लाख टके का सवाल, मशहूर दरगाहों का सज्जादानशीन अब तक क्यो नही बन सका दलित मुस्लिम- वसीम राईन

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लखनऊ। अगर पिछड़े दलित यानी पसमांदा मुसलमान अपने आबादी के अनुपात में समाजी, सियासी, मजहबी हक -हिस्सेदारी व बराबरी की आवाज़ उठायें तो उनकी आवाज को गैर इस्लामी होने और उन पर मुसलमानों को बांटने का इल्ज़ाम लगा दिया जाता है यह बात ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने एक बयान में कही हैं उन्होंने कहाँ लेकिन यही लोग कुछ सवालों का जबाब देने के लिए नजरें भी चुराने लगते हैं
आजादी के बाद से आज तक जब पूरे मुसलमानों की 100% रहनुमाई यही लोग करते रहे, तो मुसलमानों की समाजी, माली और सियासी हालात, दलितों से भी बदतर होने का जिम्मेदार कौन हैं ।आजादी के बाद देवबंदी, बरेलवी, वहाबी, सल्फी, अहले हदीस जैसे कई-2 फिरके बनाकर मुसलमानों को बॉटने वाले, बड़े– बड़े मौलानाओं या सज्जादानशीनों में- क्या एक भी पिछड़ा दलित यानी पसमांदा मुसलमान भी है ।जब सभी मुसलमान भाई- भाई हैं, तो आज तक मदनी, बुखारी, फिरंगी, तौकीर रजा, नदवी, अशरफी, ओवैसी जैसों का एक भी करीबी रिश्तेदार, कोई पिछड़ा या दलित मुसलमान क्यों नहीं हैं अलबत्ता इनकी तमाम करीबी रिश्तेदारियॉ कई दूसरे मजहबों में जरूर हैं ।अगर पसमांदा मुसलमानों को हमारे मुस्लिम ब्राह्मण- अपना भाई समझते हैं, तो आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड सहित अन्य मुस्लिम संगठनों में अपने भाई को, मुनासिब हिस्सेदारी देने में परहेज़ क्यों ।अगर सारे मुसलमान भाई- भाई हैं या इन मुस्लिम ब्राह्मणो के दिल में, हम गरीब, कमजोर, पसमांदा मुसलमानों के लिए कोई भेदभाव , जाति, पात या कोई नफ़रत नहीं तो फिर हिन्दुस्तान में आज तक कोई भी पिछड़ा या दलित मुसलमान शाही इमाम, शहर काजी या नदवा, फिरंगी महल, महरैरा शरीफ, देवा शरीफ, अजमेर शरीफ, बरेली शरीफ, देवबंद वगैरह में सरबराहे आला या सज्जादानशीन क्यों नहीं बन पाया सोचिएगा पसमांदा मुसलमानो। हमारे ओल्मा एव क़ायदीन से गुज़ारिस हैं की सच्चर कमेटी, रंगनाथ कमीशन कई रिपोर्ट आ गई की पसमांदा मुसलमानो की हालत दलितों से भी बदत्तर हैं पर आप लोगो ने पसमांदा तबक़ात के लिए कुछ नहीं किया और न ही किसी को करने दे रहे हैं अब या पसमांदा के लिए कुछ करे या करने दे धोखेबाज़ी बंद करे।

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