एस.एन.वर्मा
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न्यूयार्क। और अमेरिका के दूसरे राज्यों में महिलाये हाथों में पोस्टर सेक्स लिये हड़ताल पर है। सोशल मीडिया में भी इसे भारी समर्थन और प्रचार मिल रहा है। अमेरिका और खासकर न्यूयार्क सबसे आधुनिक राज्य और शहर माने जाते है। हर आधुनिक सोच और चीजे़ या तो यही से पैदा होती है या एडाप्ट कर ली जाती है। अमेरिकी, सिनेमा, साहित्य, सोच को आधुनिक मान जी से अपनाया जाता है। वहीं एक कानून कोर्ट ने पास किया है जो निहायत ही पिछड़ापन और आदिम युग की याद दिलाता है।
औरतो का झगड़ा इस बात को लेकर है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के फैसले में रो बनाम वेड के फैसले को जो गर्भपात को सैवधानिक अधिकार दर्जा देता है पलट दिया है। पांच दशक पहले से यह कानून चल रहा था। इस तरह अमेरिका में गर्भपात का 50 साल पुराना सवैधानिक संरक्षण समाप्त हो गया है। अब अमेरिका के सभी राज्य गर्भपात को लेकर अपने अलग अलग नियम बनाने के लिये स्वतन्त्र हो गये है।
गर्भधारण में पुरूष से संसर्ग में आने के बाद औरत भ्रूण की सारी प्रक्रियाओं से होकर गुजरती है। नौ महीनो तबियत और शरीर को लेकर कई उतार चढ़ाव को सहना पड़ता है। दर्द, उल्टी, खाने के प्रति एलर्जी, अंगों में दर्द, चक्कर खून की अल्पता इत्यादि की कई घटनाओं से गुजरना पड़ता है, सहना पड़ता है। डाक्टर तो यह बता कर छुट्टी पा लेते है कि हेल्दी चीजे खाओ कुछ दर्दनिवारक दवाये और टानिक लिख कर छुट्टी पा लेते है। महिलाये गर्भ काल में अस्पतालो और डाक्टरो का चक्कर लगती रहती है। प्रसव क दर्द ते सभी समझते है सहन पडता है। औलाद की खुशी में भूली रहती है सब सहती जाती है। अजकल सीजेरियन का प्रचलन बढ़ गया है। प्रसवपीड़ा से निजात पाने के लिये महिलायें खुद सीजेरियन प्रस्तावित करती है। कहते है बच्चे क जन्म लेने के बाद औरत क नया जन्म होता है। उसके बाद बच्चे का पालन पोषण बच्चे को गन्दगी के साफ करना, उसकी मालिश वगैरह, ब्रेस्ट फीडिग और ऊपरी दूध पिलाना पानी सब कुछ उसे ही कना पड़ता है। सब कुछ उसके शरीर में और शरीर के ऊपर सहना पड़ता है। आदमी तो बस संसर्म के बाद अपने कामो में जुट जाता है। कहने का तात्पर्य जब सब कुछ गर्भ को लेकर औरते करती और सहती है। शरीर भी गर्भ के साथ बेडौल होता जाता है। तो गर्भ को लेकर उनकी आजादी को छीनना न तो न्यायोचित लगता है न मानवीय। जिसकी सारी प्रक्रिया औरत की शरीर में चलती है जन्म देने के बाद भी, उसे फुर्सत नहीं मिलती। शिशु अवस्था में शिशु के प्रति चौबीस घन्टे समर्पित होकर जुटी रहती है। तो गर्भ को लेकर गर्भपात तक की स्वतन्त्रता व अधिकार उसे मिलना चाहिये न कि पुरूषो द्वारा बनाये गये कानून को वह तो एक तरह से पुरूषो को अधिकार दियाा जा रहा है यों भी कई औरतो को ससुरालजनो, पति या अन्य पुरूषो के दबाव में गर्भपात कराना पड़ता है। उनके पास न तो इसका अधिकार रहता है न उनकी इच्छा को सम्मान मिलता है। मैथलीशरण गुप्त की औरतो के बारे में बहुत सटीक लाइन है ष् अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखो में पानीष्। इस परिप्रेक्ष में औरत का दर्द समझा जाना चाहिये।
गर्भपात के विरोध में अमेरिका में जो अन्दोलन चल रहा है उसे सेक्स हड़ताल कहा जा रहा है। महिलाये देशव्यापी सेक्स हड़ताल की धमकी दे रही है। उनका कहना है जब तक वे गर्भ धारण करना नहीं चाहती तब तक किसी पुरूष के साथ सेक्स सम्बन्ध नहीं बनायेगी। महिलाये सेक्स स्ट्राइक का बैनर और पोस्टर लिये अपनी तस्वीरे भी प्रदशित कर रही है। उनका कहना है हम अनचाहे गर्भ का जोखिम नहीं उठायेगी। उनका प्रण है न तो अपने पति या किसी अन्य पुरूष से भी संसर्ग नही करेगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात प्रतिबतन्धित कर देने के बाद अमेरिका के 50 राज्यो में से 26 राज्यो ने गर्भपात को प्रतिबन्धित करने की कसरत शुरू कर दी है। महिलाओं का कहना है गर्भपात का अधिकार वापस लेने के बाद हमारे पास नो मोर सेक्स का नारा लगाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
अमेरिका के ओरेगन राज्य के पोर्टलैन्ड में फैसले के खिलाफ हिंसा भी हुई है। समूह में कई इमारतो को तोड़ फोड़ दिया गया है। अमेरिका में दो दिनो से औरते सड़को पर भारी संख्या में उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रही है। इस अन्दोलन से न्यूयार्क सबसे ज्यादा प्रभावित है। टिवटर पर सन्देश दे रही है जब तक रा वर्सेज वेड दोबारा लागू नहीं किया जाता तब तक हम शान्त नहीं बैठेगे। पुरूषों को सेक्स न करने की धमकी दे रही है। महिलाये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में नारे लिख रही है। अमेरिकी लायब्रेरी को विरोध में बदरंग कर दिया है। यानी अपना गुस्सा तरह के तरीको से उजागर कर रही है। उनके विरोध की तीव्रता हर जगह देखने के मिल रही है। कई महिलाओं ने रिपब्लिकन पार्टी के उन पांच के साथ जिन्होेंने गर्भपात के खिलाफ बनाये गये कानून का समर्थन किया। उनको साथ औरतो से सेक्स सम्बन्ध न बनाने की अपील की जा रही है। ब्रापना फैक्पवेल जो एक प्रदर्शनकारी है ने कहा है यदि कोई पुरूष भले ही नसबन्दी करा चुका हो लेकिन सड़को पर अपनी पत्नी के अधिकारो के लिये नहीं लड़ रहा है तो वह सम्बन्ध बनाने लायक नहीं है। यानी औरते गुस्से से धधक रही है। अमृत प्रीतम की एक लाइन है क्या औरतो का बदन के सिवा कोई दूसरा वतन नही होता। औरते के दयनीय दशा की ओर यह लाइन इशारा करती है। औरत को मजबूर न करे उसे अपने बारे में स्वतन्त्र अधिकार मिलना चाहिये। कोई निर्णय उन पर थोपा नहीं जाना चाहिये औरत बेचारी है बख्त की मारी है।