आजीवन सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्षरत रहे झाड़ू वाले राष्ट्र संत गाडगे

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कबीर और रैदास से प्रभावित और बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के समकालीन थे संत गाडगे 
समाज सुधार के पर्याय राष्ट्र संत गाडगे ने जलाई सामाजिक भेदभाव के खिलाफ चेतना की मिशाल
महान समाज सुधारक और राष्ट्रीय संत संत गाडगे की जयंती 23फरवरी को प्रदेश के लगभग सभी जनपदों में मनाई जाएगी।संत गाडगे मिशन और गाडगे यूथ ब्रिगेड की ओर से सुल्तानपुर, अमेठी और रायबरेली में बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
बीसवीं सदी के समाज-सुधार आन्दोलन में जिन महापुरूषों का योगदान रहा है, उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम बाबा गाडगे का है !
बाबा गाडगे संत कबीर और रैदास की परंपरा में आते हैं ! उनकी शिक्षाओं को देखकर ऐसा लगता है कि वे कबीर और रैदास से बहुत प्रभावित थे !
गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी, 1876 ई0 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगाँव नामक गाँव में कहीं सछूत और कहीं अछूत समझी जाने वाली धोबी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था !
उनकी माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था ! बाबा गाडगे का पूरा नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाड़ोकर था!
घर में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से ‘डेबू जी’ कहते थे ! डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे ! इसी में वे खाना भी खाते और पानी भी पीते थे ! महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं ! इसी कारण कुछ लोग उन्हें गाडगे महाराज तो कुछ लोग गाडगे बाबा कहने लगे और बाद में वे संत गाडगे के नाम से प्रसिद्ध हो गये !
गाडगे बाबा बाबा साहब डा. अम्बेडकर के समकालीन थे तथा उनसे उम्र में पन्द्रह साल बड़े थे !
वैसे तो गाडगे बाबा बहुत से राजनीतिज्ञों से मिलते-जुलते रहते थे ! लेकिन वे बाबा साहब डा. आंबेडकर के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे ! इसका कारण था जो समाज सुधार सम्बन्धी कार्य वे अपने कीर्तन के माध्यम से लोगों को उपदेश देकर कर रहे थे, वही कार्य बाबा साहब डा0 आंबेडकर राजनीति के माध्यम से कर रहे थे !
गाडगे बाबा के कार्यों की ही देन थी कि जहाँ बाबा साहब डा. आंबेडकर तथाकथित साधु-संतों से दूर ही रहते थे, वहीं गाडगे बाबा का सम्मान करते थे ! वे गाडगे बाबा से समय-समय पर मिलते रहते थे तथा समाज-सुधार सम्बन्धी मुद्दों पर उनसे सलाह-मशविरा भी करते थे। बाबा साहब डा. आंबेडकर और गाडगे बाबा के सम्बन्ध के बारे में समाजशास्त्री प्रो. विवेक कुमार लिखते हैं कि ‘‘आज कल के दलित नेताओं को इन दोनो से सीख लेनी चाहिए ! विशेषकर विश्वविद्यालय एवं कालेज में पढ़े-लिखे आधुनिक नेताओं को, जो सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा समाज-सुधार करने वाले मिशनरी तथा किताबी ज्ञान से परे रहने वाले दलित कार्यकर्ताओं को तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं और बस अपने आप में ही मगरूर रहते हैं ! क्या बाबा साहेब से भी ज्यादा डिग्रियाँ आज के नेताओं के पास है? बाबा साहेब संत गाडगे से आंदोलन एवं सामाजिक परिवर्तन के विषय में मंत्रणा करते थे ! यद्यपि उनके पास किताबी ज्ञान एवं राजसत्ता दोनो थे ! अतः हमें समझना होगा कि सामाजिक शिक्षा एवं किताबी शिक्षा भिन्न हैं और प्रत्येक के पास दोनों नहीं होती !
अतः इन दोनों प्रकार की शिक्षा में समन्वय की जरूरत है।’’
गाडगे बाबा संत कबीर की तरह ही ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद के विरोधी थे !
वे हमेशा लोगों को यही उपदेश देते थे कि सभी मानव एक समान हैं, इसलिए एक दूसरे के साथ भाईचारे एवं प्रेम का व्यवहार करो ! वे स्वच्छता पर विशेष जोर देते थे ! वे हमेशा अपने साथ एक झाडू रखते थे, जो स्वच्छता का प्रतीक था !
वे कहते थे कि ‘‘सुगंध देने वाले फूलों को पात्र में रखकर भगवान की पत्थर की मूर्ति पर अर्पित करने के बजाय चारों ओर बसे हुए लोगों की सेवा के लिए अपना खून खपाओ ! भूखे लोगों को रोटी खिलाई, तो ही तुम्हारा जन्म सार्थक होगा ! पूजा के उन फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है ! यह बात आप लोगों को समझ में नहीं आयेगी !’’
गाडगे बाबा आजीवन सामाजिक अन्यायों के खिलाफ संघर्षरत रहे तथा अपने समाज को जागरूक करते रहे ! उन्होंने सामाजिक कार्य और जनसेवा को ही अपना धर्म बना लिया था ! वे व्यर्थ के कर्मकांडों, मूर्तिपूजा व खोखली परम्पराओं से दूर रहे !
जाति प्रथा और अस्पृश्यता को बाबा सबसे घृणित और अधर्म कहते थे ।
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