सिद्धार्थनगर। काजी सुहेल को दूसरी बार कांग्रेस जिलाध्यक्ष का कमान यूं नहीं मिला है। उनके कार्यकाल की गहन समीक्षा के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें दूसरी बार मौका दिया है। कह सकते हैं कि यह उनके निष्ठा व ईमानदारी का ईनाम है।
सिद्धार्थनगर में कांग्रेस का जिलाध्यक्ष होने का मतलब कांटों का ताज पहनना। क्योंकि पिछले कई चुनावों से कांग्रेस का यहां कोई बेहतर परफार्म नहीं रहा और कांग्रेस में जो कुछ लोग हैं,उनमें भारी अंतर्विरोध है ही,वे किसी भी चुनाव में कांग्रेस के निर्णय के विपरीत काम करने में माहिर भी हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में कांग्रेस जिलाध्यक्ष का पद भार ग्रहण करना और सुचारू रूप से संचालित कर ले जाना बड़ी बात है। निसंदेह काजी सुहेल ने ऐसा कर दिखाया। लोकसभा हो या विधानसभा,किसी भी चुनाव में उन्होंने पार्टी नेतृत्व की मंशा को सर्वोपरि रखा है। यही उनकी कार्यकुशलता है। जिले में पार्टी अपने दम पर लड़ी हो या गठबंधन में,उन्होंने गठबंधन धर्म बखूबी निभाया।
अभी हाल ही संपन्न लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस और सपा का गठबंधन था। सपा से भीष्म शंकर तिवारी चुनाव लड़ रहे थे। भीष्म शंकर तिवारी के खिलाफ सपा के स्थानीय नेताओं के वायरल वीडीयो देखे/सुने गए लेकिन बतौर कांग्रेस अध्यक्ष काजी सुहेल गठबंधन के प्रत्याशी को जिताने के हर संभव कोशिश में लगे रहे। डुमरियागंज,जहां के वे रहने वाले हैं,सपा प्रत्याशी के पक्ष में शानदार प्रदर्शन कर दिखा दिया। पार्टी जिलाध्यक्ष के रूप में उन्होंने सदैव ही वह सब किया जो केंद्रीय नेतृत्व का निर्देश होता। वह चाहे धरना प्रदर्शन हो,ज्ञापन देना हो,पद यात्रा हो या जनसंपर्क अभियान सबमें उनका योगदान काबिले तारीफ होता।
ऐसे में यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि काजी सुहेल की काबिलियत का ख्याल रखते हुए पार्टी नेतृत्व ने उनपर एक बार फिर भरोसा जताया।
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