अवधनामा संवाददाता
सहारनपुर। सहारनपुर के आदर्श शिक्षक पंडित विशंभर सिंह स्वातंत्र्य योद्धा व समाज सुधारक होने के साथ-साथ नगर के पहले शिक्षक थे, जिन्हें सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन ने स्वयं अपने हाथों से राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से नवाजा था। नगरपालिका के विद्यालय में शिक्षक रहते हुए उन्होंने शिक्षा को केवल किताबी पढ़ाई से बाहर निकालकर समाज व देश के लिए उपयोगी नागरिक तैयार करने की एक नई शैली देते हुए नगर के पहले राष्ट्रीय शिक्षक होने का गौरव पाया तो सहारनपुर नगर निगम ने ऐसे महापुरुष के सम्मान में भव्य पंडित विशंभर सिंह द्वार व उन्हीं के नाम पर मार्ग का नामकरण करने का ऐसा गौरव पा लिया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उसका लोकार्पण करने के लिए सहारनपुर आए हैं।
पंडित जी के पुत्र और अंतरराष्ट्रीय योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने एक बार उन्हें अपनी ठेठ बागपती भाषा में बोलते हुए बताया था पंडित विशंभर सिंह से मेरा बहुत पुराना बचपन का नाता है, उनका लड़ाई लड़ने का ढंग निराला था, वह स्वयं सक्रिय रहते हुए क्रांतिकारियों को संरक्षण देने और उनके परिवारों की मदद करने में नहीं चूकते थे। चौधरी चरण सिंह ने बताया कि बाद में भले ही जेल में सजा काटना स्वाधीनता सेनानी होने का आधार बन गया हो लेकिन इसकी वजह से वह लोग भी सेनानी होने की पेंशन पाने लगे जो उस दौर में अन्य अपराधों में भी सजा काट रहे थे। उन्होंने अपनी और पंडित जी की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम लोगों ने पेंशन पाने के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी मैं तो बस एक जज्बा था और हमारे गुरु महर्षि दयानंद ही प्रेरणा थी। एक रोचक संस्मरण सुनाते हुए चौधरी साहब ने बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जी ने एक बार तो मुझे पुलिस की गारद से बचाकर अपने घर मैं बुक से में लुको (छिपा) लिया था और गारद को खाली हाथ बैरंग ही वापस जाना पड़ा था। चौधरी साहब ने बताया कि जब हम लोग जेल में जाते थे तो पीछे पंडित जी देश की आजादी के लिए जेल जाने वालों के परिवारों की मदद करते थे जो उन दिनों बड़े जोखिम का काम था। स्वामी भारत भूषण ने बताया कि मुझे उस दिन अपनी कोई परंपरा पर अत्यंत गर्व हुआ था जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुझे एक भेंट के दौरान बताया कि बिहार के गवर्नर रहते हुए वह बाढ़ जिले में गंगा किनारे स्थित जल गोविंद मठ पर गए हैं पंडित जी जिस के महंत हुआ करते थे। पंडित जी आजादी के बाद बनी प्रदेश की प्रथम पाठ्यक्रम समिति के सदस्य थे शिक्षा मंत्री डॉ संपूर्णानंद ने उनके विचारों को विशेष महत्व देते हुए पंडित जी की पहल पर उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 से 12 तक हिंदी के साथ अनिवार्य संस्कृत पढ़ाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। असंभव शब्द पंडित विशंभर सिंह के शब्दकोश में नहीं था। नगरपालिका के विद्यालय में शिक्षक रहते हुए उन्होंने शिक्षा को केवल किताबी पढ़ाई से बाहर निकालकर समाज व देश के लिए उपयोगी नागरिक तैयार करने की एक नई शैली देते हुए नगर के पहले राष्ट्रीय शिक्षक होने का गौरव पाया तो सहारनपुर नगर निगम ने ऐसे महापुरुष के सम्मान में भव्य पंडित विशंभर सिंह द्वार व उन्हीं के नाम पर मार्ग का नामकरण करने का ऐसा गौरव पा लिया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उसका लोकार्पण करने के लिए सहारनपुर आए हैं। राष्ट्रपति ने सुना में भारत भूषण को बताया था कि बिहार का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने वह जल गोविंद मठ के दर्शन किए थे जिसके पंडित जी महंत थे जिसे त्याग कर उन्होंने आर्य समाज, अध्यापन और देश दीवानगी की राह पकड़ ली थी। राष्ट्रीय शिक्षक पंडित विशंभर सिंह द्वारा शिक्षकों व समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।