पड़ोसी संकट में

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एस.एन.वर्मा

भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांगलदेश कभी भारत देश में ही गिने जाते थे। 1947 में आजादी के प्राप्त होने कके साथ ही भारत के कुछ हिस्से काटकर पाकिस्तान बना। उस समय बांगलादेश पाकिस्तान के हिस्से में था। 1971 में पाकिस्तान में चुनाव हुआ बांग्लादेश में आवामीलीग को बहुमत मिला। पर पाकिस्तान में मुंहो ने सत्ता हस्तान्तरण के बदले जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान था कहलाता था हमला करवा दिया। नृशंस हत्या और बलात्कार पाकिस्तानी सेना ने किया। बांग्लादेश की मदद के लिये भारत ने अपने सैनिक भेजे। भारतीय सैनिको ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया। पाक के 90 हजार सैनिकों ने आत्ममपर्ण किया और पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के नाम से स्वतंन्त्र राष्ट्र बन गया।
जब तक मुजिबर रहमान थे शासन ठीक चल रहा था पर पाकिस्तान से मिल जुल कर लोगो ने मुजिबुर रहमान की हत्या करवा दी। कहरवादी यहां के सरकार में हावी हो गये। जनता उनके जुर्म से परेशान थी फिर किसी तरह चुनाव हुआ तब आवमी लीज की सरकार बनी। मुजिबुर रहमान की बेटी शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी। तब से शासन ठीक ठाक चल रहा था पर कट्टरपंथी उत्पात मचाते रहते है। चार बार से हंसीना प्रधानमंत्री है। पांचवा चुनाव असन्न है। कट्टरपथीयों का विरोध तेज हो गया है। लम्बे शासन काल में एक तो इनकम्बेसी दूसरे हंसीन कुछ निरंकुश होती गयी। भ्रष्टाचार भी हुये। मंहगाई जोरो पर है। अब विपक्षी पार्टी बीएनपी सड़क पर उतर आई है साथ में जनता भी आ गई है। सब मिल कर प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग कर रहे है और कार्यवाहक सरकार की निगरानी में चुनाव कराये जाने की मांग कर रहे है। शेखहसीना पर आरोप है कि चुनाव में धांधली करके वह जीत जाती है। अभी चुनाव में एक साल बाकी है जिस तरह जगह जगह यह विरोध और मांग हो रही है वह हैरतअंगेज है।
विपक्ष की पार्टी बीएनपी बेहद कट्टरवादी तो है ही पाकिस्तान परस्त भी है। जिस तरह से बीएनपी को जनता का साथ मिल रहा है और जिस तरह फैला हुआ है उसके पीछे विदेशी हाथ होने का शक बेजा नही लगता है। पाकिस्तान और बांगलादेश इतने निकट के पड़ोसी है कि वहां अच्छा हो तो बुरा हो तो दोनो का असर भारत पर पड़ता है। अच्छा तो स्वागत योग्य होता है पर बुरा हो तो भारत को सतर्क रहने की जरूरत बढ़ जाती है। क्योंकि एक पड़ोसी तो हमेशा कुछ न कुछ करता रहता है। दूसरे पड़ोसी के यहां अगर पाकिस्तान पैठ बढ़ाता है तो वहां से भारत की जमीन पर कुछ गलत कारवाई से बाज नहीं आयेगा।
आज बीएनपी निष्पक्ष जांच की मांग करवा रही है। वो जब सत्ता में थी वह खुद निशपक्ष नही रही और घोर निरंकुश बनी रही। पर आज के विरोध में चिन्ता का विषय यह है कि जनता भी उसके साथ हो गई है। जनता के महसूस हो रहा है कि आवामी लीग की सरकार कुछ ठीक नही कर रही है निरकुश होती जा रही है। जनहित के मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया है। सिर्फ सत्ता ही उसका लक्ष रहा गया है। दमन और लूट खसोट में अवामी लीग भी सेलग्र है। सत्ता की अवधि जैसे जैसे लम्बी होती जा रही है शेख हसीना लोकतन्त्र को भूलती जा रही है।
पर्यवेक्षको कहना है इसी महीने में बांग्लादेश का जन्म हुआ था। यह महीना उसकी आजादी है का। इसी महीने में इतनी उथल-पुथल कुछ शक पैदा करता है। पाकिस्तान में सैन्य नेतृत्व में बदलाव हुआ। वर्तमान में बने जेनरल का शगल रहा है पड़ोसियों को परेशानी में डाले रहना। बांग्लादेश में बीएनपी की नज़दकी कट्टरवादी जमात-ए-इस्लामी से भी है और पाकिस्तान से भी है। उसे इन दोनो से ताकत मिलती रहती है। शेख हसीना के खिलाफ जो जनता का आक्रोश दिख रहा है उसको भारत नज़रअन्दाज़ नही कर सकता। भारत से बदला लेने के लिये लोग भारत से सीधे तो टकरा नहीं पाते है इसलिये दूसरे देशों के कन्धों पर रखकर बन्दूक चलवाने की खुराफात करते रहते है। चुनाव के पहले आये इस बदलाव और उथल पुथल पर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। आजादी तो पूरे देश को मिली है। बीएनपी देश के बाहर तो है नही। उसे तो मिलजुल कर आजादी का जश्न मनाना चाहिये। पर लगता है वह दूसरों के चाले में फंस गयी है वरना आजादी तो सभी का पर्व होता है क्या सत्तापक्ष क्या विपक्ष। पड़ोसी के संकट पर गौर बनाये रखना है।

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