सूफी मत एवं बाबा फरीद की शख्सियत : अब्बास धालीवाल मालेर कोटला।

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सूफी मत एवं बाबा फरीद की शख्सियत
सूफी मत एक रहस्यवादी, उदारवादी तथा समन्वयवादी दर्शन की एक संज्ञा के समान है ।दरअसल सूफियों ने कुरान की रहस्यवादी एवं उदार व्याख्या की जिसे तरीकत कहा जाता है । यहां उल्लेखनीय है कि सूफी आन्दोलन का व्यवस्थित रूप अब्बासियों की खिलाफत के दौरान से हुआ माना जाता है ।
सूफी मत में संसार की सभी प्रमुख धार्मिक विचारधाराओं को सम्मिलित किया गया । इस्लाम धर्म के इलावा इस में हिन्दु वेदान्त, बौद्ध, यूनानी, ईसाई आदि मतों के सिद्धान्तों का भी समावेश किया गया था । सूफी सन्तों तथा फकीरों ने भी हिन्दु-मुस्लिम सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया ।
प्रोफेसर गुलवंत सिंह के मुताबिक सूफीवाद का अस्ल अर्थ दो बातों पर निर्भर करता है। पहली के मुताबिक सूफी संवेय को मिटा चुका हो । दिल का साफ हो लोभ-लालच पर काबू पा चुका हो एवं अल्लाह के जुड़ हो इस के साथ-साथ वह कुरान एवं सुन्नत में दिए आदेशों अनुसार पूरन रूप से चलने वाला हो। यहां उल्लेखनीय है कि प्रत्येक सूफी को कुछ विशेष अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है जैसे कि उबूदियत, तरीकत (इश्क), मारिफात, हकीकत, फना आदि ।
मुस्लिम रहस्यवाद का जन्म बहादातुल बुजूद (आत्मा-परमात्मा) की एकता के सिद्धान्त से हुआ । इसमें हक को परमात्मा और खल्क को सृष्टि माना गया है ।
मध्यकालीन भारत में हिन्दुओं में जहां भक्ति-आंदोलन की शुरूआत हुई , वहीं मुसलमानों में प्रेम-भक्ति के आधार पर सूफीवाद का आरंभ हुआ।
जहां तक सूफी शब्द की उत्पत्ति का संबंध है तो इस की उत्पत्ति दरअसल सफा लफ्ज़ से हुई। सफा के अर्थ पवित्र के हैं । मुसलमानों में जो सन्त पवित्रता और त्याग का जीवन बिताते थे, वे सूफी कहलाते थे । एक दूसरी जगह यह भी कहा गया है कि सूफी शब्द की उत्पत्ति सूफा से हुई, जिसका अर्थ है ऊन। कहा जाता है जो सन्त ऊनी कपड़े पहनकर अपने मत का प्रचार करते थे, वे सूफी कहलाये। इस के अलावा कुछ विद्वानों का विचार है कि सूफी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द सोफिया से हुई, जिसका अर्थ ज्ञान (इल्म) होता है।
सूफी मत के संदर्भ में जब हम भारत की बात करते हैं तो इस में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, ख्वाजा कुतुबुद्दीन, बाबा फरीद शकर गंज और निजामुद्दीन औलिया के नाम प्रमुख तोर पर सामने आते हैं ।
यहां उल्लेखनीय है कि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती मुहम्मद गोरी के साथ यहां आये थे और इस के बाद उन्होंने अजमेर को अपना निवास-स्थान बनाया था । संत चिश्ती का प्रभाव हिन्दू और मुसलमान धर्म के मानने वालों पर बहुत गहरा प्रभाव था । आज भी अजमेर में उनकी कब्र पर देश के विभिन्न क्षेत्रों के साथ साथ विदेशों से हजारों श्रद्धालु भक्तभी आते हैं।
जबकि ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी इल्तुतमिश के दौर में दिल्ली आए। सुल्तान इल्तुतमिश इनसे बड़ा प्रभावित थे कुतुबुद्दीन बड़ी सादगी और पवित्रता का जीवन बिताते और दूसरों को भी इस की प्रेरणा देते थे। बाबा फरीद उन के प्रसिद्ध शिष्य सन्तों में से एक हुए हैं ।
सन्त फरीद के बुजुर्ग काबुल से हिंदूसतान आए थे आपके पिता का नाम जमालूदीन और माता का नाम कुरसम बीबी था आप के दादा को मुल्तान खोटौवाल का काजी मुकर्रर किया गया था। आप ने सभी को प्रेम एवं पवित्रता का उपदेश दिया।
निजामुद्दीन औलिया प्रसिद्ध शासक ग्यासुद्दीन तुगलक और मुहम्मद तुगलक के समकालीन थे। दिल्ली इनके कार्यकलापों का प्रमुख केन्द्र थी। मुहम्मद तुगलक इनके प्रिय शिष्य थे । निजामुद्दीन औलिया का जनसाधारण पर बड़ा प्रभाव। आपकी कब्र की निजामुद्दीन (दिल्ली) में है, जहाँ हजारों श्रद्धालु अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं।
जब हम सूफी मत में विभिन्न सिलसिलों (सम्प्रदायों की बात करते हैं तो इन सम्प्रदायों की निश्चित संख्या के बारे में विद्वानों में मतभेद है। फिर भी एक अंदाजा के मुताबिक इनकी संख्या 175 के करीब मानी जाती है। जब कि इस संदर्भ में अबुल फजल ने आइन में 14 सिलसिलों का जिक्र किया है। इन सम्प्रदायों में से भारत में प्रमुख रूप से चार सम्प्रदाय- चिश्ती, सुहारावर्दी, कादरी और नक्शबन्दी सब से अधिक प्रसिद्ध माने जाते हैं।
हमारे देश में चिश्ती सम्प्रदाय सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध है । आज हम इस लेख में इसी चिश्ती समुदाय के संदर्भ में बात करेंगे। इस सम्प्रदाय की स्थापना मुईनुउद्दीन चिश्ती ने की। यहां उल्लेखनीय है कि मुईनुद्दीन चिश्ती 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ भारत आये थे। आप ने अजमेर को चिश्ती सम्प्रदाय का केन्द्र बनाया। मुईनुउद्दीन चिश्ती हिन्दू और मुसलमान दोनों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय थे और दोनों धर्मों में इनके शिष्य थे। मुईनुउद्दीन चिश्ती का यह वचन था कि खुदा अपने उस आदमी को बहुत पसंद करता है जो दरिया की तरह फियाज हो जिस में सूरज जैसी रहिम दिली धरती की तरह महमान नवाज हो।
इस चिश्ती सम्प्रदाय में मुईनउद्दीन चिश्ती के अतिरिक्त जो प्रमुख सन्त हुए, उन में ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, ख्वाजा फरीदउद्दीन मसूद गंज-ए-शिकार, शेख निजामुद्दीन औलिया, शेख नसीर-उद्दीन चिराग-ए-दिल्ली, शेख अब्दुल हक, हजरत अशरफ जहाँगीर, शेख हुसम उद्दीन मानिक पुरी और हजरत गेसू दराज आदि शामिल हैं ।
कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने चिश्ती सम्प्रदाय को और अधिक विस्तृत बनाया। काकी सुल्तान इल्तुतमिश के समकालीन थे।
काकी के उत्तराधिकारी ख्वाजा फरीद उद्दीन मसूद गंजे शकार माया-मोह से कोसो दूर रहते थे। एक बार बाबा फरीद से किसी ने पूछा कि दुनिया में अमीर कौन है तो आप ने कहा जिस में कनाअत पसंदी (यानी जो मिल जाए उसी पर राजी) हो। आप ने लंबी आयु पाई थी अर्थात 93 वर्ष की आयु में 12 अक्तूबर 1266 ई. में आप का इंतकाल हुआ । बाबा फरीद की शख्सियत तीन विशेष तरह के गुणों से लबरेज थी जैसे कि खुदा से मुहब्बत करना, पवित्र विचार रखना और दौलत एवं आराम से दूर रहना। ऐसे ही एक बार सुल्तान बलबन ने बाबा फरीद को कुछ नकद रकम और चार गांव तोह्फ़ा की शक्ल में दिए। बाबा ने नकद राशि तो गरीबों में बांट दी लेकिन गांव सुल्तान बलबन को यह कहते हुए वापस कर दिये कि अगर में इन्हें रखूंगा तो में सूफी ना रह कर जमींदार बन जाऊंगा! उल्लेखनीय है कि आप के करीब एक बीस श्लोक सिखों के पवित्र किताब गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। आप के प्रसिद्ध शिष्य निजामुद्दीन औलिया ने आगे बढ़ाते हुए एक पीक तक पहुंचाया और अपने मत का केन्द्र दिल्ली को बनाया।
आज जिस नाजुक घड़ी में देश के लोग जीवन के दिन काट रहे हैं ऐसे में सूफी मत ने जो हमें आपसी विश्वास, प्यार, सद्भावना और सादगी से रहने की प्रेरणाऐं दी हैं जरूरत है कि आज हम लोग उनका अनुसरण करें और उनके बताए हुए नेकी के रास्ते पर चलें।
अब्बास धालीवाल
मालेर कोटला।
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