लखनऊ। पश्चिम बंगाल के ज़िला नदिया ग्राम दुर्गापुर के रहने वाले राना समद्दर नौकरी के सिलसिले में ईराक पहुंचे, जहां उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था. भोपाल के सैय्यद आबिद हुसैन की बदौलत राना अपने घर लौट सके.
राना समद्दर ने गुजरे दो साल ये साबित करने में बिताए हैं कि वह भारतीय हैं. यकीन भी ईराक जैसे मुल्क को दिलाना था. राना की कहानी भी भारत से ज्यादा पैसे के सपने लिए दूसरे मुल्कों में रोजगार के लिए जाने वाले नौजवान की ही कहानी है. लेकिन कहानी में फर्क ये है कि दीगर मुल्क में पैसे कमाने से ज्यादा बड़ा था राना के वजूद पर खड़ा किया गया ये सवाल कि उसकी नागरिकता संदिग्ध है.
राना ने दो साल हर घंटे सिर्फ एक जिद में गुजारे कि मुझे अपने वतन लौटना है. मुझे भारत वापस आना है. जिस वक्त ये खबर लिखी जा रही है इस वक्त तक राना पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर अपने गांव के रास्ते में होगा. ऐसे ही विदेशों में फंसे कई लोगों के लिए बजरंगी भाई जान बने भोपाल के सैय्यद आबिद हुसैन की बदौलत राना की घर और वतन वापसी मुमकिन हो पाई.
ईराक गए राना की नागरिकता पर सवाल…और संकट के दो साल
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर के रहने वाले 45 वर्ष के राना समन्दर चाइना की इंजीनियरंग कंपनी सीएएमसी में काम करने गए थे. 23 जनवरी 2023 को अम्बे कंसलटेंसी सप्लाई कंपनी के जरिए राना का ईराक का रास्ता बना. राना ईराक रवाना हो गए. लेकिन ईराक एयरपोर्ट पर ही इमिग्रेशन में उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. विदेश मंत्रालय और भारत-ईराक एम्बेसी में बातचीत करने के साथ लंबे समय तक राना को हिम्मत बंधाते रहे सैय्यद आबिद हुसैन पूरी कहानी बताते हैं.
आबिद कहते हैं, “राना का पासपोर्ट ये कहकर जब्त किया गया था कि उसकी नागरिकता संदिग्ध है. असल में उसे पश्चिम बंगाल का समझ लिया गया था. उसे एक टोकन दिया गया जो कंपनी के पास ही था. और कंपनी उसे ये दिलासा दिलाती रही कि उसका पासपोर्ट कंपनी उसे दिलवा देगी. इंतजार में पहले एक महीना बीता फिर धीरे धीरे करके दो साल गुजर गए और राना को लगने लगा कि अब उसकी वतन वापसी अटक गई है.”
ग्राम पंचायत का विदेश मंत्रालय से वैरीफाईड मूल निवास प्रमाण पत्र भेजने पर मिला पासपोर्ट
आबिद कहते हैं, “मेरे पास ये मामला बीती 26 जुलाई को आया था. ये पहला मामला था जिसमें कोई शख्स अपना सब कुछ लगाकर सिर्फ ये चाहता था कि उसके भारतीय होने पर सवाल ना उठाया जाए. राना ने जो कुछ कमाया सब वहीं लुटा दिया इस कोशिश में कि भारत लौट सकें. विदेश मंत्रालय दूतावास और परिवार वालों के सहयोग से जब उसका ग्राम पंचायत का विदेश मंत्रालय से वैरीफाईड पत्र उसका मूल निवास प्रमाण पत्र भेजा गया तब उसे पासपोर्ट मिला और राना की भारत वापसी हो पाई.”
मुझे बस हर कीमत पर अपने भारत लौटना था
राना ने इस दौरान वीडियो के जरिए अपनी आपबीती भारत तक पहुंचाई और बताया कि किस तरह से कंपनी ने उन्हे झांसे में लिया है कि उसका पासपोर्ट जल्द दे दिया जाएगा. वह भारत लौट सकेगा उसे दो साल वहां रहना पड़ा. राना की बहन ज्योत्सना समन्दर ने भी वीडियो के जरिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से ये अपील की थी कि वह उनके भाई की वतन वापसी करवा दें. ज्योत्सना ने बताया कि वह पश्चिम बंगाल में विधायक, मंत्री सबके पास गईं लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली. कहती हैं उधर कंपनी खाली हो रही थी. कंपनी बंद हो जाती तो मेरे भाई का लौटना नामुमकिन हो जाता.
राना ने कहा आबिद दादा ना होते तो मैं जिंदा नहीं होता
राना समन्दर ने दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही एक वीडियो बनाया और उसमें बताया कि उसके लिए बीते दो साल कितने संघर्ष भरे रहे. उन्होंने कहा कुछ महीने पहले से जब से दादा यानि आबिद हुसैन से बात हुई. और उन्होने जो हिम्मत बंधाई.. जो दिलासा दिया.. उसी की बदौलत मेरी वापसी मुमकिन हो पाई. वह नहीं होते तो मैं जिंदा नहीं होता.