एस.एन.वर्मा
जी-27 की अध्यक्षता का एक साल का कार्यकाल शुरू हुआ। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने सभी दलों का सहयोग मांगा और सहयोगी दलों ने मतभेद भुलाकर आशा के अनुरूप सहयोग दिया। इसे देख उम्मीद बंधती है भारत में लोकतन्त्र की भावना प्रभावी रूप से कायम है उम्मीद है पूरी बैठक में यह साथ और भवना बनी रहेगी। क्योंकि यह अवसर होगा भारत को अपनी विशिष्टताओं से लोगो को परिचय कराने को जो किसी एक पार्टी का कार्यक्रम नही होगा। यह भारत का कार्यक्रम होगा। इसमें आशा के साथ विश्वास भी बंधता है कि मोदी जी इसे भाजपा के विकास के गाथा का रंग नही देगे बल्कि भारत के 75 साल के विकास की गाथा बनाकर पेश करेगे। इसमें सभी पार्टियों और सरकारो की उपलब्घियां की दास्तान झलकेगी। मोदी जी दूरदर्शी नेता है विश्व में उनके कूटनीति और विचारों का सम्मान है। सबको एक सूत्र में बांधने की कला है, मलभेदो को मिटाकर सामूहिक राय बनाने के चातुर्द है। इन्हीं खूबियों की वजह से मोदी जी को जी-20 की अध्यक्षता मिली है।
इससे पहले भी भारत इस तरह की बैठक आयोजित करता रहा है। पर यह बैठक अपने आप में खास इसलिये है कि दुनियां के कई देश आर्थिक मार से बेहाल है। यूक्रेन और रूस के युद्ध ने दुनियां के सामने विकट स्थितियां पैदा कर दी है। रूस के नियन्त्रित करने के लिये अमेरिका और योरोपीय देश आर्थिक प्रतिबन्ध कई तरह से लगा चुके है अब तेल की कीमतों पर कैप लगाने जा रहे है, रूसी तेल ढोने वाले जहाजों को बीम और ब्रोकरी की सेवा बन्द करने जा रहे है। पर अभी तक रूस पर इन सबका कोई खास प्रभाव नही पड़ा है। इन सबके बीच मोदी को सभी देशों के साथ लेकर इन सबसे राहत दिलाने का रास्ता निकालने की जिम्मेदारी आ पड़ी है। उधर चीन की विस्तारवादी आदतों से जगह खतरनाक हथियारों के स्थापना पर भी रोक लगाने के लिये रास्ता ढूढ़ना होगा। जी-20 के देशों के साथ मिलकर यह सब तभी सम्भव हो पायेगा जब देश की पर्टियां दलगत भावना से ऊपर उठकर लोकतन्त्र और मुल्क की भावना से वशीभूत होकर मोदी को सहयोग करेगी।
आजकल भारत में नहीं अन्य लोकतान्त्रिक मुल्कों पर 2भी लोकतन्त्र की भावना पर उगलियां उठ रही है। इस बैठक में सभी दल जिस सहयोग और इमानदारी से शामिल हो लोकतान्त्रिक तरीके से विचार विनमय किये है और करते रहेगे उससे यह धारणा गलत साबित होगी कि लोकतन्त्र की भावना कुछ डगमग है बल्कि यह दिखेगा कि लोकतन्त्र की भावना दिनोदिन आगे बढ़ती जा रही है।
अलग में ऋणात्मक धररोयं चुनावी बातों को लेकर बनी है। पर चुनाव की बात अगल होती है। भावातिरेक में जबान कभी कभी बहक जाती है। पर वह स्थायी स्वभाव नही होता है। हम देखते है संसद और विधानसभा के बाहर सदस्य एक दूसरे से गलबदियां करते दिखते है। विधानसभा और संसद में भी एक दूसरे को बधाइयां देते दिखते है। एक दूसरे की प्रशंसा करते भी दिखते है। बहस मुबाहिस में यह सब चलता रहता है पर गम्भीर मौका आने पर सब एक हो जाते है। यही लोकतंत्र है। दल यह महसूस कर रहे है यह अवसर है मिलजुल कर देश का मान बढ़ाने का इसलिये इस अवसर का सही उपयोग करने के लिये सभी सहमत है। इसकी मिसाल इससे मिलते कि ममता बनर्जी इस बैठक में शामिल होेने के लिये आ रही थी तो पत्रकारों से बातचीत करते हुये जी-20 के लोगों में कमल का फूल निशान शामिल करने पर आपत्ति ज़ाहिर की पर बैठक में इस मुद्दे को नही उठाया। क्योंकि वह जानती थी दलीय लड़ाई लड़ने की यह बैठक जगह नही है। अगर यहां अपत्ती उठायेगी तो दुनियां में भारत के प्रति अच्छा सन्देश नही जायेगा। इस बैठक मंे भारत की राजनैतिक एक जुटता ने दिखाया कि भारतीय लोकतन्त्र की ताकत कहां है और किस तरह काम करती है।
भारत के पास सामर्थ्य है ऐसी अन्तरराष्ट्रीय बैठकों को आयोजित करने का उनका सफल संचालन कर विश्वहित के मुद्दों को उठाने का और सबकी सहमति के साथ बाधाओं को दूर करने का। अगर भारत इस बैठक में अपनी उपयोगिता साबित कर सका तो अन्तराष्ट्रीय शितिज पर उसका सूरज ऊपर की उठता जायेगा। मोदी के लिये एक साल के लिये मिली अध्यक्षता लिटमस टेस्ट होगा। कुछ मुद्दो को सुलझा सके, दुनिया में चल रही कठिनाईयों और रूस युक्रेन युद्ध पर कुछ उपयोगी असर जी-20 समूह देशों के माध्यम से डलवा सके तो यह उनकी और भारत की सुनहरी उपलब्धि गिनी जायेगी।