‘’क़ौमी एकता के लिए गाँधी जी ने अपने जीवन का आख़िरी उपवास 13 जनवरी को रखा था। उसी की याद में आज शहर के विभिन्न संगठनों ने गाँधी प्रतिमा, हजरतगंज पर इकट्ठा हो कर देश की एकता और साम्प्रदायिक उन्माद के ख़िलाफ़ एक दिन के उपवास का कार्यक्रम रखा था
।सुबह 10 बजे प्रो. रमेश दीक्षित, वंदना मिश्रा, राकेश, प्रो रूपरेखा वर्मा,नाहीद अक़ील, अमीक़ जामेई, शावेज़ वारिस, अंकिता मिश्र, तज़ीन, तसनीम, अनम, आदि गाँधी प्रतिमा पर उपवास पर बैठे। इसके साथ ही भारी पुलिस बल ने चारों तरफ़ से घेर लिया और वहाँ बैठने से मना किया। संगठन के सदस्यों ने कहा कि हम लोग यहाँ पर सरकार का विरोध करने नहीं आये हैं। गाँधी जी के आखिरी उपवास की तिथि पर उनको श्रद्धांजलि देने और उनके भजन गाने आये हैं।
पुलिस वालों ने एक न सुनी और चिल्लाने लगे कि अपने ऑफ़िस में जाओ और वहीं भजन करो। ये पूछने पर कि हमारा ऑफ़िस कहाँ है पुलिस ने कम्युनिस्ट पार्टी के हजरतगंज ऑफ़िस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि एक एक को पहचानते है, तुम लोग कम्युनिस्ट हो। वहीं जाओ हालाँकि हममें से एक भी वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं था। हमने पुलिस को बताया कि हम पार्टी के नहीं हैं लेकिन पुलिस के लोग लगातार यही कहते रहे कि वो जानते हैं कि हम कम्युनिस्ट पार्टी के हैं और वो हमें यहाँ बैठने नहीं देंगे। एक महिला पुलिस ये भी बोली कि गाँधी के सामने उपवास रखने से क्या फ़ायदा जिसने देश के दो टुकड़े कर दिए। पुलिस ने अमीक़ जामेई और शावेज़ वारिस के साथ धक्का मुक्की की। एक महिला पुलिस ने तंज़ किया कि बकरा काटेंगे, खाएंगे और यहाँ आ कर बवाल करेंगे। प्रो. रूपरेखा वर्मा के साथ पुलिस ने बदतमीज़ी की।
उनके ऊपर दंगा भड़काने का आरोप लगाया । कहा कि आप ने ही दंगे कराए हैं, पूरे शहर में आप ने ही दंगे कराए। आप की तलाश में है हम। पुलिस ने धक्का मुक्की की और एक ऑटो को रोक कर ज़बरदस्ती उसमे बैठा दिया। अमीक़ जामेई को सर पर मारा और गर्दन से पकड़ कर अपनी जीप में थाने ले गये और उन्हें धक्का देते रहे। थोड़ी देर में जामेई साहब को उनके घर छोड़ गया। इस तरह योगी पुलिस की बर्बरता की वजह से शांतिपूर्ण उपवास कार्यक्रम नहीं हो सका जबकि न तो वहाँ पर कोई बैनर लगाया गया था न ही कोई प्लेकार्ड । कोई नारे भी नहीं लगाये गए थे।’’
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