एस.एन.वर्मा
राजनीति कभी स्थिर नही रहती है। राष्ट्रीय हित और अन्तरराष्ट्रीय हित को साथ बदलती रहती है। जो कभी नीति होती है वह अनीति हो जाती है और जो नीति है वह अनीति हो जाती है। आज के माहौल में अमेरिका के चीन से दूर जाना भारत के नज़दीक आने ऊपर के नीति अनीति के सन्दर्भ में समझ जा सकता है।
एलएसी पर चीनी की वजह से बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने भारत को भरोसा दिलाया है कि वह भारत के साथ है। अमेरिका रक्षा मन्त्रालय ने अश्वस्त कराया है कि हिन्द प्रशान्त में वह अपने साझेदारों की सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध है।
आज भारत की दोस्ती का दम भरनेवाला अमेरिका 1971 के भारत पाक युद्ध में भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक कारवाई करने से रोकने का दबाव डाल रहा था और भारत को लगातार चेतावनी दे रहा था। उस समय पाकिस्तान अमेरिका के पाले में था। पाकिस्तान और अमेरिका सम्बन्ध बराबरी पर नही आधारित था। बल्कि पाकिस्तान अमेरिका का पिटठू देश गिना जाता था। अपने पीटठू देश पर भारत से उत्पपन्न हो रहे खतरे को देख उसने अपनी प्रतिष्ठा का भी ख्याल नही रक्खा। इतना ही नही अमेरिका ने पाकिस्तान को इस युद्ध में मदद देने के लिये अपनी नौ सेना के टास्क फोर्स-74 को भारत के समुद्री इलाके में भेजने का प्रादेश दे दिया था उस समय रूस पूरी तरह भारत के साथ था। अमेरिकी नौसेना के जहाजों को बेड़े को रोकने के लिये अपने चुनिन्दा नौसेना अधिकारी को लगा दिया था।
आज अन्तरराष्ट्रीय समारिक स्थितियां बदल गई है। अमेरिका पिछली नीति छोड़ आज भारत के साथ खड़ा है। इसलिये कि इस समय भारत और अमेरिका दोनो चीन के बढ़ते हुये कदमों से चिन्तित है। चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ अमेरिका की अगुवाई में क्वैड नाम का संगठन आकार ले रहा है। इस संगठन का भारत ऐक्टिव साझेदार है। इसीलिये चीन क्लैड के खिलाफ है क्योकि यह संगठन पूरी तरह उसके खिलाफ है। हिन्दप्रशान्त क्षेत्र में भारत की उपस्थिति को हल्के से नही लिया जा सकता और साथ में जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश का साथ हो। चीन समझता है इसीलिये वह भी चिन्तित है।
चीन ने 1962 में हिन्दी चीनी भाई भाई का गला घोखा देकर किस तरह घोटा सभी जानते है। पर 1971 की लड़ाई में चूकि भारत पाक के साथ था। इसलिये भारत के विजय अभियान को रोकने के लिये उसने चीन को सलाह दी थी कि भारत के खिलाफ जमीनी इलाके से एक और मोर्चा खोल दे। तब चीन के अमेरिका के सलाह को ठुकरा दिया था। उस समय रूस भारत के साथ था। रूस ने चीन को धमकाया था कि अगर चीनी सेना लद्दाख में भारत पर सैनिक दबाव बनाया तो रूस चीन के विद्रोहग्रस्त शिचियांग में कारवाई करेगा। चीन रूस की इस चेतावनी से डर गया क्योंकि तब रूस और चीन के सम्बन्ध तनाव के दौर से गुजर रहा था। अमेरिका चीन और रूस के तनाव का लाभ उठा कर चीन को अपने पाले में खीचने की कोशिश की थी। चीन अमेरिका के इस प्रस्ताव से उत्साहित था। इसी को देखते हुये राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को चीन ने अपने यहां दौरे के लिये अमन्त्रित किया था।
आज के दौर में राजनीति ने फिर रंग बदला। इस समय चीन रूस के साथ खड़ा है और अमेरिका भारत के साथ खड़ा है। रूस पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ता बना लिया है, पर भारत और चीन के बीच तटस्थ भूमिका निभा रहा है जैसे भारत रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच निभा रहा है।
राजनीति में न कोई स्थाई दुश्मन होता है न स्थाई मित्र। अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हितो के परिप्रेक्ष में दोस्ती दुश्मनी बदलती रहती है। इसीलिये कहते है राजनीति के रंग हज़ार।