Friday, April 19, 2024
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मौत की सज़ा अच्छा कदम लेकिन समाज भी निभाए जि़म्मेदारी

काज़िम रज़ा शकील 
कठुआ रेप काण्ड के बाद देश सहित पूरी दुनिया में शर्मिंदगी का सामना कर रही केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार ने आज भले
ही कैबिनेट में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को अदालतों से मौत की सजा देने संबंधी एक अध्यादेश की शनिवार को मंजूरी दे दी है सभी रेप केसों की जांच दो महीने के भीतर अनिवार्य तौर पर पूरी करनी होगी। यह अच्छा कदम माना जा सकता है  लेकिन इसमें सामाजिक जि़म्मेदारी एक बड़ा रोड़ा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस कानून की मांग पहले की थी कि इसमें मौत की सज़ा का प्रावधान किया जाए।
सिर्फ बारह साल से कम की बच्चियों के साथ दुष्कर्म पर ही नहीं बल्कि किसी भी उम्र की महिला के साथ दुष्कर्म हो उसके दोषी को सज़ाए मौत ही होना चाहिए।  इस्लाम धर्म में दुष्कर्म करने वाले की सज़ा मौत ही है चाहे वह कोई हो सज़ा मौत की ही मिलेगी कई मुस्लिम देशों में ही नहीं बल्कि चीन ,उत्तरी कोरिया ,संयक्त राष्ट्र अरब समेत कई ऐसे देश हैं जहां पर रेप के केस सज़ाए मौत के मामले में देर नहीं की जाती जितनी जल्दी हो सके केस पर कार्रवाई कर दी जाती। ज़रूरी है हमारे यहाँ भी बलात्कार में मामले पर फैसला जल्द से जल्द हो ताकि  दोषी को मिली सज़ा लोग याद रख सके उससे दरें लेकिन इसके साथ ही ज़रूरी है निष्पक्ष जाँच होना। बात यह है कि मौत की सज़ा का कानून दफा 302 में पहले से ही मौजूद है लेकिन क्या क़त्ल के मामले मुल्क में खत्म हो गए नहीं। इसकी साफ़ वजह है ऊंची पहुंच, दूसरी रिश्वतखोरी और तीसरी समाज की गैर जि़म्मेदारी। अब यही कुछ आज के अध्यादेश पर भी नजऱ आता है। क्या मौत की सज़ा के प्रावधान से अब 12 साल से कम की बच्चियों के साथ दुष्कर्म नहीं होगा यह एक सवाल है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक कठुआ मामले में रोज़ कोई न कोई नया मोड़ भी आता दिख रहा है जहां यह रिपोर्ट आयी की आसिफा के साथ बलात्कार की पुष्टि नहीं वहीँ आज दिल्ली की फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट भी चर्चा में आ गयी की मंदिर में खून के जो धब्बे मिले हैं वह पीड़िता के ही हैं अब तो साफ़ हो गया कि मंदिर में बच्ची के साथ बलात्कार हुआ।  कौन है जो बार बार खबर का रुख मोड़ने की कोशिश करता है।  कभी कभी इसको मज़हब के साथ मोड़ दिया जाता है कहीं हिन्दू मुस्लिम होने लगता है तो कहीं पार्टी बंदी।  उन्नाव में तो दोनों पक्ष हिन्दू ही हैं।  कहीं पर आज तक मुसलामनों ने नहीं कहा कई  मंदिर में रेप हुआ तो मंदिर में कोई तोड़फोड़ हो कहीं इसपर मज़हबी भेदभाव का इज़हार नहीं किया गया जिस तरह इसमें समानजी ज़िम्मेदारी निभाई गयी वैसे ही ज़रूरी है सज़ा दिलाने में सभी एक साथ होकर समाजी ज़िम्मेदारी निभाए तब तो अध्यादेश का कोई मक़सद है वरना सब एक खानापूर्ति ही साबित होगी
समाज को खुद इस मामले में आगे आना होगा कठुआ काण्ड ने समाज के नागरिकों की आँखें खोलने का काम किया लेकिन मैं कहूंगा सबकी आँखें नहीं खुली। अगर सबकी आँखें खुली होती तो जम्मू कश्मीर में भाजपा के मंत्री इस्तीफा न देते बल्कि सरकार बर्खास्त होती। आरोपियों के समर्थन में प्रदर्शन, पुलिस पर दबाव, रिपोर्ट में तब्दीली फिर भी समाज अपनी जिम्मेदारी से भागता रहा। इंतजार इस बात का होता है कि कोई आगे बढ़े। कुछ तो यह समझते हैं कि कौन पुलिस और अदालत के चक्कर में पड़े। पुलिस, डॉक्टर, अधिकारी और न्यायाधीश व राजनेता भी समाज का ही हिस्सा हैं। अगर न्यायलय यह पूछे की इस काण्ड से आपका क्या ताल्लुक है तो कौन अदालत का दरवाज़ा खटखटाएगा। अगर मंत्री कहे यह हमारी पार्टी का समर्थक है और पुलिस आरोपित को इज़्ज़त बख्शे तो फरियाद किससे की जाए। डॉक्टर कहे की पेट की दर्द की शिकायत पर इलाज के लिए भर्ती कराया गया था और मौत हो गयी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में निकले की मार खाने की वजह से आंतें फट गयी तो भगवान का रूप कहे जाने वाले डॉक्टर पर विश्वास कैसे करें। ज़रूरी है सख्त कानून के साथ समाज के लोगों की जि़म्मेदारी की आरोपियों की हिमायत करने वालों के खिलाफ भी सख्त सज़ा का प्रवधान हो।  ताज्जुब है कि संयुक्त राष्ट्र तक में हमारे मुल्क में हो रहे बलात्कार की आवाज़ उठती है और हमारा प्रधानमंत्री का एक बयान तक नहीं आता। क्या समाज के प्रति उनकी संवैधानिक और सामाजिक जि़म्मेदारी नहीं है। किसी कानून के सख्ती से लागू होने के लिए समाज के लोग अपनी जि़म्मेदारी निभाए।
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