AMU की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी द्वारा महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती पर आनलाइन आयोजन

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी द्वारा महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती पर आज एक आनलाइन स्मृति समारोह का आयोजन किया गया जिसमें शिक्षकों, छात्रों तथा कर्मचारियों को वीडियो कान्फ्रेंसिंग प्लेटफार्म के माध्यम से संबोधित करते हुए कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी प्लेग से निपटने के लिए जो तरीके सुझाए थे वह कोविड-19 के नियंत्रण में उपयोगी हो सकते हंै।
गांधीजी ने लोगों का आव्हान करते हुए कहा था कि वह स्वच्छ रहें, अपने आवासों को अच्छी तरह हवादार रखें और गर्म पानी में कीटाणु रोधक तरल पदार्थ मिला कर प्रयोग करें, साफ कपड़े पहनें, भव्य रात्रिभोज और दावतों से बचें, संक्रमित व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं का उपयोग न करें, शारीरिक दूरी बनाए रखें, व्यायाम को अपनायें तथा रोजाना एक-दो मील पैदल चलें।
कुलपति ने महात्मागंााधी को श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुए कहा कि विश्व में कम लोगों ने उन की भांति मानव समाज पर स्थायी छाप छोड़ी और विश्व शांति के लिए अहिंसा को सर्वोत्तम मंत्र के रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि गांधीजी ने अंत तक देश विभाजन का विरोध किया क्योंकि वह इसे भारत के सभी धर्मों के बीच एकता के अपने दृष्टिकोण के विपरीत समझते थे। इस बात के लिए उन्हें लांछित भी किया गया  वह मानते थे कि भारत को स्वतंत्रता तो मिली परन्तु उसे सही अर्थो में स्वराज प्राप्त नहीं हुआ।


प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में युवा गांधी को रंग भेद के आधार पर लोगों को अपमान का सामना करते देखा परन्तु इससे वह निराश नहीं हुए बल्कि इससे उनके व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव आया तथा मानवता की सेवा के लिए उनकी प्रतिबद्धता और सुदृढ़ हुई। महात्मा गांधी के सत्याग्रह ने दक्षिण अफ्रीका सहित दुनिया भर में प्रतिरोध आंदोलनों को प्रेरित किया।
उन्होंने कहा कि गांधीजी ने उत्पीड़न और अत्याचार का विरोध किया और ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता लाने के लिए विशेष प्रयास किये। उनका मानना था कि कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है जब सभी वर्गो में समानता और सहिष्णुता हो।
प्रोफेसर मंसूर ने राष्ट्र की स्वतंत्रता और अखंडता के संरक्षण और सुदृढ़ीकरण के लिए समर्पण के साथ कार्य करने के लिए एक आनलाइन प्रतिज्ञा दिलाई। उन्होंने एएमयू के शिक्षकों, छात्रों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को एक स्वच्छता प्रतिज्ञा भी दिलाई और कहा कि महात्मा गांधी ने एक विकसित और स्वच्छ देश का सपना देखा था।
इससे पूर्व कुलपति ने महात्मा गांधी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का चित्रण करती हुई दुर्लभ पुस्तकों, दस्तावेजों, पत्रिकाओं, और संरक्षित एतिहासिक तस्वीरों की आभासीय प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया।
सह कुलपति प्रो जहीरुद्दीन तथा रजिस्ट्रार, श्री अब्दुल हामिद (आईपीएस) भी ऑनलाइन समारोह में शामिल हुए।
प्रोफेसर एम रिजवान खान (अध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग) ने कहा कि गांधीजी आज एक ऐतिहासिक व्यक्ति की तुलना में एक विचार के रूप में अधिक प्रासंगिक हैं।
गांधीजी महात्मा (महान आत्मा) कैसे बने, इस पर बात करते हुए प्रो खान ने कहा कि उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की जिसके दरवाजे सभी जातियों के लिए खुले थे। उन्होंने कहा कि एक साधारण लंगोटी और शॉल पहनकर, गांधी प्रार्थना, उपवास और ध्यान के लिए समर्पित जीवन जीते थे।
उन्होंने कहा कि गांधीजी केवल एक समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे बल्कि उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता और लैंगिक समानता के लिए विशेष प्रयास किये और उनके द्वारा उठाये गये सभी मुद्दे समाज की बेहतरी के लिए थे।
प्रोफेसर खान ने कहा कि यद्यपि गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में भारतीय प्रवासियों के नेता थे परन्तु अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्होंने विश्वभर में कई आंदोलनों को प्रेरित किया और अंततः वह एक वैश्विक महत्व के व्यक्ति बन गए।
विधि संकाय के डीन, प्रो एम शकील अहमद समदानी ने कहा कि गांधीजी अक्सर उस समय असहाय महसूस करते थे, जब वह आदर्शों के टकराव तथा अंतर्विरोधों के कारण विश्व में अस्थिरता देखते थे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने संपूर्ण मानव जाति के लिए सत्य और न्याय में विश्वास के साथ दुनिया को प्रेरित किया। वह एक महान आत्मा थे जिन्होंने अहिंसा के साथ शांति लाने के लिए अपने आदर्शों के खिलाफ लड़ने वालों से भी प्यार किया।
प्रोफेसर समदानी ने कहा कि आज भारत में पिछड़ी जाति के लोग सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं क्योंकि गांधी जी ने अपने संघर्ष के माध्यम से इसके लिए जमीन तैयार की।
अमुवि छात्रों, एम0 साजिद (पीएचडी, राजनीति विज्ञान) और रेनिया राशिद (वीमेंस कॉलेज) ने अपने भाषण में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे महात्मा गांधी ने अहिंसा के माध्यम से सभी समस्याओं के समाधान के लिए काम किया और अहिंसा पर आधारित उनके विचार आज भी संसार के लिए कितने प्रासांगिक हैं।
डा0 शारिक अकिल ने कार्यक्रम का संचालन किया, जबकि डा0 मोहम्मद यूसुफ, लाइब्रेरियन, एम ए लाइब्रेरी ने आभार जताया।

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