सुहैल काकोरवी
गर्म दोपहर और उर्दू के शीतल झोंकों के मध्य उर्दू ज़बान शीरीं के तहत एक निशिस्त बराए फरोग़-ए-उर्दू ज़बान, इल्म और तसव्वुफ के मरकज़ खानकाह काज़मिया के साहिब-ए-सज्जादा शाह ऐनुल हैदर क़लंदर ज़िया मियाँ की सरपरस्ती में मुनअकिद हुई जो अपने हृदय की चिकित्सा से हाल में स्वस्थ हुए और नशिस्त उनके स्वस्थ होने के जश्न की सूरत में हुई। दुबई में जश्न-ए-उर्दू के बानी और रूह-ए-रवां फरहान वास्ती के एजाज़ में मुनअकिद इस निशिस्त की निज़ामत शायर हसन काज़मी ने की, जो खानकाह से रूहानी तौर पर वाबस्ता हैं।
प्रसिध्द शायर सुहैल काकोरवी ने कहा कि सोशल मीडिया से पता चलता है कि शायरी और विशेषकर ग़ज़ल के हवाले से उर्दू न जानने वाले उर्दू सीख कर शायरी कर रहे है तथा गघ लेखन भी कर रहे हैं।बड़ी बात सही उच्चारण पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
सारा फातिमा ने बताया कि उर्दू ज़बान शीरीं के तहत वह उर्दू ज़बान से उन लोगों को आश्ना करने की कोशिश कर रही हैं जो उर्दू से नाबलद हैं। उनकी इस तहरीक में यह भी शामिल है कि दर्सगाहों में उर्दू को निसाब में शामिल किया जाए और इसे लाज़िमी बनाया जाए।
फरहान वास्ती ने बताया कि दुबई में उर्दू के मुशायरे मुनअकिद करके वह इसका परचम बुलंद कर रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी का कवि सम्मेलन भी शामिल है। उन्होंने अपने बच्चों को भी उर्दू पढ़वायी क्योंकि ज़ाती और इज्तिमाई तौर पर यह अमल लाज़िमी है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन लखनऊ के सदर सय्यद शुएब ने कहा कि उम्मीद है रूहानी फैज़ान के होते हुए फरोग़-ए-ज़बान-ए-उर्दू की सई में इशराक़-ए-कामरानी वाज़ेह है।
मेज़बान प्रोफेसर ज़ुन्नूरैन हैदर ने मेहमानों का इस्तकबाल किया। ऐनैन हैदर ने कलाम-ए-पाक की एक सूरह की तिलावत की। शेर-ख्वानी के दौर में हसन काज़मी ने शायरों का पुरअसर तआरुफ कराया। उन्होंने अपनी और सुहैल काकोरवी की ग़ालिब की मशहूर-ज़माना ज़मीन:
“बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे”
पर परसोज़ तरन्नुम में ग़ज़लें पढ़ीं।
सुहैल काकोरवी ने कहा कि उर्दू ज़बान शीरीं का कयाम खुलूस-ए-नीयत से हुआ है और इसमें नुमायाँ कामयाबी मिलेगी।
मखमूर काकोरवी, सुहैल काकोरवी, हसन काज़मी, ज़ीशान नियाज़ी, सय्यद असद अख्तर, मीना इरफान, अख्तर कानपुरी, नाज़िम बरेलवी, सलीम चौहान ने कलाम पढ़ा।
मज़हर हबीब अलवी, समीन खान, मेराज हैदर, सारा फातिमा, अनवर हबीब अलवी, ताहिरा हसन, फरहीन इकबाल, इमराना इज़्ज़त, निशात आमना वगैरह ने भी इज़हार-ए-खयाल किया।
शाह ऐनुल हैदर क़लंदर ने फरमाया कि हमारे अजदाद में हज़रत शाह मुहम्मद काज़िम क़लंदर और शाह तुराब अली क़लंदर बृज भाषा में कृष्ण भक्ति के मुस्तनद शायर हुए। शाह तुराब अली क़लंदर फारसी और उर्दू के साहिब-ए-दीवान शायर थे। उनका शुमार अपने दौर के उस्तादों में होता था। उर्दू सौहार्द की ज़बान है और खानकाह के बुजुर्गों ने उर्दू में तसव्वुफ पर मायानाज़ किताबें लिखीं। मुंतसबीन में भी मोतबर उर्दू के अदीब और शायर गुज़रे और मौजूद हैं।