अवधनामा संवाददाता
अतरौलिया आजमगढ़। रमजानुल मुबारक इस्लामिक कैलेंडर का नवां महीना है। रहमत व बरकत वाला महीना है। इसमें अल्लाह शैतान को कैद कर देता है। जिससे वह लोगों की इबादत में खलल ना डालें। रमजानुल मुबारक में हर नेकी का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। हर नवाफिल नफिल का सवाब सुन्नतों के बराबर, और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। इसी तरह सभी फर्ज का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। मतलब यह है कि इस माहे मुबारक में अल्लाह ताला की रहमत खुलकर अपने बंदों पर बरसती है। रमजान महीने में ही पाक कुरान शरीफ उतारा गया है। इस महीने में हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी इबादतें बढ़ा दिया करते थे। हालांकि अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम बख्शे बख्शाये थे, लेकिन वे दिन भर रोजा रखते और रात भर इबादत में गुजारते थे। पूरे रमजान माह को 3 अशरे में बांटा गया है। रमजान के पहला अशरा 10 दिनों का होता है दूसरे 10 दिनों को दूसरा आसरा और आखिरी 10 दिनों को तीसरा अशरा कहा जाता है। यानी पहले रोजे से 10वें रोजे तक पहला अशरा, 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा अशरा और 21वें रोजे से 30वें रोजे तक तीसरा अशरा। पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की एक हदीस है, जिसका मफूम है कि रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है, दूसरा अशरा अपने गुनाहों की माफी मांगने का है, और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह मांगने का है। रमजान के पहले अशरे में अल्लाह की रहमत के लिए ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए। इसी तरह रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह से अपने गुनाहों की रो-रोकर माफी मांगनी चाहिए। रमजान की तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह मांगने का है। रमजान के महीने में ईशां की नमाज के बाद मस्जिदों में तरावीह होती है। जिसमें 20 रकात नमाज हाफिजे कुरान, कुरान मजीद की तिलावत करते हैं। अतरौलिया स्थित जामा मस्जिद, नूरी मस्जिद और मदीना मस्जिद में हाफिजों द्वारा कुरान सुनाया जा रहा है। इस महीने में मस्जिदों की रौनक बढ़ गई है। नमाजियों के लिए मस्जिदों में जगह कम पड़ जा रहे है। जामा मस्जिद के पेश इमाम हजरत मौलाना अब्दुल बारी नईमी ने कहा कि अगर इसी तरह सभी लोग 12 महीना नमाज़ पढ़े और अल्लाह से दुआ करें तो मुसलमानों पर कोई भी मुसीबत नहीं आएगी। अल्लाह उन्हें महफूज रखेगा। अल्लाह ताला हम सभी मुसलमानों को रोजा रखने और नमाज पढ़ने की तौफीक अता फरमाए।