बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण को संकट में डाल रहे अमीर देश

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न्यूयॉर्क। वर्ष 2060 तक पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन 60% बढ़ सकता है, जिससे जलवायु और आर्थिक समृद्धि खतरे में पड़ जाएगी। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने शुक्रवार को ऊर्जा, भोजन, परिवहन और आवास को लेकर बड़े परिवर्तन के संकेत दिए है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अंतर्राष्ट्रीय संसाधन पैनल के 2024 वैश्विक संसाधन आउटलुक से पता चलता है कि बुनियादी ढांचे, ऊर्जा मांग और उपभोक्ता खपत में उल्लेखनीय वृद्धि, विशेष रूप से अमीर देशों में, पिछले 50 वर्षों में वैश्विक सामग्री उपयोग में तीन गुना वृद्धि हुई है। इससे दुनिया में सामग्रियों का उपयोग तीन गुना बढ़ गया है, प्राकृतिक संसाधनों की मांग में औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.3% से अधिक हो गई है।

विश्लेषण से पता चलता है कि अमीर देशों के लोग छह गुना अधिक सामग्रियों का उपयोग करते हैं। यह कम आय वाले देशों की तुलना में 10 गुना अधिक जलवायु प्रभाव पैदा करता है।

रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला दावा किया गया है कि 60% से अधिक ग्रह-वार्मिंग उत्सर्जन विशाल मात्रा में संसाधनों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण के लिए जिम्मेदार है, जो इकोसिस्टम और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए दोहरे जोखिम पैदा कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित तापमान सीमा का उल्लंघन होने की संभावना है। मुख्य लेखक हंस ब्रुइनिनक्स ने चेतावनी दी है कि संसाधन उपयोग 2015 पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को खतरे में डाल रहा है।

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