अलीगढ़, 16 नवंबरः ”अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सर सैयद अकादमी और दारा शिकोह सेंटर फार इंटरफेथ अंडरस्टैंडिंग एंड डायलाग दो महत्वपूर्ण संस्थान हैं जो पुस्तकों के प्रकाशन के साथ-साथ जनसंपर्क पर भी ध्यान केंद्रित करें ताकि समाज को इससे लाभ हो। पुस्तकों को अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित और प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि सर सैयद और अलीगढ़ आंदोलन का संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके”। यह विचार एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने आज सर सैयद अकादमी द्वारा आयोजित ”मकालात-ए-सर सैयद” सहित अन्य पुस्तकों और मोनोग्राफ के आनलाइन विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
समारोह में कुलपति प्रोफेसर मंसूर ने ”मकालात-ए-सर सैयद” (मौलाना मोहम्मद इस्माइल पानीपती) भाग एक, ”अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैलेंडर-1932”, ”तफहीम-ए-सर सैयद (अल्ताफ अहमद आजमी)”, ”शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (पापा मियां)” (डा0 मोहम्मद फुरकान), “जस्टिस सर शाह मोहम्मद सुलेमान“ (डा0 असद फैसल फारुकी) और “मौलवी चिराग अली“ (डा0 रजा अब्बास) का विमोचन किया।
प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि एएमयू के शताब्दी वर्ष में सर सैयद और अलीगढ़ आंदोलन पर महत्वपूर्ण पुस्तकों का पुनप्र्रकाशन अत्यन्त प्रसन्नता की बात है। उन्होंने कहा कि प्रकाशनों की गुणवत्ता उच्च होने के साथ-साथ पुस्तकों का भारतीय, अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए ताकि सर सैयद तथा अलीगढ़ आंदोलन के संदेश को बड़े पैमाने पर फैलाया जा सके। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बहुविषयी संस्थान होने के कारण यहाॅ यह कार्य आसानी से हो सकता है। उन्होंने कहा कि सर सैयद अकादमी में एक शोध श्रृंखला भी शुरू की जानी चाहिए।
प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि शेख मुहम्मद अब्दुल्ला (पापा मियां) को भारत में आधुनिक महिला शिक्षा का पितामह कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति सर शाह मोहम्मद सुलेमान और मौलवी चिराग अली अलीगढ़ आंदोलन के महत्वपूर्ण नायक हैं। अकादमी इन पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए बधाई की पात्र है।
इससे पूर्व ”मकालात-ए-सर सैयद” पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर एम0 शाफे किदवाई (अध्यक्ष, जनसंचार विभाग) ने कहा कि मौलाना इस्माइल पानीपती संकलित इस पुस्तक का प्रकाशन 1955 में हुआ था जिसमें प्रतिलेखकों की गलतियों के कारण कई कमियाँ थीं। सर सैयद अकादमी ने विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष में इन त्रुटियों को ठीक करके इस पुस्तक को दोबारा प्रकाशित किया है। प्रोफेसर किदवई ने कहा कि इस प्रकाशन का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट में कई लेख जो सर सैयद के नाम से प्रकाशित नहीं किए गए थे, मूल रूप से प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक जोसेफ एडिसन और रिचर्ड स्टील द्वारा लिखे गए लेखों का अनुवाद थे जिसके बारे में स्वयं सर सैयद ने भी स्पष्ट किया था। उन्हें मौलाना इस्माइल पानीपती ने मकालात-ए-सर सैयद में प्रकाशित किया था। इस त्रुटि को नये शोध के आधार पर वर्तमान प्रकाशन में सही कर दिया गया है।
प्रोफेसर किदवई ने कहा कि प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सीवी रमन ने 1941 में जस्टिस सर शाह मोहम्मद सुलेमान के निधन पर एक शोक पत्र लिखा था जो नेचर में प्रकाशित हुआ था। वह एएमयू के वीसी रहे हैं। उन पर तथा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पापा मियां और मौलवी चिराग अली पर एक मोनोग्राफ का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रोफेसर अब्दुल रहीम किदवई ने “तफहीम-ए-सर सैयद“ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पुस्तक के लेखक अल्ताफ अहमद आजमी ने संतुलित रवैया अपना कर सर सैयद के वैचारिक विकास का अध्ययन किया है। प्रोफेसर किदवई ने कहा कि सर सैयद का धार्मिक विचार पारंपरिक विचार से अलग है। उन्होंने नकल का विरोध किया और विचार की स्वतंत्रता का आह्वान किया। सर सैयद ने तर्कसंगतता पर जोर देते हुए स्वतंत्र अनुसंधान की नींव रखी। अल्ताफ अहमद आजमी ने सर सैयद का बचाव करने की कोशिश नहीं की। इस परिप्रेक्ष में, यह पुस्तक सर सैयद को जानने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने इस पुस्तक के पुनप्र्रकाशन के लिए सर सैयद अकादमी को बधाई दी।
सर सैयद अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर डा0 मोहम्मद शाहिद ने अपने संबोधन में कहा कि अलीगढ़ मूस्लिम यूनिवर्सिटी कैलेंडर-1932 दूसरा कैलेंडर जिसे सर सैयद अकादमी ने प्रकाशित किया है। इससे पूर्व 1911 का कैलेंडर प्रकाशित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि 676 पृष्ठ पर आधारित 1932 का कैलेंडर एएमयू के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जिसमें तत्कालीन विश्वविद्यालय अधिकारियों, एएमयू कोर्ट के सदस्यों के साथ-साथ अकादमिक अध्यादेशों और कानूनी निकायों के नामों का उल्लेख है। यह एएमयू के इतिहास को जानने का एक मूल स्रोत है, इस अर्थ में यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
डा० शाहिद ने कहा कि सर सैयद अकादमी इससे पूर्व एएमयू और सर सैयद पर एस के भटनागर और जीएफआई ग्राहम की पुस्तकों का प्रकाशन कर चुकी है। उन्होंने कहा कि एमएओ कालेज के प्रिंसिपल मारिसन की एक पुस्तक भी जल्द ही प्रकाशित की जाएगी।
सहकुलपति प्रोफेसर जहीर-उद-दीन ने शताब्दी वर्ष के अवसर पर एएमयू और सर सैयद से संबन्धित मूल स्रोतों के रूप में स्थापित इन पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रसन्नता व्यक्त की।
इससे पूर्व सर सैयद अकादमी के निदेशक प्रोफेसर अली मुहम्मद नकवी ने स्वागत भाषण दिया। अकादमी की विभिन्न गतिविधियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर के संरक्षण में, सर सैयद अकादमी को अनुसंधान और अध्ययन का केंद्र बनाया जाएगा और पीएचडी का पाठ्यक्रम भी प्रारम्भ किया जायेगा।
अंत में डा0 मुहम्मद शाहिद ने आभार व्यक्त किया जब कि डा0 हुसैन हैदर ने अनलाइन कार्यक्रम का संचालन किया।