Monday, May 19, 2025
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रमजान के अंतिम अशरे में इबादत का सिलसिला तेज

गोरखपुर। माह-ए-रमजान का अंतिम अशरा चल रहा है। बुधवार को 25वां रोजा मुकम्मल हो गया। चंद रोजे और बचे हुए हैं। माह-ए-रमजान रुखसत होने वाला है। ईद का त्योहार आने वाला है। ईद के लिए मुस्लिम घरों में तैयारियां तेज हैं। सेवईयों व सूखे मेवों की बिक्री बढ़ गई है। वहीं बाजार में ईद की जमकर खरीदारी हो रही है। इबादत का सिलसिला तेज है। तरावीह की नमाज पढ़ी जारी है। तिलावत-ए-कुरआन जारी है। एतिकाफ में बंदे खूब इबादत कर रहे हैं।

ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह का ईनाम है : मुफ्ती शुएब

मुफ्ती मुहम्मद शुएब रजा निजामी ने कहा कि हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ लाती है तो इसे लैलतुल जाइजा यानी ईनाम की रात के नाम से पुकारा जाता है। ईदैन की रात यानी शबे ईद-उल-फित्र और शबे ईद-उल-अजहा में सवाब के लिए खूब इबादत करनी चाहिए। पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ईद तो दरअसल उन खुशनसीब मुसलमानों के लिए है जिन्होंने रमजानुल मुबारक को रोजा, नमाज और दीगर इबादतों में गुजारा, तो यह ईद उनके लिए अल्लाह की तरफ से मजदूरी मिलने का दिन है। ईद की नमाज से पहले सदका-ए-फित्र अदा कर देना चाहिए। कसरत से सदका देना चाहिए। आपस में मुबारकबाद देना बाद नमाजे ईद हाथ मिलाना और गले मिलना बेहतर है। इससे भाईचारगी बढ़ती है।

फिल्म देखने में खर्च की जाने वाली रकम गरीबों पर खर्च करें : हाफिज रहमत

हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि इस्लाम धर्म में सिनेमा, नाच-गाना नाजायज व हराम है। अक्सर देखने में आता है कि माह-ए-रमजान के खत्म होने के बाद सिनेमा हॉलों में मुस्लिम समाज से काफी नौजवान जुटते हैं। फिल्मों के टिकट की एडवांस बुकिंग करवाते हैं। इन सारे कामों की इजाजत इस्लाम धर्म नहीं देता है। इन सब खुराफातों से आप खुद भी बचें और अपने परिवार, पास-पड़ोस व दोस्तों को बचाएं। फिल्म देखने में खर्च की जाने वाली रकम गरीबों, यतीमों, बेवाओं, बेसहारों पर खर्च करें। रमजान आपको अल्लाह का फरमाबरदार बनाने के लिए आया है। फिल्में देखकर आप शैतान की फरमाबरदारी न करें।

ईद अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने में पुल का काम करती है : हाजी सेराज 

हाजी सेराज अहमद ने बताया कि पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यदि समाज का एक तबका अपनी जायज जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है तो आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे उसे खुशहाल ज़िन्दगी बसर करने में मदद करें। यही अल्लाह के नेक बंदों का काम है। इस तरह ईद अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने में पुल का काम करती है।

रमजान इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाता है : मौलाना फिरोज

मौलाना मो. फिरोज निजामी ने बताया कि जरूरतमंद लोगों की ईद को खुशगवार बनाने के लिए मुसलमानों को सदका-ए-फित्र देने का हुक्म दिया गया है। यह उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जो जकात के हकदार हैं यानी गरीब, मजलूम और मिस्कीन मुसलमान। ईद की नमाज पढ़ने से पहले अनाज या पैसे की शक्ल में सदका-ए-फित्र निकाल देना चाहिए। अनाज के बजाए उसकी कीमत देना ज्यादा बेहतर है। रमजान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें। सिर्फ भूखे प्यासे न रहें बल्कि हर गैर मुनासिब काम से बचने की कोशिश करें। मुक़द्दस रमजान वो है जो इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाता है।

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