नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के समक्ष वही चुनौती है, जो दुनिया के दूसरी बड़ी इकोनॉमी वाले देशों के केंद्रीय बैंक के सामने है। यानी कोरोना प्रभाव से उबरती इकोनॉमी की विकास दर को प्राथमिकता दी जाए या फिर महंगाई को रोकने के लिए कदम उठाए जाएं। आरबीआइ गवर्नर डा. शक्तिकांत दास शुक्रवार को इस समीक्षा के फैसले साझा करेंगे। महंगाई को लेकर उनके वक्तव्य की प्रतीक्षा वित्तीय सेक्टर से जुड़ी एजेंसियों, कंपनियों व आम उपभोक्ता वर्ग को है।
ज्यादातर विशेषज्ञ दास के अब तक के रिकार्ड को देखते हुए मान रहे हैं कि बैंकर इस बार भी नीतिगत दरों को महंगा नहीं करेंगे। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि महंगाई की वर्तमान दर को देखते हुए अब कर्ज की दर को बढ़ाने के फैसले को ज्यादा दिनों तक टाला नहीं जा सकता है।
भारतीय इकोनॉमी में सुधार अभी शुरुआती स्तर पर
श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस के एमडी व सीईओ वाईएस चक्रवर्ती का कहना है कि भारतीय इकोनॉमी में सुधार अभी काफी शुरुआती स्तर पर है। ऐसे में इस बार भी आरबीआइ की तरफ से वैधानिक दरों में कोई बदलाव होने की संभावना नहीं है। लेकिन विकास दर और महंगाई को लेकर आरबीआइ पुराने अनुमानों में बदलाव कर सकता है। कच्चे माल की कीमतों में लगातार वृद्धि और महंगाई की वजह से विकास दर के पुराने अनुमान को घटाने के आसार हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ब्राजील ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की
अधिकतर केंद्रीय बैंक फिलहाल महंगाई को थामने को ही प्राथमिकता देते नजर आते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ब्राजील ने ब्याज दरों में एक प्रतिशत तक बढ़ोतरी की है। बढ़ती महंगाई की वजह से पेरू, वेनेजुएला और श्रीलंका जैसे कई देशों में राजनीतिक माहौल काफी अस्थिर हो गया है। हाल ही में विश्व बैंक और एडीबी जैसे एजेंसियों ने भी दुनिया के केंद्रीय बैंकों के लिए महंगाई की चुनौती से लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा है। भारत में महंगाई आठ महीनों के शीर्ष पर है।