे ठाकरे और ठाकरे के भाई राजठाकरे में होड़ चल रही है। राज ठाकरे निजी तौर पर चमक दमक वाले अच्छे वक्ता और संगठन कर्ता है। अपनी पार्टी बनाई भी है पर मुख्य धारा से छिटक गये है। जब बाल ठाकरे थे तो वे अहम काम उन्होंने करवाते थे। उनके जमाने में बहुत ऐक्टिव थे। फिर पुत्रमोह में उत्तधिकार उद्धव को दिया। नतीजा दोनो अलग-अलग है। शायद अब राजठाकरे फिर हाथ पाव मारे और भाजपा की ओर देखे। पर शिन्दे बनाम ठाकरे चलता ही रहेगा।