इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी,कैलिफोर्निया से शाह आलम को डी.लिट की मानद उपाधि

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अवधनामा संवाददाता (वहाज अली निहाल)

इटावा। चंबल को अपनी कर्मभूमि बनाकर उसकी बेहतरी के लिए प्रयासरत चंबल परिवार के प्रमुख शाह आलम राना को उनकी दो दशक लंबी एवं प्रेरणादायक सेवाओं के लिए इंटरनेशनल ओपन यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूमैनिटी हेल्थ साइंस एंड पीस, कैलिफोर्निया ने डी. लिट की मानद उपाधि दी है। शाह आलम क्रांतिकारी परंपरा के दस्तावेजी लेखक है। वे चंबल की 2800 किमी  से अधिक दूरी अकेले साइकिल से यात्रा करके चर्चा में आए थे।    भोपाल के होटल आरके रेजेंसी में रविवार की दोपहर आयोजित विशेष दीक्षांत समारोह में यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट जनरल जीएम डॉ. जसवीर सिंह ने उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की। इस मौके पर चंबल में उनके द्वारा किए जा रहे कामों पर चर्चा भी की गई। इसके बाद सम्मान में भोज का आयोजन किया गया।इस अवसर पर फिल्म अभिनेता राजपाल यादव, मिस इंडिया रागिनी पांडेय, सौहार्द शिरोमणी आदि मौजूद रहे।शाह आलम चंबल घाटी में बदलाव की इबारत लिखने में सक्रिय हैं। वे आजकल पांच नदियों के संगम के नजदीक कुख्यात दस्यु सरगना रहे सलीम गुर्जर उर्फ पहलवान के ग्राम पंचायत स्थित चंबल आश्रम में रह रहे हैं और अपनी ड्रीम परियोजना चंबल विश्वविद्यालय के सपने को साकार करने की दिशा में लगे हुए हैं।
 उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के मूल निवासी शाह आलम पूरा पिरई गांव के रहने वाले हैं।शाह आलम के परबाबा पिरई खां महुआ डाबर एक्शन के महानायक थे।उन्होंने अपने गुरिल्ला साथियों के साथ मिलकर 10 जून 1857 को अंग्रेजी सेना के छह अफसरों को मार डाला था।जिसका खामियाजा भी परिवार को भुगतना पड़ा।शाह आलम ने डॉ०राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय,अयोध्या और जामिया मिल्लिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय,नई दिल्ली से पढ़ाई की। एक घुमंतू सरोकारी दस्तावेजी लेखक-फिल्मकार के रूप में दो दशक से अधिक समय से सक्रिय हैं।सामाजिक सरोकारों के लिए 2002 में चित्रकूट से अयोध्या तक, 2004 में मेंहदीगंज से सिंहचर तक, 2005 में इंडो-पाक पीस मार्च दिल्ली से मुल्तान तक,2005 में ही सांप्रदायिक सौहार्द के लिए कन्नौज से अयोध्या, 2007 में कबीर पीस हॉर्मोनी मार्च अयोध्या से मगहर, 2009 में कोसी से गंगा तक पैदल यात्रा की।उत्तर प्रदेश के पहले फिल्म समारोह की वर्ष 2006 से अयोध्या फिल्म फेस्टिवल नाम से नींव रखी।अवाम का सिनेमा के बैनर तले वे हर वर्ष अयोध्या में इसका एक आयोजन करते हैं। वर्ष 2010 में भारतीय सेना में चंबल रेजिमेंट बनाने की मुहिम को भारतीय संसद की रक्षा समिति ने मुहर लगा दी।शाह आलम ने वर्ष 2016 में 2800 किमी से अधिक दूरी साइकिल से तय करके चंबल-बुंदेलखंड के बीहड़वासियों के समस्याओं को समझकर उसके निदान के लिए रात-दिन शिद्दत से लगे हुए हैं।‘चंबल जनसंसद’ और आजादी के 70 साल पूरे होने पर ‘आजादी की डगर पे पांव’ 2338 किमी की यात्रा क्रांतिकारियों के भूलने के विरुद्ध की।बुंदेलखंड में जारी मैला ढोने की कुप्रथा पर बनी पहली फीचर फिल्म ‘इस्क्रीटा’के कार्यकारी निर्माता।शाह आलम ने तथागत गौतम बुद्ध पर अंग्रेजी भाषा में बनी फीचर फिल्म में अभिनय भी किया है।मातृवेदी-बागियों की अमरगाथा,बीहड़ में साइकिल, चंबल मेनीफेस्टो,आजादी की डगर पे पांव, कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित, बंदूकों का पतझड़, कोरोना कारावास में युवा संघर्ष,आदि पुस्तकों के लेखक। चंबल संग्रहालय की वर्ष 2018 में नींव रखी।जहां दस्तावेजी और बौद्धिक संपदा का अमूल्य भंडार है।शाह को भारतीय संसद में राज्यसभा के चैयरमेन और राज्यपाल द्वारा सम्मानित भी किया गया है। शाह आलम का अभी तक का सफ़र आसान नहीं रहा है।संवैधानिक और मानवीय मूल्यों की रक्षा में जी जान से लगने से उन पर हमलों,नजरबंदी, गिरफ्तारियों से बारहां डराने की कोशिश की गई। कई जानलेवा साजिशों से तपकर निकलने की वजह से इन्हे ‘जिन्दा शहीद’ का जनखिताब मिला।
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