विश्व गौरैया दिवस पर बच्चों ने उत्कृष्ट कलाकृतियां बनाकर दिया संरक्षण का संदेश

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पंछी बनूं उड़ती फिरूं मैं मस्त गगन में, आज मैं आजाद हूं दुनियां के चमन में

ललितपुर। गांवों के शांत सुबह से लेकर शहरों की चहल-पहल तक, गौरैया कभी हवा को अपनी खुशनुमा चहचहाहट से भर देती थीं। इन नन्हें पक्षियों के झुंड, बिन बुलाए मेहमान होने के बावजूद स्वागत योग्य, अविस्मरणीय यादें बनाते थे। लेकिन समय के साथ, ये नन्हें दोस्त हमारी जिंदगी से गायब हो गए हैं। कभी बहुतायत में पाई जाने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है। इन छोटे प्राणियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए, विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर मानव ऑर्गेनाइजेशन के तत्वाधान में गौरैया बचाओ अभियान के अंतर्गत रघुनाथपुरा स्थित उच्च माध्यमिक विद्यालय में नन्हे मुन्ने बच्चों से गौरैया संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल परिसर में चहचहा रही गौरैया चिडिय़ा ने की। इस दौरान पर्यावरणविद् पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने बच्चों से गौरैया संवाद करते हुए कहा कि विडंबना देखिए कि जिन परिंदों ने मनुष्य को जीवन के नए आयामों से परिचित कराया, आज वो ही अपने अस्तित्व को बचाने में असहाय हो गए। इस संदर्भ में आज हम बात करेंगे एक प्यारे से पंछी की। जी हां!….आप सही समझ रहे हैं, बात हो रही है बचपन में हमारे आंगन में फुदकने वाली नन्हीं प्यारी गौरैया की, जो आने वाले समय में गुजरे जमाने की बात होकर रह जाने की कगार पर है। यदि यही दशा रही तो आने वाली पीढियां इस सुन्दर जीव का दीदार बस किताबों और चलचित्रों में कर पाएंगी….
इनको सजीव देखना, इनको समझना, इनके साथ जीवन जीना महज कोरी कल्पना बनकर ही रह जायेगा। डा.राजीव निरंजन ने बताया कि गौरैया अपने बच्चों को शुरुआती 10 से 15 दिन सिर्फ कीड़े मकोड़े ही खिलाती है, परन्तु खेतों से लेकर शहरों में घरेलू पेड़ पौधों में भी कीटनाशक का अधाधुंध प्रयोग हो रहा है, जिससे उनमें कीड़े नहीं लगते और इस प्रकार इनके बच्चों को समुचित भोजन नहीं मिल पाता। गौरैया चिडय़िा जब कीटनाशकों के प्रभाव से उपजे अनाज को खाती है तो इससे उसको (गॉट) नामक बीमारी हो जाती है।
जिससे गौरैया की किडनी खराब हो जाती है, जो गौरैया विलुप्ति का एक मुख्य कारण है। लक्ष्मीनारायण विश्वकर्मा आचार्यजी ने कहा कि भारत में गौरैया को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। उर्दू में गौरैया को चिडिय़ा, सिंधी भाषा में झिरकी, भोजपुरी में चिरई तो बुन्देली में चिरैया भी कहा जाता है। जम्मू और कश्मीर में चेर, पंजाब में चिड़ी, पश्चिम बंगाल में चरुई, ओडिशा में घरचटिया, गुजरात में चकली, महाराष्ट्र में चिमानी, कर्नाटक में गुब्बाच्ची, आन्ध्र प्रदेश में पिच्चूका, केरल व तमिलनाडु कुरुवी नाम से पुकारा जाता है।
इस दौरान बच्चों ने अपनी कलाकृतियों से गौरैया को संरक्षित करने का उत्कृष्ट संदेश दिया। इस दौरान सचिन जैन वॉस, प्रशांत शुक्ला, ऋषि हीरानंदानी, पत्रकार अमित लखेरा, गौरव जैन के साथ शिक्षकगणों मो.मुनीर, उर्वशी साहू, हेमलता विश्वकर्मा, राजकुमार कटारिया, मो.शाकिर खान व विद्यार्थियों में नितेश, अक्षय, प्रतिज्ञा, लक्ष्मी, भावना, राजा भैया, मनोहर, प्रिंसी, पूनम, कीर्ति, आजाद आदि उपस्थित रहे। शिक्षिका पर्यावरण प्रेमी उर्वशी साहू ने सबका आभार व्यक्त किया।
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