बहुदलीय लोक तात्रिक व्यवस्था

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

भारतीय संविधान की परिकल्पना बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की है। हमारे संविधान को विश्व में बडी इज्जत के साथ देखा जाता है। हमारे संविधान से बहुत से देश राजनैतिक हस्तियां, समाजसेवी संस्थाये और समाज सेवक प्रेरणा लेतो है, उसके नीतियां को आगे रख अपना आदर्श बनाते है। पर कहावत है न घर का जोगी जोगड़ है। आन गांव का सिद्ध देश में संविधान की हालत कुछ ऐसी है। सरकार तो संविधान के अनुरूप चल रही है, संविधान की धारणाओं के अनुसार नीतियां बना रही है। कार्यान्वयन को सम्बन्धित विभागो को सौप रही है। अधिकारी और कर्मचारी योजनाओं को जमीन पर उतारने की कोशिश में लगे हुये है।
नेताओ की भूमिकाओ से बात शुरू करते है। पहले तो गिनती की पार्टियां को छोड़ कर बाकी पार्टियां अपने खानदान और रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने में लगे है। संकीर्ण क्षेत्रवाद में लिप्त है उन्हें राष्ट्रीय स्तर या राष्ट्र से कोई संरोकार नहीं है न उसके प्रति जिम्मेदारी समझते है। देश की आजादी की लड़ाई में गिनी चुनी पार्टियां ही थी। जिनका एक सूत्रीय कार्य देश की आजादी दिलाना था। इसके लिये लोगों ने बेमिसाल कुर्बानियां दी। आजादी के बाद सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने एक क्षत्र राज्य किया। कांग्रेस के पन्डित नेहरू लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे है। उस समय कांग्रेस में एक से एक योग्य नेता थे जिन्होंने अपने कार्य को बहुत प्रभावी ढंग से निभाया है। पन्डित नेहरू की योग्यता इसी से समझा जा सकता है कि भारत की पूरी व्यवस्था उन्ही की परिकल्पना है। संघीय राज्य व्यवस्था, केन्द्र का रोल, राज्य केन्द्र का सम्बन्ध, बहुदलीय लोकतन्त्र सब उनकी सोच के अगं है जिसे उस समय लाहोरसेशन में पास कराने के लिये लिखा था और उसे पास भी करवाया था। तब जिन्ना राष्ट्रवादी सोच के नेता थे उन्होंने भी इसका अनुमोदन किया था। जिन्ना बाद में अलगवादी नेता बने। क्योंकि उन्हें लगा हिन्दुबहुल देश में उनकी अहमियत उनकी आशा के अनुरूप नहीं है। चूकि गांधी जी पहले दक्षिण अफ्रिका गये बाद में हिन्दुस्तान आये तब तक जिन्ना राष्ट्रवादी सोचवाले नेता बन स्थापित हो चुके थे। वह जितने बुद्धीमान थे उतने ही अहमवादी थे। गाधी जी भारत आने पर भारत की मानस पर छा गये।
हर बात पर गांधी की राय को अहमियत दी जाने लगी। जिन्ना के अहम को ठेस लगा। वह साम्प्रदायिक नेता बन पाकिस्तान की मांग पर उतर आये।
थोड़ा विषयान्तर हो गया। पन्डित नेहरू का प्रधानमंत्री का काल शानदार रहा सिर्फ विश्वास से चीनी हमले ने उनके सम्मान को ठेस तो लगाया उससे ज्यादा उनके दिल का लगाया। उसी सोच में लकवाग्रस्त हो संसार से कूच कर गये। पन्डित नेहरू के बाद परिवारवाद ने उनके परिवार को जकड़ लिया। इन्द्रागांधी फिर राजीव गांधी, फिर डीफैवटो प्रधानमंत्री सोनिया गांधी, डीज्योर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राज्य रोहण की कोशिश जो अब तक चल रही है राहुल के लिये
इस वंशवाद से प्रेरणा लेकर दो एक दलों को छोड़कर बाकी सभी दल परिवारवाद और क्षेत्रवाद की संकीर्ण भंवर में फंस गये है और उसी में लिप्त हो दक्षिण के सरकारों को देखिये किस कदर परिवारवाद हावी है। इस समय जो लोग सत्ता में नहीं है पर राजनीति में है वे भी अपने परिवार को ही बढ़ाने में लगे हुये है। विकास के राह ने परिवारवाद सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। गरीब व्यक्ति के सशक्तीकरण की संविधान की भावना कहां दिख रही है। जो जिस हैसियत में है उसी हैसियत में रहकर परिवार पर ही ध्यान केन्द्रित किये है। आज के युवा नेताओं पर गौर करे तो पायेगे अधिकतर परिवार की देन है। अपने बल पर अपने कार्य के बल पर उगलियो पर गिनने भर के लोग है जो उच्च या महत्वपूर्ण पदो पर है। परिवारवाद से प्रतिभाओं का असमय मौत हो जाती है विकास भी अवरूद्ध हो जाता है। परिवाद जो सत्ता स्वार्थ की देन है में गरीब गरीब होते चले गये आदिवासी, पिछडा वर्ग, दलित, महिलाये आजादी के लाभ से वन्चित है। हालाकि सरकार इनके लिये आरक्षण के जरिये प्रभावी योजनायें लाती रही है। पर उनके असर इन पर इक्का दुक्का देखने को मिलता है। हालाकि ये लोग पहले की अपेक्षा जागरूक हो गये है, इनमें मजबूती भी आई है।
मौजूदा सरकार की अच्छाइयों और उपलब्धियों को इस दिशा मेें नफारा नहीं जा सकता। पहले तो मुख्यपार्टी में परिवारवाद नहीं है। आजादी के 70 साल बाद तीन चौथाई जनता को पास अपना बैंक एकाडन्ट नही था सकारगरी महिलाओं के पास गैस सिलिन्डर नहीं मिल सकता गरीबों के लिये कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं था। गरीबों को पक्का घर नही था।
इन्ही सब बातों को देख वर्तमान सरकार ने चुनाव प्रक्रिया में गरीबों के बैक एकाउन्ट खुलवाये गरीब महिलाओं के घर गैस सिलिन्डर पहुचाये, गरीबों के लिये स्वस्थ्य बीमा बनाया और निःशुल्क उपचार की व्यवस्था की है। प्रधानमंत्री आवास के अन्तर्गत पक्का घर मुहैया करवाया। गरीबों को मुफ्त अनाज दिलवाया। बहुत सी बाते लोकहित की है जो अगर परिवारवादी सरकार होती नही हो पाती। लोकतन्त्र केबल मुफ्त का उपहार बाटने से मजबूत नहीं बनता है। बहुदलीय लोकतन्त्र तभी सफल और मजबूत होगा जब राजनीति परिवारवाद की जकड़न से बाहर निकलेगा। जब प्रतिभा को उचित अवसर मिलेगा।

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