एस.एन.वर्मा
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कहते है साक्षरता से अन्धविश्वास मिटता है। पर देखा जा रहा साक्षरता बढ़ तो रही है पर बहुत से अन्धविश्वास भी पनपते जा रहे है कुछ पुराने कुछ नये। गांवो में डायनो प्रेत नागो के अन्धवासी किस्से तो अक्सर सुनने को मिलते रहते है। टीवी सीरियलों में भी अन्धविश्वास वाले सीरियल देखने को मिल रहे है। नागिन, भूत, प्रेत, दुख और गरीबो से निजात पाने वाले पूजा पाठ और व्रत वगैरहा अवचेतन में ये काफी नुकासान पहुचाते है। किशोर वय वाले तो इसके शिकार भी हो जाते है।
केरल देश का सबसे ज्यादा शिक्षित देश है। यहां बहुतसंख्यक स्त्री पुरूष बाहरी देशों में नौकरी के लिये जाते रहते है। कभी नर्सिग सेवाओं में इनका एकाधिकार था। लड़कियां अकेले दूर-दूर तक जाकर रहती हैं। इन सबके बावजूद अन्धविश्वास से लबरेज दो महिलाओं के नृशंस हत्या का मामला सामने आया है। एक दम्पति गरीबी से छुटकारा पाने के लिये एक तान्त्रिक के जाल में फंस गयी। तान्त्रिक ने एक महिला को बहला फुसला कर दम्पति के पास ले आया और मार कर दम्पति के ही घर में गाड दिया। बलि के बाद दम्पति ने इन्तजार के बाद शिकायत की गरीबी दूर नहीं हो रही है। तान्त्रिक ने कहा इस तरह की एक और बलि होनी चाहिये। तान्त्रिक ने ही दूसरी औरत का भी प्रबन्ध किया। उसके साथ भी वह सलूक हुआ जो पहले वाली महिला के साथ हुआ था। कहते है शव का कुछ हिस्सा खाया भी गया था। जब दूसरी औरत गायब हुई तो पुलिस सक्रिय हुई उसी ने इस कान्ड का पता लगया। पुलिस रिमान्ड पर रखना चाहती थी पर कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में आरोपित को भेज दिया।
तान्त्रिक पेशेवर अपराधी है। उस पर कई आरोप लगे हुये है और वह जेल भी जा चुका है। उसके अखबार के इश्तहार को पढकर दम्पति प्रभावित हुये और उससे सम्पर्क कर उसके बताये अनुसार कार्य किया। अखबारों और दिवारों पर इस तरह के इश्तहार अकसर देखे जाते है। जिन रोगो के इलाज लिये के दुनियां भर डाक्टर और वैज्ञानित जान खपा रहे है। निदान नहीं मिल रहा है उससे एक हफ्ते या पन्द्राह दिन के कोर्स से शर्तिया निजात दिलाने का कसम खाते है नही तो पैसा वापस। इसमें तान्त्रिक भी हैं तथाकथित वैद्य हकीम और डाक्टर भी है। टीवी पर तो नामर्दागी भगाने और सेक्सुआल ताकत बढ़ाने, बाझपन हटाने के विज्ञापन खुलेआम कई-कई बार आते रहते है। जिन्हें महिलायें ही एन्कर के रूप में बताती रहती है। कुछ औरते यह भी बताती दिखती है उन्हें इस दवा से फायदा हुआ है। यही लखनऊ में दो एक डाक्टरो को विज्ञापन मर्दानगी और बाझपन को लेकर अक्सर आता रहता है। उनके एजेन्ट रेलवे स्टेशनों पर गाडी लेकर खड़े रहते है और लोगो को फंसा कर डाक्टर के पास लाते है। डाक्टर अंग्रेजी दवाइयों को पीस कर देते है कि पता न चले कौन सी दवा है। सरकार को इस तरह के विज्ञापनों और डाक्टरो पर प्रभावी कानून बना रोक लगानी चाहिये।
इस तरह के विज्ञापनों में इससे सम्बन्धित तान्त्रिक काला जादू वालो ओझाओं के चक्कर में सिर्फ अघेशिक्षित जना ही नही फंसता है। पढे लोग, सिने अभिनेता, नेता, कार्पोरेट भी फंसत रहतेे है। पर बहुतापन में यही फसलें है अमीर से और अमीर बनने की चाहत में यह घटना केरल के जिस कोच्चि में हुई है वह पहले से कालाजादू को लेकर बदनाम है। अनुष्ठान कराने वाले भले ही अमीर न बनते हो पर अनुष्ठान करने वाले निश्चित ही अमीर बनते जाते है। कुछ तथाकथित साधू और महन्त भी इस तरह का आर्शिवाद देते है। वहां भी बड़े-बड़े लोगो की भीड़ लगी रहती है। इसीलिये अपराध और हत्या के सालाना आंकडों में इस तरह के अपराध भी आते है।
केरल में युक्तिवादी संगठन और केरल शास्त्र साहित्य परिषद जैसी संस्थायें बहुत पहले से काला जादू पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रही है। 2019 में राज्य विधि आयोग ने एक ड्राफ्ट बना कर कर पेश किया था। डाफ्ट गृह मन्त्रालय के पास आज तक लाम्बित है।
आरोपियो में भगवान सिंह उसकी बीवी और शफी के नाम है। शफी मुख्य आरोपी है। शफी सइकोपैथ और विकृत मानसिकता बाला शख्स है। उस पर चोरी और रेप के 10 केस दर्ज है। दम्पति के घर खोदाई करने पर शव के टुकडे़ मिले।
नेता जो आम लोगो के पथ प्रदर्शन का भी काम करते है वे खुद अन्धविश्वास के चपेट में है। चुनाव आते ही अक्सर वह इस तरह के साधू सन्तो और तान्त्रिकों के शरण में जाते है। बताये अनुसार अनुष्ठान करते है। इतना ही नही पर्चा भरने का भी मुहूर्त निकलवाते है और उसी दिन पर्चा भरते है। हाथ की दसो उगलियों में ग्रह शन्ति, जीत के लिये, मन्त्री बनने के लिये अगूठिया पहनते है। किसी किसी उगली में एक से ज्यादा अगूठी भी देखी जाती है। जाने कितनी उनकी मन्नते होती है। बस चले तो पैरो में बिछिया के तरह अगुठियां पहनने लगे। जनता नेता के पीछे चलती है। नेताओं पर और जिम्मेदारियों के साथ यह भी जिम्मेदारी बनती है कि जनता को कालाजादू तन्त्र मन्त्र, ओझा तान्त्रिक तथा कथित साधुओं और महन्तो से भी बचाये। सरकार इन जालसाजों के खिलाफ सख्त कानून लाना चाहिये। नेताओं को अन्धविश्वास खिलाफ माहौल बनाना चाहिये। एनजीआअे के भी इन सबके खिलाफ अभियान चलाना चाहिये।