पाकिस्तान की उलझने

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

पाकिस्तान में कुछ भी बदले सियासत की पेचीदगियां बरकारार रहती है। सेना की प्रभुता के आगे सारी सियासत फीकी रहती है। शुरू करते है जुल्फिकार अली मुद्दो प्रधानमंत्री रह चुके है। 1988 में बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनी। मुस्लिम जगत में महिला के प्रधानमंत्री बनने की पहली घटना थी। बेनजीर जब जनमत प्राप्त करने का बाद प्रधानमंत्री बनने का हकदार बनी तब सेना और राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान बेगम भुट्टो को प्रधानमंत्री बनने देना नहीं चहते थे। आगे चलकर बेगम के शौहर आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति बने।
किसी तरह बेनजीर प्रधानमंत्री की शपथ लेने के लिये घबराई सी आई। मां नुसरत भुट्टो की आंखो से आंसू बह रहे थे। क्योंकि मां को पुत्री की कम उम्र पर तरस आ रहा था। जिम्मेदारी बड़ी थी उम्र छोटी थी। बेनज़ीर अपने मन्त्रीमंडल का गठन करने में मशगूल थी पर सैन्य प्रतिष्ठान विदेश मंत्री और वित्तमंत्री अपनी पसन्द का बैठने के लिये अड़ा था। बेगम को अपना मंत्री चुनने का अधिकार सैन्य और सत्ता प्रतिष्ठान हमेशा की तरह अपने अख्तियार में रख दोनों पर अपने पसन्द के आदमी को बैठाया। उस समय सैन्य प्रतिष्ठान ने सहिब याकूब खान को विदेश मन्त्रालय की कुर्सी पर बैठाया। सत्ता प्रतिष्ठान और सैन्य प्रतिष्ठान की बादशाहत आज भी कायम है और आगे भी रहेगी। यह पाकिस्तानी प्रजातन्त्र का नसीब है। इसी के परिप्रेक्ष में इमरान सरकार के जाने और नई सरकार बनने के बीच क्या-क्या हुआ वह पाकिस्तान की पुरानी रवायत का नमूना है।
बेनजीर भुट्टो ने सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री के रूप में कुर्सी पर बैठी थी तो आज उनका बेटा बिलावत भुट्टों सबसे कम उम्र का विदेश मंत्री बनकर कुर्सी पर बैठा है। बिलावत के पिता भी अयूब खान के शासन में विदेश मंत्री रहे है।
अब जब शाहबाज शरीफ खान की सरकार बनी तो इमरान खान के समर्थक राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अस्वस्थता का बहाना लेकर मन्त्रियों को शपथ दिलाने से इनकार कर दिया। तब पूरी कैबीनेट को संविधान के अनुसार सीनेट अध्यक्ष ने शपथ दिलवाई। प्रावधान है कि अगर किसी वजह से राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो कार्यवाहक राष्ट्रपति जो सीनेट का अध्यक्ष होता है राष्ट्रपति के कर्तव्यों का पालन करता है।
पाकिस्तान में यह संकेत मिल रहे थे नई सरकार संविधान का अवहेलना करने के लिए राष्ट्रपति आरिफ अल्वी पर महाअभियोग चलाने की तैयारी में है। बिलावत नवाज शरीफ से बात करने लन्दन गये हुये थे। इसलिये कैबिनेट के साथ शपथ नहीं ले पाये थे। जब शपथ लेने के लिये इस्लामाबाद पहुंचे तो शायद राष्ट्रपति अल्वी महाअभियोग के डर से विलावत को शपथ दिलवाई।
अगर राष्ट्रपति अल्वी के खिलाफ महाअभियोग का मुकदमा चलता है तो वे पाकिस्तान के ऐसे पहले राष्ट्रपति होगे। सरकार दावा कर रही है कि उसके पास ठोस सबूत है कि दो बार राष्ट्रपति अल्वी ने संविधान की अवहेलना की है। सरकार महाअभियोग चलाने के लिए पूरी तैयारी में है। संविधान के अनुच्छेद 47 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति को शारीरिक या मानसिक अक्षमता के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। साथ ही संविधान के उल्लघन या कदाचार के आरोप में महाअभियोग चलाया जा सकता है। राष्ट्रपति का संविधान उल्लघंन करने का एक टैªक रिकार्ड है।
इमरान खान के शासन के दौरान संसद को ठप्प करके रक्खा गया। राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने को कहा गया जिसे राष्ट्रपति त्वरित गति से जारी करने में दिलचस्पी ले रहे थे। इमरान को अध्यादेश का सहारा इस लिये लेना पड़ रहा था कि वह जानते थे अगर सदन में बहस के लिये पटल पर रक्खा जायेगा तो विपक्ष उसे पास नहीं होने देगा।
इमरान ने अपने शासन काल में सर्वाेच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायधीश फैजइशा के खिलाफ राष्ट्रपति के सन्दर्भ का सहारा लिया गया था। इमरान ओर अल्वी अब दोनो मानते है कि उनके द्वारा यह एक बहुत बड़ी गल्ती हुई है। कायदा यह है कि कानूनी मुद्दा या जनहित के मामले में सन्देह हो तो राष्ट्रपति के सन्दर्भ का सहारा लिया जाता है। राष्ट्रपति मामला सर्वाेच्च न्यायालय को भेजता है। न्यायलय राय देकर मामल राष्ट्रपति को भेज देता है।
पहले संविधान में अनुच्छेद 58-2 बी होता था जो राष्ट्रपति को सरकार हटाने का शक्ति देता था। जिउलहक के यह कानून अपने हित में लाये थे। जरदारी जब राष्ट्रपति बने तो संसद द्वारा इस प्रावधान को हटवा दिया।
अब हाल यह है कि पीपीपी नेता आसिफ जरदारी फिर राष्ट्रपति बनना चाहते है जो एकता सरकार बिना जेयूआई एफ के समर्थन के बिना उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनवा सकती। पर खबर यह भी है कि जेयूआईएफ के नेता मौलाना फजलूर रहमान भी राष्ट्रपति बनना चाहते है। सस्पेन्स के साथ नाटक जारी है।

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