अवधनामा संवाददाता
अयोध्या। जनवादी लेखक संघ, फैजाबाद के तत्वावधान में रविवार, 20 नवम्बर, 2022 को संगठन की वरिष्ठ सदस्य उष्मा वर्मा ‘सजल’ द्वारा लिखी एवं रुद्रादित्य प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘मैं पलाश गुलमोहर जैसी’ का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, केदार सम्मान, रघुपति सहाय सम्मान और रूस के पुश्किन सम्मान से सम्मानित देश के वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि ऊष्मा जी की कविताएँ जीवन के सहज दुःख-सुख के साथ समाज की पीड़ा का वृत्तांत रचने वाली रचनाएँ हैं। वे संसार को एक स्त्री की निगाह से देखती हैं, स्पष्ट है कि उनकी इस दृष्टि में करुणा और संवेदनशीलता है, किन्तु यह कोरी भावुकता की रचनाएँ नहीं हैं बल्कि उनमें एक गम्भीर जीवन-दर्शन भी मौजूद है। यह अकारण नहीं कि वे लिखती हैं कि ‘सम्बन्धों की दीवारों से, लिपटी है सारी अभिलाषा। पल दो पल की क्या बात करें, सारा जीवन ही है प्यासा’। वे समाज की विसंगतियों के बीच प्रेम जैसे कोमल तत्व को बचाये रखना चाहती हैं लेकिन उसके साथ-साथ उम्मीद का रास्ता भी तलाशती हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि कवयित्री यूँ ही अपनी काव्ययात्रा को आगे बढ़ाती रहेंगी। इलाहाबाद से आए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं उद्घोषक श्री संजय पुरुषार्थी ने कहा कि जहाँ एक ओर कवि दुष्यन्त कुमार की पीर पर्वत की ऊँचाई को अपना प्रतीक बनाती है वहीं ऊष्मा सजल अपने दुःखों से निजात पाने के बजाय दुःख के संचयन के लिए संग्रहालय को प्रतीक के रूप में परिकल्पित करती हुई दिखती हैं। उन्होंने कहा कि ऊष्मा सजल के इस पहले गीत गजल संग्रह की अधिकांश रचनाएँ उनके लेखन के आरम्भिक कालखण्ड की हैं जिसमें बनावटीपन एकदम नहीं है, अपितु वे मिट्टी की पावनता और सोंधेपन की मनभावन सुगंध से भी ओतप्रोत हैं। संजय ने कहा कि आत्ममुग्धता से परे परिपक्वता के पथ पर अग्रसर कवयित्री ऊष्मा का चिंतन और लेखन नित नूतन शिखर अर्जित करे मेरी यहीं शुभकामना है।
कार्यक्रम का संयोजन-संचालन कर रहे डॉ. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि संग्रह का नाम ही कृतित्व की सार्थकता को स्पष्ट करता है। कवयित्री ने खुद को पलाश और गुलमोहर के रूप में देखा है, जो भयंकर ग्रीष्म में खिलने वाले फूल हैं। स्पष्ट है कि वे स्वयं को कोमलता की रूढ़ छवि से बाहर निकालकर विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने वाली स्त्री के रूप में देखती हैं। उनकी कविता में जो भावुकता है वह भी अपनी प्रतिबद्धता में आकार लेती है और पूरे संसार के दुखों के प्रति करुणा में प्रतिध्वनित होती है। वे समय के कठिन प्रश्नों को अपने गीतों और ग़ज़लों में उठाते हुए हिचकती नहीें हैं। वे इसीलिए कह पाती हैं कि ‘कोई भी प्रश्न आज तक बूढ़ा नहीं हुआ, जब भी उन्हें उठाया ज्वलन्त हो गया। बेकारी वही, भूख वही, सहमा आदमी, सब कहते हैं कि देश ये स्वतंत्र हो गया।’
वरिष्ठ लेखिका पूनम सूद ने कहा कि प्रायः गीत-ग़ज़ल को परम्परागत विधा समझ लिया जाता है लेकिन ऊष्मा जी ने यह सिद्ध किया है कि उनमें भी आधुनिक प्रयोग किये जा सकते हैं। वे बिल्कुल नये तेवर के साथ अपनी रचनाएँ लिख रही हैं, उनके इस प्रयास को एक उम्मीद की तरह देखा जाना चाहिए। उन्होंने कविता में लय की ज़रूरत पर बल दिया और साथ ही स्त्री-मुक्ति की वैचारिक कविता के महत्व को रेखांकित किया।
इससे पूर्व संगठन के सदस्य सत्यभान सिंह जनवादी ने आमंत्रित साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं गणमान्य नागरिकों का स्वागत किया और अपने वक्तव्य में इस पुस्तक को एक महत्वपूर्ण कृति बताया।