नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी की सजा को निलंबित कर दिया है और उसे जमानत दे दी है। दरअसल, आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और 11 साल से अधिक समय तक जेल में रखा था।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और पंकज मिथल की पीठ ने आदेश दिया कि दोषी दिनेश उर्फ पॉल डैनियल खाजेकर को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा अपील का अंतिम निपटारा होने तक जमानत पर रिहा किया जाए। दिनेश को 29 अक्टूबर, 2011 को गिरफ्तार किया गया था, जब वह 20 साल का था। दरअसल, आरोपी और अन्य लोगों के बीच हाथापाई के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसके लिए उसे सजा सुनाई गई थी। दोषी के वकील के मुताबिक, वह वर्तमान में 32 साल का है और उनकी अपील पिछले छह सालों से उच्च न्यायालय में लंबित है।
हाई कोर्ट ने सजा निलंबित करने से किया इनकार
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 7 फरवरी के अपने आदेश में दोषी की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया था। उच्च न्यायालय को अपीलकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 389 के तहत राहत देनी चाहिए थी।
शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर के अपने आदेश में कहा, “तदनुसार, अपीलकर्ता (दिनेश) को उच्च न्यायालय में अपील का अंतिम निपटान होने तक जमानत मिल जाएगी।” सीआरपीसी की धारा 389 अदालत को उसकी सजा को निलंबित करने की अनुमति देती है। आरोपी की अपील की सुनवाई लंबित है और उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने खाजेकर को जमानत की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया और कहा कि उन्हें उचित नियमों और शर्तों पर जमानत दी जाएगी। दिनेश की ओर से पेश वकील सना रईस खान ने तर्क दिया कि मामले में तीन इच्छुक चश्मदीद गवाह हैं और किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की गई। हालांकि, अपराध कथित तौर पर सार्वजनिक स्थान पर हुआ था।
खान ने प्रस्तुत किया कि दो चश्मदीदों ने अपनी जिरह में बताया है कि जब वे घटनास्थल पर पहुंचे, तो उन्होंने मृतक को खून से लथपथ देखा, जो इस तथ्य को स्थापित करता है कि उन्होंने घटना नहीं देखी थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, तुषार मोरे की शिकायत पर 29 अक्टूबर, 2011 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी कि पुणे में गणेश लॉटरी सेंटर में काम करने वाले उनके भाई तन्मय मोरे की कथित तौर पर दिनेश और अन्य के साथ झड़प में मौत हो गई थी।