अंग्रेजी हुकूमत काे चकमा देते हुए क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने फिरोजाबाद में काटा था एक माह अज्ञातवास

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अंग्रजी हुकूमत से लोहा लेकर देश को आजाद कराने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का फिरोजाबाद से भी जुड़ाव रहा। उन्होंने गिरफ्तारी के लिए तलाश कर रही अंग्रेजी हुकूमत क चकमा देकर यहां के एक प्राचीन मंदिर में बनी गुफा में एक माह का अज्ञातवास काटा। इस दाैरान

उन्हाेंने लोगों को कुश्ती के दावपेंच सिखाए, उनमें देशप्रेम की भावना जागृत की। जिस गुफा में चंद्रशेखर आजाद ने अज्ञातवास काटा आज उस गुफा के मुख्य द्वार पर उनकी प्रतिमा लगी हुई है, जिससे लोगों के बीच उनकी यादें आज भी ताजा हैं।

आजादी का 78वां स्वतंत्रता दिवस आज पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। देश की आजादी में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद भी अहम भूमिका रही है। देश को आजाद कराने के लिए वह हंसते-हंसते शहीद हो गए। यही वजह है कि आज उनका नाम भी देश को आजादी दिलाने वाले महान क्रांतिकारियों के साथ आदर व सम्मान के साथ मुख्य भूमिका में लिया जाता है। उनकी एक बात जानकर हैरानी होगी कि देश की आजादी के लिए जब चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों से लोहा लेते हुए उनकी नाक में नकेल डाल दी थी तब अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें पकड़ने के लिए पूरी अंग्रेजी फाैजी उनके पीछे लगा दी थी। इस दाैर में तमाम संसाधनाें से

लैस अंग्रेजी हुकूमत काे चंद्रशेखर आजाद ने चकमा देते हुए उप्र की सुहाग नगरी फिरोजाबाद के प्राचीन पेमेश्वर नाथ मंदिर काे अपनी रणस्थली बनाया था। उन्होंने मंदिर में स्थित बगीची में बनी गुफा में लगभग एक महीने अज्ञातवास काटा। इस दौरान उन्होंने लोगों के बीच रहकर उन्हें मंदिर परिसर में बने अखाड़े में कुश्ती के दावपेंच सिखाए। साथ ही उन्हें देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए प्रेरित भी किया। यहां अज्ञातवास के दाैरान वह सुबह उठकर व्यायाम करने के साथ ही मंदिर में पूजा पाठ करते थे, लेकिन इस बात की भनक यहां रहने वाले लोगों को नहीं हुई कि यह चंद्रशेखर आजाद हैं। एक महीने के अज्ञातवास के बाद जब वह लोगों के बीच से अचानक चले गए, तब उन लोगों को पता लगा कि जो पहलवान उनके बीच रहता था वह काेई और नहीं बल्कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद थे। इस जानकारी के बाद इस प्राचीन पेमेश्वर नाथ महादेव मंदिर में स्थित गुफा के मुख्य द्वार पर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित की गई और लोग उन्हें आज भी याद करते हैं।

मंदिर के महंत नरेश चंद्र पाराशर बताते हैं कि वह करीब 16 साल से यहां पूजा पाठ करते आ रहे हैं। यहां जो वयोवृद्ध लोग हैं वह बताते हैं कि यहां चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों काे चकमा देते हुए गुप्त रूप से अज्ञातवास काटा था। तब यहां एक बगीची थी। उसमें गुफा थी, जिसमें चंद्रशेखर आजाद ने शरण ले रखी थी। लेकिन यह किसी को पता नहीं था कि जाे व्यक्ति गुफा में शरण लिए हुए है वह चन्द्रशेखर आजाद है। यहां एक अखाड़ा भी है, वहां पर वह व्यायाम करते थे और

कुश्ती भी लड़ी हैं। जब वह चले गए तब लोगों को पता लगा कि वह चंद्रशेखर आजाद ही थे, इसलिए उनकी प्रतिमा यहां लगाई गई है। जिससे लोगों के बीच उनकी यादें ताजा बनी रहे। उन्होंने बताया कि जिस गुफा में वह छिपे थे उसमें अब माता का मंदिर बन गया है और लोग पूजा पाठ करते हैं।

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