बर्लिन। रूस और यूक्रेन की जंग के चार माह बाद भी जारी रहने का खौफ अब यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई देने लगा है। दरअसल यहां की बढ़ती मुद्रास्फीति की दर या सरल भाषा में कहें तो महंगाई ने अधिकतर लोगों के माथे पर शिकन लाने का काम किया है। जर्मनी के फेडरल स्टेटिस्टिक आफिस का कहना है कि देश में महंगाई की दर फिलहाल लगभग 8 फीसद पर है। हालांकि, आम लोगों की जेब पर इसको बोझ पड़ना लगातार जारी है। बिजली और गैस के दामों में करीब 38 फीसद की तेजी अब तक हो चुकी है। वहीं खाने-पीने की चीजों के दाम 11 फीसद तक बढ़ चुके हैं।
जर्मन फाइनेंस रिसर्च सेंटर के सीनियर रिसर्चर मार्कुस ग्राबका का कहना है कि ये सही है कि मौजूदा संकट का असर धीरे-धीरे महसूस किया जा रहा है। इसका असर उन लोगों पर अधिक पड़ रहा है जिनकी आमदनी कम है। ऐसे लोगों के लिए रोज की बढ़ती महंगाई से पार पाना एक मुश्किल काम जरूर है। हालांकि ग्राबका का ये भी कहना है कि मध्यम और उच्च आय वर्ग वाले परिवारों को फिलहाल उतनी दिक्कत अभी नहीं है।
हाल में जारी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि खाने के तेल, आटे, मीट, दूध और अंडे जैसी आम जरूरत की चीजों के दामों में अब तक तेजी दो अंकों में पहुंच चुकी है। बीमा कंपनी एलियांस ट्रेड की रिसर्च रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई है कि जर्मनी में मौजूदा वर्ष में प्रति व्यक्ति खाने की लागत 250 यूरो ज्यादा रह सकती है। इससे कम आमदनी वाले लोगों पर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। जर्मनी में 5.6 लाख रिटायर्ड लोगों को मिलने वाली पेंशन बेहद कम है। ऐसे में इन्हें सरकारी मदद की जरूरत होगी। ऐसा नहीं हुआ तो ये गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे।
गौरतलब है कि जर्मनी में अधिकतर लोग किराए के मकान में अपना गुजारा करते हैं। यहां पर सिर्फ 42 फीसद लोगों के पास ही अपना घर है। बढ़ती महंगाई इन लोगों के नए घर को लेने का सपना भी तोड़ सकती है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि केंद्रीय बैंक कीमतों पर काबू रखने के लिए होमलोन पर ब्याज दर को बढ़ा रहे हैं। पहले ही बीते कुछ माह में होम लोन की ब्याज दरें बढ़कर तीन फीसद तक जा पहुंची हैं जो कई दशकों में सबसे ऊंचे स्तर पर हैं।