Special News | उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मंगलवार को चुप ताजिया का जुलूस अज़ादारों की नाम आँखों के साथ निकाला गया। हजरत इमाम हुसैन के गम के आख़िरी दिन यानि 8 रबीउल अव्वल को इमामबाड़ा नाजिम साहेब से चुप ताजिये का जुलूस अकीदत और एहतराम के साथ गमगीन माहौल में निकाला गया।
दरअसल जिस तरह से शाही जरी के जुलूस को मोहर्रम का आगाज माना जाता है। उसी तरह से चुप ताजिये को मुहर्रम के खत्म होने का ऐलान माना जाता है। चुप ताजिये का जुलूस सुबह की नमाज़ के बाद नाजिम साहब के इमामबाड़े से शुरू होता हुआ तय शुदा रास्तों से होता हुआ रौज़ा-ए-काजमैन पहुंच कर समाप्त होता है। जुलूस में शामिल अजादार ज़ियारत करते नम आंखे लिए चल रहे थे।
जुलूस कर्बला के 72 शहीदों की याद में 2 महीने 8 दिन तक मनाए जाने वाले मुहर्रम और देर राज तक नौहाख्वानी व सीनाजनी के बाद थम जाता है ।
चुप ताजिये का जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट, नखास, तुरियागंज, बालदा, गिरधारा सिंह कॉलेज होता हुआ रौजा-ए-काजमैन पहुंचता है । इसके बाद मौलाना ऐजाज़ हुसैन मजलिस को ख़िताब करते है। मातमी अंजुमने नौहा ख्वानी व सीना ज़नी करके मौला हुसैन अस को अलविदा कहती है और वक़्त के इमाम को उनके वालिद मोहतरम इमाम हसन अस्करी अस की शाहदत का पुरसा देते हैं |
आठवीं रबीउल अव्वल को अय्याम-ए-अजा (सवा दो महीना) के आखिरी दिन निकलने वाले चुप ताजिए के जुलूस के बाद नोहाख्वानी का सिलसिला शुरू होता है ।
जोहर की नमाज बाद शहर की करीब 250 मातमी अंजुमन अपने-अपने अलम मुबारक के साथ नौहाख्वानी व सीनाजनी करती है। रौजा-ए-काजमैन से अलम के साथ अंजुमन कर्बला दियानतुद्दौला बहादुर पहुंचकर मातम व गिरया करती है । यह सिलसिला सुबह की नमाज़ तक जारी रहता है । अलविदाई मजलिस के बाद गम का यह दौर अगले साल तक के लिए थम जाता है | लो अहले अज़ा जाता है मेहमान हमारा-मेहमान हमारा