सहाफत, इल्मो – अदब  का वक़ार  – वक़ार रिज़वी 

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                Sahafat, Ilmo - Adab Waqar - Waqar Rizvi -

 

यो तो वक़ार रिज़वी साहब की इल्मी अदबी और सहाफी खिदमात पर और इनकी शख्सीयत पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है ,  जनाब वक़ार रिज़वी को हम अगर ज़ाती तौर पर देखे तो वोह एक बहोत ही नीक दिल इंसान , हमेशा लोगो की मदद करने वाला – हमदर्द की तरह देख सकते है , मेरी उनसे मुलाक़ात अक्सर किसी न किसी अदबी  नशिश्त में होती रहती थी , और अक्सर जब वोह वालिद साहब से मिलने घर आया करते थे – यहाँ मै अपना एक ज़ाती तजुर्बा बताना ज़रूरी समझता  हूँ   की  , वालिद साहब की इंतेक़ाल की ख़बर सुन कर जो शख्स सबसे पहले अस्पताल पंहुचा, कई घंटो तक साथ रहा था, वोह और कोई नहीं वक़ार रिज़वी ही थे – ऐसे मोहब्बती और हमदर्द थे वक़ार साहब – वाक़ई जिनका इस तरह  अचानक चले जाना – अफसोसनाक है !

यूँ कहा जाये   की  पिछले कई बरसो से जनाब वक़ार साहब एक मिशन पर थे – उन्होंने अदबी – इल्मी खिदमात की एक मुहिम चला राखी थी – जितने – सेमिनार , नशिश्त , तक़रीबात उन्होंने ने किये – शायद लखनऊ में किसी ने भी नहीं किये – उर्दू  रइटर्स फोरम – के ज़ेरे एहतेमाम उन्होंने बहोत सी इल्मी , आदमी शक्सियात की हौसला अफ़ज़ाई की , अवार्ड्स से नवाज़ा -।
और उनके अदबी – काम को मन्ज़रे आम लाये –  साथ ही साथ वोह अपने रोज़नामा अख़बार अवधनामा के ज़रिये भी – समाज को आइना दिखते रहे – आजकल के इस दौर में जहाँ  सहाफत – मस्लेहत के बिना पर होती है – वोह हमेशा हक़ बात  अपना नजरिया ,  किसी मज़हबी , सियासी,रहनुमा से बिना डरे,  बड़े  बेबाकी से पेश करते रहे –
मुझे याद है उनका एक  अजीब जुमला जो  वोह अक्सर कहते थे , की   हमारे दरमियान बहोत से लोग है , की जिनको , उनके  इल्मी ,अदबी फन के बिना पर वोह मक़ाम नहीं मिला।  जिसके वोह हक़दार है – आजकल चार – पांच छोटी किताबे लिखने वाले , शोहरत पर पहुंच गए , वहीँ ऐसे अदीब भी है जो अस्सी – किताबे लिख चुके है ,  और बेहतरीन नक़्क़ाद है ,मगर -उनको अपनी मार्केटिंग नहीं आती और यह दौर डिजिटल दौर है  – मेरी यह कोशिश भी रहती है की -ऐसे अज़ीम अदीबो, और नक़्क़ाद को फरामोश न किया  जाये ! और उनकी खिदमात लोगो के सामने लायी जाये –

वरना  आज के इस पुराशोब  ज़माने में जहाँ  पीएचडी पूरी होने के बाद शागिर्द उस्ताद को नहीं पहचानता -कही लेक्चरर होने पर – अपने उस्ताद को नहीं जानता – वहां  ऐसी सोच और ख़यालात की  शख्सियत का हमसे दूर  जाना – बहोत सदमा , और दुःख  दे गया ! – वक़ार रिज़वी – साहब ने न सिर्फ बुजुर्ग़ अदीब और नक़्क़ाद की हौसला अफ़ज़ाई की बल्कि  साथ साथ  नए अदीब और फनकार का भी पूरा ख्याल रखा – और उनकी भी भरपूर हौसला अफ़ज़ाई की – चाहे वोह शायर हो या फिर मर्सियाखा –

जैसा की मैने लिखा – वक़ार रिज़वी अकेले ही मुहिम पर थे और  उर्दू  ज़बान औ अदब की खिदमत  , हर तरह से कर रहे थे , उर्दू के साथ साथ उन्होंने हिंदी के लिए भी बहोत काम  किया ! और यह तल्ख़ हक़ीक़त है की अब उनके न रहने से यह कमी कभी भी पूरी न हो सकेगी !- ऐसा लगा की यह वक़ार रिज़वी नहीं गए – बल्कि अदब शनास, अदबी और इल्मी खिदमत गुज़ार , शहर से चला गया –   इतने कम  वक़्फ़े  में करे गए  उनके काम हमेशा याद रहेंगे !-  जैसे उन्होंने सभी अदीबो – नक़्क़ादो – और इल्मी  शक्सियात , को याद किया  अब आज के अदीब उनको हमेशा याद रखेंगे !

डॉक्टर – सय्यद ज़ाकिर इमाम रिज़वी
प्रिंसिपल –  शिवपाल  कॉलेज
जलालपुर
अम्बेडकरनगर –
9795439030 –

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