नई दिल्ली। यूक्रेन में जारी जंग के बीच रूस ने यह ऐलान किया है कि वह अपने पड़ोसी दोस्त बेलारूस में परमाणु बम ले जाने वाली मिसाइल तैनात करेगा। रूस की इस घोषणा के बाद नाटो देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। इसके पहले बेलारूस के तानाशाह एलेक्जेंडर लुकाशेंको ने आरोप लगाया था कि परमाणु हथियारों से लैस नाटो के लड़ाकू विमान उनके देश की सीमा के पास आ रहे हैं। लुकाशेंको की इस शिकायत के बाद पुतिन ने अब इस्कंदर एम मिसाइल को देने का ऐलान किया है। इस मिसाइल की क्षमता 500 किलोमीटर तक है। आखिर इस फसाद की जड़ कहां है। नाटो और बेलारूस से पुरानी रंजिश क्या है। नाटो को कैसे मिली बड़ी चुनौती। इसके साथ यह भी जानेंगे कि रूस के वर्चस्व वाले CSTO क्या है।
नाटो से डरे तानाशाह लुकाशेंको, पुतिन से मांगी मदद
तानाशाह लुकाशेंको ने दावा किया कि अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो गठबंधन बेलारूस की सीमा के पास परमाणु हथियारों से लैस फाइटर जेट भेज रहा है। उन्होंने इसी तरह का जवाब देने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मदद मांगी है। यही नहीं पुतिन ने बेलारूस के फाइटर जेट को अपग्रेड करने का भी प्रस्ताव दिया, ताकि वे परमाणु हथियारों को गिरा सके। पुतिन ने यह प्रस्ताव ऐसे समय पर दिया है जब उनका पश्चिमी देशों से यूक्रेन युद्ध को लेकर तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। पिछले महीने लुकाशेंको ने कहा था कि बेलारूस ने रूस से इस्कंदर परमाणु मिसाइल और एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा है। पुतिन ने कहा कि कई सुखोई-25 फाइटर जेट बेलारूस की सेना में तैनात हैं। इन्हें उचित तरीके से अपग्रेड किया जा सकता है। उन्होंने कहा था यह आधुनिकीकरण रूस में विमान की फैक्ट्री में किया जाना चाहिए और पायलटों की ट्रेनिंग को भी उसी के मुताबिक शुरू किया जा सकता है।
शीत युद्ध के बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया है। इसके बाद 1994 में CSTO का गठन हुआ था। इसका मकसद रूस और सोवियत का हिस्सा रहे देशों के हितों की रक्षा करना था। फिलहाल इसमें छह देश शामिल हैं। वर्ष 2012 में उज्बेकिस्तान इससे अलग हो गया था। इस संगठन के पास अलग 20,000 सैनिकों का दस्ता है, जिसे पीस कीपिंग फोर्स कहा जाता है। इस संगठन में शामिल देश अकसर युद्धाभ्यास भी करते रहते हैं। हाल में बेलारूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग में रूस के साथ मिलकर अपनी सेना उतारने का ऐलान किया था। दरअसल, बेलारूस भी इसी CSTO का हिस्सा है। उसके अलावा अर्मेनिया, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान भी इस संगठन का हिस्सा हैं। वैश्विक राजनीति में इस संगठन को भी सुरक्षा की गारंटी देने वाले संगठन के तौर पर देखा जाता है। सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन देशों के CSTO में शामिल होने का यह अर्थ है कि उनकी सुरक्षा पर किसी भी तरह का संकट आने पर रूस उनके साथ खड़ा मिलेगा।
नाटो बनाम सीएसटीओ
गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच जंग में नाटो संगठन भी उतर पड़ा है। अमेरिका समेत नाटो देशों की ओर से यूक्रेन को हथियारों से लेकर अरबों डालर तक की रकम मदद के तौर पर दी जा रही है। जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और कनाडा समेत कई देशों ने इस जंग के बाद से रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। नाटो सदस्य देशों ने यूक्रेन को खुला समर्थन देने का ऐलान किया है। मिसाइलों से लेकर होवित्जर तोपों तक की सप्लाई यूक्रेन को की जा रही है। बता दें कि नाटो संगठन में कुल 30 देश शामिल हैं, जिनमें कनाडा, डेनमार्क, बेल्जियम, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम जैसे देश हैं। इसके अलावा यूक्रेन के पड़ोसी देश एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, पोलैंड, हंगरी और चेक रिपब्लिक भी इसका हिस्सा हैं। नाटो देशों में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस को ही सैन्य तौर पर मजबूत देशों में गिना जाता है। इसके अलावा अन्य देशों को लेकर यह धारणा है कि ये रूस जैसी महाशक्ति से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से अमेरिका के नेतृत्व वाले इस संगठन का हिस्सा बने हैं। यूक्रेन भी इसका हिस्सा बनना चाहता था, जिसे लेकर विवाद छिड़ा है और रूस ने उस पर हमला ही बोल दिया है। हालांकि रूस भी खेमेबंदी की राजनीति में पीछे नहीं है और उसके नेतृत्व में भी एक संगठन है, जिसका नाम CSTO यानी कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी आर्गनाइजेशन है।