प्रकृति हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है,लोभ ,लालच की नहीं

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भूगर्भ जल भंडार न बचा तो पानी के लिए होगा अगला विश्व युद्ध -अर्जुन पांडेय

अंधाधुंध जल दोहन से खाली हो रहा धरती का कटोरा -रमेश चंद्र शर्मा

जल बचाएं, जीवन बचाएं

बुधवार को अमेठी जल बिरादरी की ओर से जल साक्षरता अभियान के अन्तर्गत प्रमोद आलोक इंटरमीडिएट कॉलेज में संवाद गोष्ठी का आयोजन किया गया। संवाद गोष्ठी के दौरान हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में जिले में टापटेन में शामिल दो छात्राओं को सम्मानित भी किया गया।

मुख्य अतिथि गांधी शांति प्रतिष्ठान के पूर्व निदेशक रमेशचंद शर्मा ने कहा कि खेत का पानी खेत में,गांव का पानी गांव में और शहर का पानी शहर में ही संचित किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि अत्यधिक जलदोहन से निरन्तर धरती का कटोरा खाली होता जा रहा है।हरियाली बचाने एवं भूगर्भ जल स्तर उठाने के लिए चौमासे ‌में होने वाली वर्षा जल से धरती का पेट भरना होगा,तभी हमारी खुशहाली होगी। संयोजक अमेठी जलबिरादरी

डॉ अर्जुन पाण्डेय ने कहा की जल रहेगा तभी जीवन सुरक्षित रहेगा। इसके स्थानीय जलस्रोतों नदियों, तालाबों एवं बावड़ियों को पुनर्जीवित करने के लिए जल संचयन का पौराणिक ज्ञान जरूरी है। डॉ पाण्डेय ने कहा कि विकास के नाम पर धरती की नसें काटी जा रही है।सम्भव है एक न एक दिन धरती बीरान बन जाएगी। संवाद गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रूहेलखंड विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव पी एन प्रसाद ने कहा कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहार स्वरूप वस्तुओं का अनुकूलतम उपयोग करके समाधान निकल सकता है।ऐसा करने से न केवल संसाधनों को संरक्षण मिलेगा जीव- जगत स्वयं सुरक्षित होगा। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता प्रकृति प्रेमी बाराबंकी के रत्नेश कुमार ने युवाओं को उत्प्रेरक करते हुए कहा कि इस समस्या से निजात पाने के लिए भावी पीढ़ी को आगे आने की जरूरत‌ है। संवाद संगोष्ठी में कालेज के प्रबंधक देवमणि तिवारी ने कहा कि जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कोई भी कार्य जल के बिना सम्भव नही है। इसके लिए लोभ-लालच से हटकर पुरानी पीढ़ी का अनुकरण करना चाहिए।इस मौके पर हाई स्कूल परीक्षाफल में कालेज की टॉप टेन में स्थान लाने वाली दो छात्राओं को सम्मानित किया गया।संगोष्ठी में राधे श्याम तिवारी,डॉ अभिमन्यु कुमार पाण्डेय,डॉ ममता त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।

गुरुवार को प्रमोद आलोक इंटरमीडिएट कालेज और जंग बहादुर इंटरमीडिएट कॉलेज ककवा में जल संवाद गोष्ठी के मुख्य अतिथि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ पारसनाथ प्रसाद ने अपने उद्बोधन में कहा कि भूमि हमारी मां एवं हम सब उसकी सन्तान हैं।हमें बसुधैव कुटुम्बकं की भावना से जीवन यापन करने की जरूरत है।प्रकृति हमारी आवश्यकता की आपूर्ति कर सकती है लोभ-लालच की नही। भू-तल पर हो रहे व्यापक जलवायु परिवर्तन का एकमात्र समाधान प्रकृति प्रेम है।जल संवाद गोष्ठी में गिरते हुए भूगर्भ जल स्तर पर प्रकाश डालते हुए पर्यावरणविद् डॉ अर्जुन पाण्डेय ने कहा कि चौमासे में होने वाली वर्षा जल से धरती का खाली पेट भरा जा सकता है।जल संचयन हेतु पौराणिक ज्ञान श्रेयस्कर है।

संवाद गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विद्यालय के प्रबन्धक रजवंत सिंह ने कहा कि श्रृषियों – मुनियों की धरती को उद्दाम भोगवादी संस्कृति के कारण प्रकृति – पर्यावरण के क्षेत्र में बाधक उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों से जन्तु जगत को बचाने की जरूरत है।संवाद गोष्ठी को सत्येन्द्र प्रकाश शुक्ल ने कहा कि पर्यावरण के क्षेत्र कागजी अभियान चला कर समाधान सम्भव नही।वृक्षारोपण से ज्यादा जरूरी उसका रखरखाव है।कैलाश नाथ शर्मा ने कहा कि समय रहते न चेते तो एक न एक दिन जल की कमी से धरती बीरान बन सकती है।

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