एस.एन.वर्मा
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जमीन पर पांव रखकर आसमान की ओर सर उठाकर सपना देखना कोई बुरी बात नहीं है। यह व्यवहारिक भी है। आदमी जिस क्षेत्र में रहता है उस क्षेत्र में शीर्ष पर जाने की अभिलाषा रखना आदमी की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। शर्त यही है कि उसमें योग्यता भी हो और व्योहारिकता भी हो कोरा सपना हंसी का पात्र बनाता है। मायावती में सबकुछ है पर हालात पक्ष में नहीं है। उनके पास में दल संख्या नहीं है। जो पहली शर्त है। उनकी पार्टी की उपलब्धियां भी निराशजनक है। हर पार्टी से कभी न कभी समझौता कर चुनाव लड़ चुकी है। सरकार बना चुकी है। मिली जुली सरकार में अपने शर्तो पर कायम नहीं रही। भाजपा के साथ उनका करार था। बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनने का। अपने बारी में तो पहले मुख्यमंत्री बन गई पर भाजपा की जब बारी आई तो मुकर गई और सरकार भंग कर दी। उनमें विश्वसनीयता का भी अभाव है। समाजवादी पार्टी के साथ भी उनका तालमेल ठीक नही रहा। कहते है समाजवादी पार्टी ने उनके हत्या का जाल बिछाया था उनसे इतना समाजवादी नेता क्षुब्ध हो गये थे। इस बीच मायावती की सक्रियता भी हर मौके पर कम नजर आयी सिर्फ बयानबाजी करती रही। उनके प्रमुख स्तम्भ धीरे-धीरे पार्टी से बाहर चले गये। सामाजिक समरसता अख्तियार कर फिर से अपने को खड़ा करने की कोशिश कर रही है पर सफल नहीं हो रही है। उनका विश्वास है कि अगर दलित, गरीब, आदिवासी, मुसलमान, पिछड़ा वर्ग कुछ ब्रहृमण यदि उनकी पार्टी से जुड़ जाये तो वे चाहे तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री, जो भी पसन्द हो बन सकती है। हालाकि उन्होंने कहा है कि वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति नहीं बनना चाहती है। उनकी पसन्द प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने की है। पर जब संसद संख्या और विधायक संख्या नगण्य है तो उनका सपना कोरा सपना ही बना रहेगा। हां दिल को बहलाने का ख्याल गालिब अच्छा है।
समाजवादी नेता सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कहना है कि हाल के विधानसभा चुनावों में मायावती ने अपने वोट बैंक भाजपा के पक्ष में हस्तान्तरित करवा दिया था। जिसके एवज में भाजपा जब वर्तमान राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति अपना कार्यकाल पूरा कर लेते है तो भाजपा मायावती को राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनवा सकती है। पहले ही बता चुका हॅॅू कि मायावती इन दोनो पदों से विरक्त है।
अब इस समय के राजनैतिक परिदृश्य और मायावती से सम्बन्धित हालातों का अवलाकेकन करे तो पता चलेगा उनके लिये सभी कुछ असम्भव बन गया है। मायावती चार बार मुख्यमंत्री रह चुके है। मौजूदा विधानसभा चुनाव में उनका केवल एक विधायक जीता। एक विधायक केबल पर कौन पार्टी उनसे समझौता कर उन्हें मुख्यमंत्री का पद सौपने को तैयार होगा। अब 2024 में लोकसभा का और 2022 में विधानसभा का चुनाव होना है। उसमें वह कौन सा करिश्मा कर पायेगी। राज्यसभा का चुनाव ग्यारह सीटो के लिये जुलाई 2022 में होना है। इसके साथ उनके वर्तमान सांसद सतीश चन्द्र मिश्रा भी निवर्तमान हो जायेगे। फिर एक विधायक के बूते पर मायावती अपना सपना कैसे पूरा कर पायेगी।
मायावती की निजी और परिवारिक स्थितियां सरकारी हस्तक्षेप हो जाये तो बड़ी भयावह हो जायेगी। मायवती भाजपा मंे शामिल हो जाय तो इसका खतरा टल सकता है। हालाकि यह एक सम्भावना है। पर राजनीति से कभी भी कुछ भी हो सकता है। मायावती इसीलिये भाजपा की आलोचना में बहुत नम्र रहती है खानापूर्ति के लिये खास मौके पर नम्र आलोचना करती है। कभी-कभी तो विपक्ष के भाजपा के खिलाफ आरोपो पर रक्षात्मक मुद्रा आख्यिार कर लेती है।
मायावती सरकार के खिलाफ किसी भी उग्रता से बचती है क्योकि उनका आर्थिक विकास बड़ा चमत्कारिक है। पहले उनके हालफनामों पर नज़र डाले। 2004 के अनुसार समपत्ति ग्यारह करोड़ की थी। 2007 में 87.27 करोड़ हो गई। 2012 के बाद के हलफनामें में बादलपुर के पैतृक सम्पत्ति और घर का जिक्र नहीं है। लुटियन जोन में एक बड़ा बगला जो तीन मकानों को जोड़कर बना है, कनाट प्लेस में ग्राउन्ड और फर्स्ट फ्लोर पर आठ हज़ार वर्ग मीटर का वाणिज्यिक सम्पत्ति, नई दिल्ली में पटेल मार्ग पर 43000 वर्गफीट की सम्पत्ति, लखनऊ में 71 हजार वर्ग मीटर पर बना घर और ग्यारह करोड़ नगदी की घोषणा है। मायावती के भाई और भाभी के सम्पत्ति की बढ़ोत्तरी पर नज़र डाले तो असीम बढ़ोत्तरी दिखेगी। इनका 400 करोड़ कीमत का प्लाट ज़ब्त किया जा चुका है। इनका सात एकड़ का प्लाट जब्त करने का आदेश पारित हो चुका है।
अगर मायावती 2024 का चुनाव खुद लड़ती है तो उन्हें अपने सम्पत्तियों का हलफनामा फिर देना पड़ेगा। सम्पत्ति बढ़ी है या घटी है तभी मालुम पड़ेगा। पर यह तो तय है कि अगर सीधे प्रतिस्पर्धा में सरकार से टकराहट बढ़ती है तो उन पर मुसीबतों का पहाड़ सम्पत्तियों को लेकर टूट सकता है। फिर उनके सपनों का क्या होगा।