एस.एन.वर्मा
मो.7084669136
कल्पना कीजिये किसी मोर्चो पर सेना की एक टुकड़ी लगाई गई हो, जवानों को दो तरह के हथियार दिये गये हो तो क्या दिक्कते आयेगी। पहली दिक्कत तो होगी हथियार चलाने के लिये अलग-अलग तरह के एम्यूनेशन रखने होगे, अलग-अलग तरह की गोलियां भरनी होगी। चलाने में अतिरिक्त समय लगेगा। मेन्टेनेन्स के लिये मोर्चे पर दो तरह के एक्सपर्ट लगेगे जो मरम्मत का काम करेगे। दो तरह के एम्युनेशन रखने के लिये और दो तरह के विशेषज्ञ रखने के लिये मोर्चे के पास जगह भी ज्यादा लगेगा। सैनिको के गतिशीलता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। कुशलता भी प्रभावित होगी।
हमारे सैनिक काफी समय से स्वदेशी इन्सास राइफल का प्रयोग कर रहे है। इन्हें बदलने की कोशिश कब से चल रही है। इसांस में कई बार मैगजीन क्रैक हो जाती है और तेल भी वापस आ जाता है। सेना के फ्रन्ट लाइन सैनिको को अमेरिकी सिग-716 असाल्ट राइफल दी गयी है। पर सभी सैनिको के पास अभी यह राइफल नहीं है क्योंकि ये संख्या में कम है। इसलिये काफी सैनिक इन्सास का प्रयोग कर रहे है। सेना के पास एके सीरीज राइफले भी है। इसका इस्तेमाल काउन्टर टेरेरिज्म और काउन्टर इसरेन्सी डयूटी में लगे सैनिक कर रहे है।
2019 में भारत ने अमेरिकी कम्पनी से 72.400 एमएम कैलिबर की ये राइफल थल, वायु और जल सेना के लिये ली गई है। फास्ट टैªक के तहत ये राइफले आई। थल सेना को 66400 वायु सेना को 4000, असाल्ट राइफल को लेकर रूस के साथ भी एक डील की है। इसके तहत भारत की पुरानी इन्सास राइफल को रिप्लेस करने के लिये यूपी के अमेठी आयुघ कारखाने में साढे सात लाख के करीब एके-203 राइफले बेनेगी। दिसम्बर 2019 में मोदी जी ने इसका उद्घाटन भी किया था। एके-203 राइफल एक सिरीज की नई राइफल है। सिगसार राइफल की दूसरी खेप 73 हजार सिंग 716 असाल्ट राइफल आनी थी पर इसकी डील फंस गई है। अभी फाइनल स्वीकृति नहीं मिली है डील निरस्त भी हो जायेगा। सिगसार राइफल नही आती तो फ्रन्ट लाइन पर तैनात सैनिको को इन्सास राइफल किससे रिप्लेस होगी सवाल यह भी है। शायद एके-203 सैनिको को दी जाय। जब इन्सास राइफल पूरी तरह रिप्लेस हो जायेगी तो फ्रन्ट लाइन पर कुछ सैनिको के पास संगसार राइफल होगी, कुछ के पास एके-203 असास्ट राइफल।
पर हर हथियार की अपनी विशेषता होती है। जैसे इसान्स राइफल का कैलिबर 5.56 ग् 51 एमएम है, एके राइफल का कैलिबर 7.62 ग् 9 एम एम का है। सिंग-716 राइफल का कैलिबर 7.62 ग् 51 एम एम है। मतलब एके और सिंग-716 राइफल की एक जैसी बुलेट नहीं होगी। इसलिये दोनो का एम्युनिशन अलग-अलग होगा। विशेषज्ञों की राय है एक बटालियन में दो तरह के हथियार अच्छी आइडिया नहीं है। क्योंकि दो सैनिको के पास अलग-अलग किस्म के हथियार होगे तो उनका एम्युनीशन भी अलग-अलग होगा। इससे आपात काल में अगर जरूरत पड़ गई तो वे एक दूसरे के हथियार इस्तेमाल नहीं कर पायेगे।
जब सैनिक दस्ते में जाते है। तो कुछ निजी हथियार के साथ कुछ सपोन्टिग हथियार लेकर जाते है। किसी आपरेशन की रणनीति बनाई जाती है तो यह भी उसका हिस्सा होता है कि जिस जगह पर कब्जा करेगे वहां मजबूत पकड़ कैसे सुनिश्चित करेगे। किसी जगह कब्जा हुआ है तो उस स्थिति में देखा जाता है किस सैनिक के पास कितना एम्युनीशन बचा है। जिसे वहां डटे रहना मुमकिन बना रहे। जिस सैनिक के पास कम एम्युनीशन होता है उसे दूसरे सैनिक से लेकर दिया जाता है। पर अगर एम्युनीशन अलग-अलग है तो यह तो नामुमकिन होगा। इससे लाजिस्टिक स्तर पर काम बढ जायेगा। अलग हथियार के लिये उसके मेन्टीनेन्स के लिये अलग-अलग उपकरण चाहिये। ऐसे में फील्ड एरिया में वर्कशाप के लिये जादा स्पेस की जरूरत होगी। मेन्टीनेन्स वालो को सभी हथियारो की पूरी जानकारी होगी तभी तो वे मेन्टिनेन्स कर सकेगे। उपकरण लेकर स्पेयर पार्टस तक अलग-अलग रखने होगे। जाहिर है मामला उलझनपूर्णा और काफी गम्भीर है एक ही बटालियन में दो तरह के हथियार होना। एक ही काम के लिये एक ही मोर्चे पर एक ही बटालियन को अलग-अलग किस्म के हथियार देना सैनिको की क्षमता, गतिशीलता पर बुरा प्रभाव डालेगे। सैनिक के लिये भारी मुसीबत भी बन जायेगे।