आपत्तिजनक टिप्पणी

0
1253

एस.एन.वर्मा

कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले का स्वतः संज्ञान लेते हुये सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा एक केस में अनर्गल टिप्पणियों को लेकर विरोध करते हुये साफ कहा है कि अनावश्यक टिप्पणियों से हाईकोर्ट के बचना चाहिये। जिन बातों का कोई औचित्य नही उन पर टिप्पणी का क्या तुक है। टिप्पणी में कई बातें अनावश्यक है। इस फैसले को लेकर कलकत्ता सरकार ने याचिका भी दायर की है। चूकि यह मसला बहुत संवेदनशील है इसे लेकर जो निर्णय शीर्ष अदालत देगी वह भविष्य के लिये मार्गदर्शन बनेगा। हाईकोर्ट के निर्णय में सत्तात्मक सत्ता जो औरतो का हर तरह से शोषण करती आई है उसी के पक्ष में वकालत करती नजर आती है।
जिस केस को लेकर यह चर्चा की जा रही है वह महिला का जबरदस्ती आपहरण कर महिला से जबरन शादी व पास्को ऐक्ट में सजायाफ्ता की सुनवाई का है। हाईकोर्ट ने कहा किशोरी का कर्तव्य है शारीरिक अखन्डता और आत्ममूल्य की रक्षा करें। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश की भर्त्सना करते हुये बिल्कुल सही कहा है कि बेहद अपत्तिजनक और पूरी तरह से गैर जरूरी है। अगर यह बात क्षणभर के लिये मान भी लिया जाय तो यह मानदन्ड मर्दो के लिये क्यों गैर जरूरी है। महिला चरित्र का ऐसा विश्लेेषण अपाच्य है।
अदालतें पितृसत्तात्मक सत्ता के विरोध में स्त्रियों के पक्ष में न्यायपूर्ण बराबरी का स्तर दिलाने के लिये कई कानून बनाये है और बनाती जा रही है। समय-समय पर महिलाओं के पक्ष में कानून बनाने के लिये अदालते सरकारों को हिदायत देती रहती है। इस दिशा में कानून बनते भी जा रहे है।
यौन इच्छाओं यौनो उन्माद पर काबू रखना तो हर सभ्य नागरिक का कर्तव्य है। इसमें औरत और मर्द का विभेद सरासर अन्याय है। अर्से से चली आ रही प्रितसतत्मक नियमों की प्रताड़ना स्त्रियां कब से सहती आ रही है। बहुत सी स्त्री प्रतिभा पर्दे के अन्दर लैगिंक भेदभाव में दबकर मर जाती है। जिससे समाज, देश को बड़ा फायदा मिल सकता है। दैहिक स्वच्छता के आड़ में पुरूषों द्वार स्त्रियों पर अत्याचार और शोषण हमेशा थोपा गया है। हालाकि अब स्थिति काफी सुधरी है पर अभी स्थितियां बदलने की बहुत गुजांइश है।
तज्जुब होता है जिस देश में नारियां पूज्य मानी जाती थी, वहां स्त्रियां को इतनी लम्बी पितृतात्मक सत्ता का दन्ड भोगना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट का यह संज्ञान निश्चित रूप से अदलतों, सरकारो समाज के लिये दिशासूचक का काम करेगा। पेपरों में रोज, आपहरण, बलात्कार शारीरिक शोषण और हत्या की खबरे आती रहती है। किसी भी दिन का पेपर इससे अछूता नहीं रहता है। अदालतों और सरकारो को और सख्ती दिखाने की जरूरत अभी भी महसूस होती रहती है।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here