लखनऊ : शबे बरात हर साल शबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है और इसे इबादत की रात मानी जाती है। रॉयल फैमिली के सैय्यद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने सल्तनत मंजिल, हामिद रोड, निकट सिटी स्टेशन, लखनऊ में हुई एक मीटिंग में कहा कि शबे बरात के मौके पर मुस्लिम समाज रात भर अपने घरों में और मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ते हैं और इबादत करते हैं। कब्रिस्तानों में जा कर अपने मरहूमीन (पूर्वजों) के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं और अपने बेहतरी के लिए भी दुआ करते हैं और गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं। ऐसा करने से लोगों के गुनाह अल्लाह माफ कर देता है। शबे बरात के दिन अपने अपने मरहूमीन की कब्रों को जो दुनिया से रुखसत हो गए हैं फूलों से सजा कर रोशनी करते हैं। शबे बरात में खास पकवान व हलवा वगैरा बनाए जाते हैं। इस अवसर पर गरीबों का खास खयाल रखा जाता है। नवाबजादा सैयद मासूम रजा ने आगे कहा की उनकी पत्नी बेगम नसीमा रज़ा के वालिद नवाब रज़ा हसन खां (बाबा) जो न सिर्फ अपने पूर्वजों की कब्रों पर फातिहा पढ़ते थें बल्कि अंधेरी पड़ी कब्रों पर भी मोमबत्ती जला कर रोशनी भी किया करते थें। ऐसे इंसान बहुत ही कम होते हैं जो दूसरे के गम में शामिल होते हैं। नवाबजादा सैयद मासूम रज़ा ने बताया की यह सिलसिला आज भी कायम है और उन अंधेरी कब्रों पर भी रोशनी किया जाता है।
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