मौदहा में मुसलमानों नें बन्द रखीं अपनी दुकानें

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अवधनामा संवाददाता हिफजुर्रहमान

पीस कमेटी की बैठक में जानें वालें मौलवियों का समाज में नही कोई असर। 
मौदहा-हमीरपुर।पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा दिए गए पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब पर आपत्ति जनक बयान को लेकर जहां पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है तो वहीं मौदहा कस्बे में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपनी दूकानों को बंद कर इसका विरोध किया हालांकि बार बार होने वाली पीस कमेटी की बैठक मात्र औपचारिकता बनकर रह गई और बार बार होने वाली बैठक भी बेनतीजा इसलिए रही कि पुलिस ने जिन लोगों को पीस कमेटी में धर्म व समुदाय का ठेकेदार बनाकर रखा है उनकी बात समाज और समुदाय के लोगों द्वारा कितनी मानी जाती है इसकी पोल भी खुल गई।
      बीजेपी की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा टाईम्स नाऊ नवभारत चैनल पर एक डिबेट के दौरान इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब पर एक आपत्ति जनक टिप्पणी की थी जिसके समर्थन में दिल्ली बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता नवीन जिंदल ने  भी ट्वीट किया था तभी से मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा नूपुर शर्मा पर कठोर कार्यवाही की मांग की थी और इसी को लेकर पिछले जुमे को कानपुर में फसाद फूट पड़ा और पत्थरबाजी की घटना हुई थी।तभी से प्रशासन कस्बे में हुई पिछली घटनाओं को लेकर बहुत ही सतर्क स्थिति पर आ गया था और बारबार दोनों समुदाय के लोगों के साथ ताबड़तोड़ बैठकें शुरू कर दी थी।एक हफ्ते में कई बार शान्ती समिति की बैठक आयोजित की गयी। इसी बीच सोशल मीडिया पर जुमे के दिन भारत बंद की चर्चा को लेकर जिला प्रशासन सतर्क हो गया।लेकिन शुक्रवार की सुबह से ही कस्बे के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपनी दूकानों को नहीं खोला, हालांकि इस बीच कुछ समाज के जिम्मेदार लोगों द्वारा दूकानों को खोलने की अपील की गई थी लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उसे भी नकार दिया।
     सबसे बड़ी बात यह है कि पीस कमेटी में बुलाए जाने वाले कथित धर्म गुरुओं को पुलिस ने जरूर धर्म का ठेकेदार मान लिया है लेकिन इनकी बात को मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा कितना पालन किया जाता है इसके बारे में पुलिस को भी अब अहसास हो गया होगा।जबकि नौ जून की पीस कमेटी की बैठक में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई थी कि कंस विवाद के समय भी बार-बार पीस कमेटी की बैठक फेलियर साबित हो चुकी है लेकिन ऐसा लगता है मानों पुलिस को पीस कमेटी में जिम्मेदार कम चाटुकार अधिक चाहिए होते हैं इसलिए अक्सर यह मुद्दा उठाने के बाद कि पीस कमेटी में कौन लोग शामिल हैं और उनकी समाज में बात मानी भी जाती है या नहीं, इस पर कोतवाली पुलिस ने कभी पीस कमेटी के सदस्यों की सूची उजागर नहीं की है।यदि पीस कमेटी अपने काम को बखूबी निभाती तो शुक्रवार की बंदी का कोई असर नहीं होता।लेकिन शुक्रवार की बंदी पीस कमेटी की विफलता को उजागर करने के लिए काफी है।हालांकि बंद का आह्वान किस संगठन की ओर से किया गया था इसके बारे में कोई जानकारी नहीं हो सकी है।
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