अवधनामा संवाददाता
प्रयागराज। (Prayagraj) पहले से विद्यमान दुर्गुणों को हटाकर उनके स्थान पर सद्गुणों की प्रतिष्ठा ही हिन्दू संस्कारों का मूल उद्देश्य है। वैदिक ऋषियों ने वैयक्तिक एवं सामाजिक उत्कर्ष के लिए संस्कारों की व्यवस्था की थी। आधुनिक सभ्यता और पश्चिमी प्रभाव के कारण आज संस्कार-विधान की गति मन्द हो गयी है लेकिन उनकी उपादेयता को नकारा नहीं जा सकता। उक्त बातें आज यहां संस्कृत विभाग तथा पं.गंगानाथ झा पीठ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्राचीन वैदिक संस्कार-विधान एवं आधुनिक संदर्भ’ विषय पर एकदिवसीय आॅनलाइन राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद के आयोजन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने संस्कारों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहीं।
प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि प्राचीन ऋषियों ने इनकी व्यवस्था वैयक्तिक एवं सामाजिक उत्कर्ष की दृष्टि से ही की थी। वस्तुतः संस्कारों से व्यक्ति का आचरण, चरित्र, कर्तव्य और सामाजिक कर्म प्रभावित होता है। अतः उनकी उपादेयता सार्वकालिक एवं सार्वजनिन है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी वैदिक संस्कार पूर्णतः प्रासंगिक हैं। कुलपति प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने गर्भाधान, पुंसवन, वेदारंभ, विवाह और अंत्येष्टि समेत सोलह प्रमुख संस्कारों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शासन व्यवस्था और मैकाले की शिक्षा नीति के कारण संस्कृत लुप्त होती गई। संस्कृत अत्यंत ही प्राचीन और समृद्ध भाषा है।
कार्यक्रम के आरम्भ में ‘मूकं करोति वाचालं, पङ्गुं लङ्घयते गिरि’ अर्थात जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं, लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं इस मंत्र से वंदना की गई। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रो.महावीर अग्रवाल, प्रतिकुलपति, पतजंलि विश्वविद्यालय ने कहा कि संस्कारों के बिना समाज का मार्गदर्शन नहीं हो सकता। विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो.रामनाथ झा ने कहा कि संस्कारों से अनुवांशिकी का परिवर्तन किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने संस्कारों की वैज्ञानिक व्याख्या भी प्रस्तुत की। प्रो.गिरिजा शंकर शास्त्री, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और डा.अनिल प्रताप गिरी, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने भी अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. मृदुला त्रिपाठी, पूर्व अधिष्ठाता कला संकाय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने की। अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. उमाकांत यादव, धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामसेवक दुबे तथा कार्यक्रम का संचालन डा.मीनाक्षी जोशी व डा. शारदा पाठक ने किया। वैदिक मंगलाचरण डा. प्रतिभा आर्या ने किया।