बारिश में घिसट रही मनरेगा, बकाया 54करोड मैटेरियल पेमेंट की ग्रांट का इंतजार कर रहे ग्राम प्रधान

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230ग्राम पंचायतों में नहीं हो रहे काम

मनरेगा में भुगतान प्रक्रिया और नियमों में बदलाव का कोई लाभ नहीं दिखता,न भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा और न रोजगार की मांग बढ़ रही

मार्केट रेट से काफी कम है मजदूरी, शहरों की तरफ पलायन कर रहे ग्रामीण अंचल के मजदूर

कृपया मनरेगा का लोगो लगाएं

बारिश के मौसम में मनरेगा घिसट रही है। जिले की दो सौ तीस ग्राम पंचायतों में मनरेगा के काम ठप है। राज्य निर्वाचन आयोग की ओर पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण कार्यक्रम गुरुवार को शुरू हो रहा है। ग्राम प्रधान मनरेगा के अन्तर्गत मैटेरियल पेमेंट की ग्रांट जारी होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। पिछले तीन वित्तीय वर्षों में 53.34 करोड़ रुपए का मैटेरियल पेमेंट बकाया है।

बकाया भुगतान न होने के कारण ग्राम प्रधानों ने पक्के काम से अपने हाथ पीछे कर लिए हैं।कई ग्राम पंचायतों में माडल शाप और आंगनबाड़ी केंद्रों का निर्माण अधूरा पड़ा हुआ है। मनरेगा को लागू करते समय सरकार की मंशा ग्रामीण अंचल के मजदूरों को रोजगार देकर पलायन रोकना था। शुरुआती दौर में लगभग पांच साल तक मनरेगा गांवों में तेजी से चली।

मजदूरों को समय से मजदूरी के भुगतान और परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए कार्यस्थलों पर ही सोशल आडिट होता था। भुगतान बहुत देर से नहीं होते थे। पिछले दस सालों से साल दर साल भ्रष्टाचार पर अंकुश को कई बड़े बदलाव किए गए हैं। ईएमएस सिस्टम से भुगतान किया जा रहा है।

मनरेगा की मजदूरी श्रमिकों के खाते में सीधे भेजी जाती है, मैटेरियल पेमेंट भी सीधे फर्म के एकाउंट में होता है। इतना सब कुछ होने के बावजूद न तो रोजगार की मांग बढ़ रही है और न ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लग पा रहा है। सूत्रों का कहना है कि परियोजनाओं को वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति तब तक नहीं मिलती जब तक ब्लाक कार्यालय से विकास भवन तक फाइलों में पंख नहीं लग जाते।

ई मास्टर रोल जिनको जारी किए जाते हैं, उनमें से आधे से अधिक लेबर काम पर नहीं जाते, फिफ्टी, फिफ्टी के फार्मूले पर केवल पेमेंट लेते हैं।

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