एस.एन.वर्मा
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लोगो के दिल में बार-बार यह सवाल कौध रहा है क्या पाकिस्तान श्रीलंका के राह पर जा रहा है। क्योकि पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा की पतली हालत विदेशी कर्ज का भारी भुक्तान, महंगाई की चरम सीमा आयात भी विदेश मुद्रा की कमी की वजह से बहुत नीचे गिर गया है निर्यात तो हमेशा से कम ही रहा है। हालत यहां तक पहुंच गई कि वहां के योजना और विकास मंत्री को घटती विदेशी मुद्रा को बचाने के लिये पाकिस्तानियों से रोज दो कप चाय कम पीने की अपील करनी पड़ी है। हर साल करीब 60 करोड डालर की चाय यहां आती है।
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भन्डार 2021 अगस्त में 20 अरब डालर था जुलाइ 2022 में सिर्फ 9.7 अरब डालर रह गया है। सीवीईसी के तहत कई योजनाओं के लिये पाकिस्तान ने चीन से कमर्शल रेट पर बड़े पैमाने पर कर्ज लिया है। प्राजेक्ट से रिटर्न उम्ममीद मुताबिक नही आ रहा है। सारी परिस्थितियां पाकिस्तान के प्रतिकूल है पर पाकिस्तान कर्ज़ लेेने का इतना अभ्यस्त हो चुका है कि डैªगन श्रीलंका की तरह पाकिस्तान पर उल्टी सीधी शर्ते थोपे कर लेपट नहीं सका है। श्रीलंका की आर्गनैकि खेती फेल रही पूरे फसल का पैटर्न बदलने से पूरी फसल नष्ट हो गई। श्रीलंका में भ्रष्टाचार की चरम सीमा, परिवारवाद का शिकंजा चीन का कर्ज़ सरकार का अस्तित्व नष्ट हो गया है सब मिलकर श्रीलंका को डुबने दिया है। मित्र देश और संस्थाएं मदद में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।
पाकिस्तान भंवर जाल में है पर उसकी परेशानियां दूसरे तरह से है। पाकिस्तान पहले से इस तरह की मुसीबतों से घिरता रहा है और निकल कर किसी तरह अपने अस्तीत्व को बचाता रहा है। लेकिन इस बार कोविड महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध ने उसकी हालत बहुत खराब कर दी है। निवेश और उत्पादन बहुत नीचे गिर गया है। वहां के शासन के हालात हमेशा से खस्ता ही रहा है। सभी तरह का प्रबन्धन खराब रहा है प्रोफेशनलिज्म की कमी रही है, ऊपर से भ्रष्टाचार की चरम सीमा सब पाकिस्तान के लिये मुसीबत ही पैदा करते रहते है। सेना सरकार पर अपना शिंकजा कसे रखती है और अपने लिये भारी भरकम खर्चा का वसूली करती रहती है। क्योकि जो भी कर्ज़ विकास के नाम पर लिया जाता है उसका बड़ा हिस्सा सेना निगल लेती है। क्योंकि उसके सारे ऐशोआराम उसी के भरोसे है। इसीलिये सेना सरकार और राजनैतिक पार्टियों और संस्थाओं को दबाये रखती है। विदेशी और सुरक्षा के मामलें सेना तय करती है सरकारे नहीं। इन सबके बीच भारी आयात बिल, कमजोर मुद्रा, हमेशा कर्ज मंागने की आदत भी उसकी परेशानियां बढ़ाती रहती है।
विदेशी कर्ज 128 अरब डालर तक पहंुच गया है जो पिछले साल 86 अरब डालर था। मजबूरी में ऊंचे दर पर कर्ज लेकर ब्याज चुकानी पड़ती है। पिछले वर्ष की तुलना में व्यापार घाटा 57 प्रतिशत बढ़कर 50 अरब डालर पर पहुंच गया है। आयात बिल 80 अरब डालर हो गया है। सरकार ने इसीलिये तीस से ज्यादा विलासिता वस्तुओं के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तानी मुद्रा गिरती चली जा रही है। जून 2022 में खुदरा महंगाई 21.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
श्रीलंका और पाकिस्तान की मुसीबते कुछ मानो में एक तरह की है। जैसे आयात निर्भर देश, सतत व्यापार घाटा, मुद्रा में गिरावट, मुद्रासंकट, घटता विदेशी मुद्रा भन्डार, मुद्रस्फीति, राजनीतिक आस्थितरता पर कुछ चीजे है जो पाकिस्तान को श्रीलंका की तुलना में बचाये हुये है और बचाती रहेगी।
पाकिस्तान ने 30 वर्षो में 22 बार आईएफएम कर्ज मांगी है। इसके अलावा यूएई और चीन से भी कर्ज लिये है। मतलब कई बार विषम परिस्थितियां आई पर विदेशी मदद से प्राणवायु पाता रहा है। पाकिस्तान न्यूक्लिर हथियार का जखीरा रक्खे हुये है। श्रीलंका जैसी हालत होने पर आतंकियों की पहंुच वहां हो जायेगी। इसलिये आतंकियों के पहुंच की डर से विदेशी शक्तियां उसे मदद देती रहेगी कि यहां श्रीलंका जैसी हालत न बन पाये। इसीलिये पाकिस्तान को आसान शर्तो पर कर्ज मिलता रहता है। पाकिस्तान को श्रीलंका के उलट विदेशी देशो का प्रचुर सहयोग मिलता रहता है। साउदी अरब ने कर्ज दिये है। यूएई ने पाकिस्तान के स्वामित्व वाली कम्पनियों में 10-12 फीसदी इक्विटी शेयर लेने की पेशकश की है। बाकी मित्र देशों ने डेफर्ड पेमेंन्ट पर तेल देने और निवेश करने का वादा किया है।
इन सब वजहांे से पाकिस्तान की हालत श्रीलंका जैसी नही हो सकती पर पाकिस्तान ऐसा कब तक करता रहेगा। अभी नही पर भविष्य में कभी भी ऐसी हालत आ सकती है कि उसके पक्ष में चल रही चीजे मुकर जाये और वह घोर संकट में फंस जाये। इसलिये स्थायी हल के लिये उसे संरचनात्मक सुधार करने होगे। नही तो वह चाय की प्याली में अभी नही पर भविष्य में डूब भी सकता है।