सार्थक सहमति

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एस.एन.वर्मा

काप 27 बैठक में जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे गरीब देशों की मदद के लिये लास एन्ड डैमेज फन्ड बनाने के लिये विकिसित देश आगे आये और सहमति जताये। यह जलवायु परिवर्तन की त्रासदी से बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालाकि अभी इसे जमीन पर उतारने के लिये कई अवरोधो को पार करने की जरूरत है। पहले भी अमीर देशो ने गरीब देशो को मदद देने का वादा किया था पर वादा अभी तक वादा ही बना हुआ है। चूकि जलवायु परिवर्तन की वजह से इस समय कई देश भीषण आपदा जैसे बाढ़ सूखा भयानक गर्मी जैसी आपदा झेल रहे है उससे होने वाली तबाही को रोकने के लिये अमीर देशों पर नैतिक बोझ बनता है कि वे अगि आये क्योंकि वे जिस तरह के साधनों का अपनी समृद्धि के लिये इस्तेमाल कर रहे है वह जलवायु परिवर्तन से हो सकने वाले विनाश को गति दे रहे है गरीब देशों के लिये वह जानलेवा साबित हो रहा है। गरीब देश संसाधनों की कमी की वजह से वैकल्पिक उर्जा का जो अत्याधिक मंहगी बैठती है उसका उपयोग नही कर पाते है।
जलवायु परिवर्तन का अभिशाप झेल रहा पूर्वी अफ्रीका लगातार तीन साल से सूखे से त्रस्त है। पाकिस्तान और नाइजेरिया में भीषण बाढ़ जलवायु परिवर्तन की उपज है। अमीर देशो पिछले 30 सालो से अमीर और औद्योगिक देशों से गरीब देश हर्जाने की मांग करते आ रहे है। इसे प्राप्त करने में कई कठिनाईयों से रूबरू होना पड़ेगा। और उन्हें दूर करना पड़ेगा।
अभी तो एक कमेटी बनाने की बात तय हुई है। कमेटी में 24 देशों कें प्रतिनिधि होगे। अभी फन्ड का स्वरूप भी तय होना है जो शायद अगली बैठक में तय हो सके। इस कोष के लिये कौन कौन से देश और वित्तीय संस्थान सहयोग करने के लिये मदद कौन कौन से देश चयनित होगे इसे भी तय होना है। इन सब बातों के बावजूद गरीब देशो को अमीर देशों द्वारा दिये जाने पर सहमति बनना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी। किसी बड़े काम को जमीन पर उतारने के लिये सपना देखना जरूरी होता है।
कोष देने वालो देशो में अमेरिका और योरोपीय संघ चीन और साउदी अरब जैसे देशों को भी शामिल करना चाहते है। जो इस कोष में योगदान करे। इस पर सहमति बनने में कठिनाई आ सकती है।
यह भी गौर करने की बात है कि वार्मिंग से होने वाले नुकसान पर क्षतिपूर्ति देने पर तो सहमति बनी पर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जो सारी परेशानियों की वजह है उस पर कोई प्रगति नही हुई है। भारत सहित 80 देश चाहते थे कोयला ही नही जीवाश्म ईधन जैसे कच्चा तेल और गैस आदि का ईधन के रूप इस्तेमाल होने का चरणबद्ध तरीके से रोकने के लिये भी चर्चा हो। पर इसका विरोध कनाडा, चीन, साऊदी अरब देशो की ओर से विरोध हुआ और बात आगे नहीं बढ़ पाई। एक बात यह भी ध्यान में रखनी है कि काप 27 में सर्व सम्मति से काम होता है इसलिये सभी मुल्को को बोर्ड पर आना होगा।
काप 27 के विवरण के अनुसार जिस तरह की कार्य शैली को ब्योहार में लाने की बात हो रही है उसके लिये 4-6 ट्रिलियन डालर की हर साल जरूरत होगी। इस साल ग्लोबल स्लोडाउन चल रहा है। वर्केबुल फाइनेसिंग मेकनिज्म बनाना आसान नही होगा। पर इतना तो परिलक्षित हुआ कि काप 27 में सभी ने महसूस किया है अब ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन को लेकर कुछ ज़रूरी कदम उठाना निहायत जरूरी हो गया है। अब सभी देशों को एकमत होकर सकारात्मक कदम शुरू कर देना चाहिये। वर्ना क्या पछताये होत है जब चिड़िया चुग गई खेत।

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