रोजा रोजेदार को पूरी तरह से पाकीजगी का दिखाता है रास्ता : काजी-ए-शहर

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आधे रोजे खत्म होने के बाद इफ्तार पार्टियों का सिलसिला तेज 
महोबा । मुकद्दस माह रमजान का एक पखवाड़ा निकल जाने के बाद इफ्तार पार्टियों का सिलसिला तेज हो गया है। एक के बाद एक मोहल्ले में इफ्तार का आयोजन कराया जा रहा हैए जहां पर रोजेदार पहुंचकर इफ्तार पार्टी में शिरकत कर रहे हैं। इस साल रोजेदारों की संख्या बढ़ गई है, यही वजह है कि शाम होते ही मुस्लिम बाहुल इलाकों में रोजेदारों की भीड़ नजर आने लगी है। मस्जिदों के अलावा लोग घरों में इफ्तार करते हैं।
काजी.ए.शहर कारी सैयद आफाक हुसैन ने खिताब करते हुए कहा कि रोज़े के मायने सिर्फ यही नहीं है कि, इसमें सुबह से शाम तक भूखे.प्यासे रहोए बल्कि रोज़ा वो अमल है, जो रोज़दार को पूरी तरह से पाकीज़गी का रास्ता दिखाता है, रोजा इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई का रास्ता दिखाता है, महीने भर के रोजों को जरिए अल्लाह चाहता है कि इंसान अपनी रोज़ाना की जिंदगी को रमज़ान के दिनों के मुताबिक़ गुज़ारने वाला बन जाए। रोज़ा सिर्फ न खाने या न पीने का ही नहीं होताए बल्कि रोज़ा शरीर के हर अंग का होता हैए इसमें इंसान के दिमाग़ का भी रोज़ा होता हैए ताकि इंसान के ख्याल रहे कि उसका रोज़ा है, तो उसे कुछ गलत बाते गुमान नहीं करनी। उसकी आंखों का भी रोज़ा हैए ताकि उसे ये याद रहे कि इसी तरह आंख, कान, मुंह का भी रोज़ा होता है, ताकि वो किसी से भी कोई बुरे अल्फ़ाज ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फ़ाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दे कि उसका रोज़ा है। इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोज़ा होता है, जिससे इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम न करें।
उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है। इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बतए प्रेमए भाईचारा और खुशियां बांटना है। रमज़ान का मक़सद सिर्फ यही नहीं होता कि एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अख़लाक़ रखे, बल्कि मुसलमान पर ये भी फर्ज है कि वो किसी और भी मज़हब के मानने वालों से भी मोहब्बत, प्रेम, इज़्ज़त, सम्मान, अच्छा अख़लाक़ रखे, ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे, गरीब मजलूम का ख्याल रखें।
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