केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय की गाइडलाइंस को ताक पर रख कर चल रही हैं पैथालोजी

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अवधनामा संवाददाता हिफजुर्रहमान

क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट के नियमों का नही हो रहा है पालन

बिना रेडियोलोजिस्ट व पैथालोजिस्ट के की जा रही है जांचे   

मौदहा-हमीरपुर। हमीरपुर जनपद जो खनन माफियाओं की वजह से सदैव अखबारों में छाया रहता है लगगभ उन्ही खनन माफियाओं के तर्ज पर जिले भर में स्वास्थ्य माफियाओं का गिरोह भी सक्रीय है खनन माफिया तो नदियों का सीना चीर कर अपनी जेबे भरतें हैं लेकिन स्वास्थ्य माफिया इन्सानों की जिन्दगियों से खिलवाड़ कर के भर रहे हैं अपनी जेबे।बिना ऐक्सपर्ट की उपस्थिति के खून पेशाब, बल्गम तथा अल्ट्रासाउंड धडल्ले से किये जा रहे है वहीं जाचें लेकर जब मरीज कानपुर व लखनऊ जाते हैं तो वहां डाक्टरों द्वारा यहां की रिपोर्टों को डस्टबीन में फेंक दिया जाता है। झोलाछाप डाक्टरों के अलावा गैर कानूनी पैथोलॉजी व रैडियालोजी मुख्य चिकित्सा अधिकारी के नाक के नीचे ही चल रही हैं तो जनपद के शेष क्षेत्र का क्या हाल होगा इस का अनुमान लगाना असम्भव है। हमीरपुर का स्वास्थ्य विभाग इन को रोकने में पूर्णता असफल है। हमीरपुर व मौदहा कस्बे में इलाज व जांच के नाम पर धडल्ले से चल रहे हैं गैरकानूनी कारोबार केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस जिस में क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट के तहत जो नियम रखे गये हैं उन का जनपद में न कोई क्लिनिक न कोई पैथोलॉजी और न कोई नर्सिंग होम पालन कर रहे हैं तो सवाल उठना लाजमी है  कि आखिर फिर यह क्यो और कैसे चल रहे है? तो इस जवाब तलाशना जरूरी हैं। नियमानुसार  सभी पैथोलॉजी को रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। इसके अलावा लैब में एक बोर्ड भी डिस्पले करना होता है  जिसमें एमबीबीएस डॉक्टर और लैब में काम करने वालों की योग्यता लिखनी होती है लेकिन अधिकांश पैथोलॉजीयों में यह सब देखनें को नही मिलता। पहले एक ही  पैथोलॉजी लैब में हर तरह की जांच होती थी। ब्लड प्रोफाइल से लेकर टिश्यू तक सभी तरह की जांच करके मरीजों से काफी फीस भी ली जाती थी लेकिन सरकार ने अब लाइसेंस लेते वक्त ही इसे फिक्स कर तीन वर्गों में इसे बांट दिया है बेसिक, मीडियम और एडवांस स्टेज में सभी प्रकार की जांचों को रखा है। जांच केंद्र को हर तरह की जांच करने की इजाजत नहीं होगी। रजिस्ट्रेशन कैटेगरी के हिसाब से गाइडलाइंस भी तय की गई है।       स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रावधान रखा है कि इन नियमों का उल्लंघन करने पर दोषी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का होगी । इसमें उल्लंघन करने पर लैब का लाइसेंस निरस्त और दोषी को कम से कम 3 वर्ष का कारावास तक शामिल होगा। सबसे जरूरी है कि हर पैथोलॉजी में माइक्रोबॉयोलॉजी के डिग्रीधारक होना अनिवार्य है। अभी तक यह नियम नहीं था। साथ ही जांच रिपोर्ट पर एमबीबीएस डॉक्टर की मंजूरी होनी चाहिए।  लेकिन हमीरपुर जनपद क्षेत्र  में बिना रजिस्ट्रेशन के सैकड़ों पैथोलॉजी सेंटर धड़ल्ले से चल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी से संचालक मालामाल हो रहे हैं। इन सेंटरों पर किसी विशेषज्ञ चिकित्सक के न होने से जांच रिपोर्ट भी भ्रामक होती है।
गांव हो या शहर गंदगी और प्रदूषण के कारण हर जगह रोगियों की संख्या बेहिसाब बढ़ रही है। हालत यह है कि शहरों से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इससे गांवों से लेकर कस्बों तक पैथोलॉजी सेंटरों की बाढ़ सी आ गई है। नीम हकीम भी किसी न किसी जांच के बहाने मरीजों को पैथोलॉजी भेज देते हैं। हर जांच में उनका भी हिस्सा तय होता है। मरता क्या न करता वाली तर्ज पर मरीज और उनके तीमारदार जांच कराने के लिए मजबूर होते हैं। इससे इन पैथालॉजी सेंटरों पर मरीजों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है।
जांच केंद्र के लिए विभाग में कुछ लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवा रखा है। बाकी बिना रजिस्ट्रेशन के ही चला रहें है पैथोलॉजी। रजिस्टर्ड पैथोलॉजी चलाने वाले संचालक एक संचालन नें बताया कि विभाग के अफसरों  बिना रजिस्ट्रेशन व गैर कानूनी पैथालोजी चलाने वालों के बारे में स्वास्थ्य विभाग को बताया भी जाता है परंतु उन पर  कोई कार्रवाई नहीं होती। दूसरे संचालक का कहना है कि सब कमाई का खेल है। जान-बूझकर अवैध केंद्र नजरंदाज किए जाते हैं। इतना ही नहीं अवैध संचालकों को छापेमारी की पहले ही सूचना दे देते हैं। ऐसे सेंटरों पर बोर्ड तक नहीं होता जिससे वे दुकान बंद कर खिसक लेते हैं। यदि कभी पकड़े भी जाते हैं तो ले-देकर उन्हे क्लीन चिट पकड़ा दी जाती है।

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