इस समय मुसलमान होने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक है। जो महिलाएं मुसलमान हो रही हैं उनमें से एक Marzena Goralska “मर्ज़ेना गोराल्स्का” भी हैं।
Marzena Goralska “मर्ज़ेना गोरालस्का” पोलैण्ड की रहने वाली हैं। उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। ईसाई धर्म की शिक्षाओं के संबन्ध में जब गोराल्स्का ने सवाल पूछने शुरू किये तो उनको इस बारे में संतोष जनक उत्तर नहीं मिले। उनको लगा कि उनकी धार्मिक शिक्षाओं में कुछ खुले विरोधाभास पाए जाते हैं।
किशोरावस्था में ही उनके भीतर धर्म की वास्तविकता जानने की इच्छा जागृत हुई। गोराल्स्का का कहना था कि मेरी समझ में यह नहीं आता था कि ईसा मसीह, ईश्वर कैसे हो सकते हैं? वे कहती हैं कि ईसा मसीह का ईश्वर होना मुझको अतार्किक लगता था। सोराल्स्का के मन में इसी प्रकार के बहुत से प्रश्न उठने लगे और वे इनके उत्तर की तलाश में रहने लगीं।
इसी बीच उन्होंने एक मुसलमान से शादी कर ली। पोलैण्ड की इस महिला का कहना है कि एक मुसलमान व्यक्ति से शादी करने के बावजूद मैं मुसलमान नहीं हुई थी किंतु इस्लाम के बारे में मैंने अपने पति से बहुत से प्रश्न किये। वे कहती हैं कि मेरे पति ने मुझ पर मुसलमान होने के लिए दबाव नहीं बनाया। उनका कहना था कि जब मैंने अपने पति से इस्लाम के बारे में प्रश्न किये तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम स्वयं अध्धयन करो। इसके लिए उन्होंने मुझको कुछ किताबें लाकर दीं जिनको मैंने पढ़ा। बाद में मैंने अपने मन में धर्मों के बारे में उठने वाले प्रश्नों के जवाब के लिए धर्मगुरूओं से भी प्रश्न पूछे। अंत में मैं इस निश्कर्ष पर पहुंची कि इस्लामी शिक्षाएं तार्किक हैं। अंततः पोलैण्ड निवासी “मर्ज़ेना गोराल्स्का” ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।
गोराल्स्का कहती हैं कि मैं इस्लामी शिक्षाओं का बहुत गहराई से अध्ययन कर रही थी। मेरे बहुत से प्रश्नों के उत्तर मुझको मिल चुके थे किंतु मैं अभी भी इसाई धर्म पर ही थी। उनका कहना था कि एक बार मैं जब सुबह सोकर उठी तो जैसा कि मैं पहले लगातार सोचती थी कि इस्लाम को अपनाऊं या न अपनाऊं तो आज भी मेरे मन में यही सवाल फिर उठा। मेरे मन में यह विचार आया कि हो सकता है कि कोई घटना घटे जिसके कारण मेरी मौत हो जाए या मेरी स्वभाविक मौत हो जाए तो बेहतर यह है कि मैं एक मुसलमान के रूप में इस दुनिया से जाऊं।
इसी बात के दृष्टिगत मैंने इस्लाम स्वीकार कर लिया क्योंकि मैं ग़ैर मुस्लिम नहीं मरना चाहती थी। गोराल्स्का का मानना है कि इस्लाम स्वीकार करना मेरे लिए एक नए जीवन की तरह था। अब मैं प्रयास करके स्वयं को अच्छा बना सकती हूं। मैं अच्छे कामों को अपनाते हुए बुरे कामों से दूरी करके एक अच्छा भविष्य निर्धारित कर सकती हूं। वे कहती हैं कि इस्लाम स्वीकार करने के बाद मैंने जिस आनंद का आभास किया उसे मैं शब्दों में नहीं बता सकती। मैंने पूरी जानकारी और बिना किसी दबाव के इस्लाम स्वीकार किया और मैं उसपर क़ाएम हूं।
वे लोग जो इस्लाम में महिला के स्थान और महत्व के बारे में अध्ययन और शोध करते हैं उनको पता चलता है कि इस्लाम, महिला को आध्यात्मिक आयाम से देखता है केवल भौतिक दृष्टि से नहीं। इस्लाम का महिलाओं से यह कहना है कि वे समाज में इस प्रकार से हाज़िर हों कि उनका दुरूपयोग न किया जा सके। श्रीमती गोराल्स्का, महिलाओं के बारे में इस्लाम के इस दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं। वे कहती हैं कि जब मैंने इस्लाम में महिला के महत्व के बारे में खोजबीन की तो देखा कि महिला के व्यक्तित्व को अहमियत दी गई है। वे कहती हैं कि महिला के लिए ज्ञान और दक्षता का अधिक महत्व है न कि उसके बाहरी रूप का। श्रीमती गोराल्स्का कहती हैं कि वास्तव में सुन्दरता मनुष्य के भीतर होती है जो उसके बाहरी रूप को भी सुन्दर बनाती है। मैं इसको स्वतंत्रता मानती हूं क्योंकि मैं इसलिए मजबूर नहीं हूं कि किसी के कहने पर अपना जीवन गुज़ारूं। मेरे निकट इस बात का कोई महत्व नहीं है कि दूसरों की दृष्टि में मैं कैसी हूं।
जब कोई मुसलमान होता है तो उसके सामने यह सवाल भी आता है कि इबादत करने के लिए वह किस विचारधारा को अपनाए? दूसरे शब्दों में उसे स्पष्ट करना होता है कि वह किस पंथ का अनुसरण करे। हालांकि मुसलमानों के भीतर पाए जाने वाले पंथों में अधिकतर बातें संयुक्त हैं किंतु कहीं-कहीं पर थोड़ा सा मतभेद भी पाया जाता है। श्रीमती गोरालस्का कहती हैं कि जब मैं मुसलमान हुई तो मेरे सामने भी यह मुद्दा आया। वे कहती हैं कि न तो मुझको किसी व्यक्ति ने मुसलमान किया था और न ही किसी संस्था के माध्यम से मैंने इस्लाम स्वीकार किया था। मैंने गहन अध्ययन करने के बाद इस्लाम को गले लगाया। मेरे पति ने मुझको यह तो बताया था कि मुसलमानों में कई पंथ हैं किंतु किसे अपनाया जाए यह काम तुम्हारा है मेरा नहीं।
श्रीमती गोरालस्का कहती हैं कि मैंने इस्लाम के अन्य पंथों के बारे में भी अध्ययन शुरू किया। इसी बीच मेरी नज़र पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन पर पड़ी जो उन्होंने अपने अन्तिम हज के समय दिया था। इस कथन में आपने कहा था कि मैं अपने पीछे दो बहुमूल्य चीज़ें छोड़े जा रहा हूं। एक पवित्र क़ुरआन और दूसरे मेरे परिजन। जब तक तुम इन दोनों को अपनाए रहोगे कभी भी गुमराह नहीं होगे। गोराल्स्की कहती हैं कि मैंने देखा की हज़रत मुहम्मद का यह कथन ऐसा है जिसको मुसलमानों के सारे ही पंथ मानते हैं इसलिए मैंने इसका अनुसरण करते हुए शिया मत अपनाया और शिया मुसलमान बन गई।