अवधनामा संवाददाता
लखनऊ। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी जो अपनी सबसे बड़ी तंजीम बताते हैं और उसी की अगुवाई करते हैं, को देश के 85 फीसदी अति पिछड़े दलित पसमांदा मुसलमान की भी फिक्र करनी चाहिए, बल्कि जिम्मेदारी ले लेनी चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस समाज की फिक्र करके उनके हक़ हुकूक की बात करके वह देश हित समाज हित और कौम हित में दूरदर्शी मिसाल पेश कर सकते हैं।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही है। वह कहते हैं कि देश को आजाद कराने व आजादी के संघर्ष में जमीयत उलेमा ए हिन्द की अहम भूमिका रही है। यह बात अलग है कि उनका लगाव, समर्थन व झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक रहा। यह वही कांग्रेस है, जिसने आर्टिकल 341 के जरिये देश की 85 फीसदी पसमांदा आबादी के बुनियादी हक़ को पैरों तले कुचलने का काम किया। उन्हें पिछड़ा, दलित, बेरोजगार, आर्थिक रूप से विपन्न रहने दिया। यह वही पंजा छाप पार्टी है, जिसने अगड़े विदेशी मुस्लिम चेहरों का साथ कर इतने बड़े समाज को हाशिये पर रहने को मजबूर कर दिया। इस मुद्दे पे मदनी साहब चुप क्यों रहे कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई अब तक यह बात समझ से परे है कि आखिर इस समाज ने नेहरू वाली पार्टी का बिगाड़ा ही क्या था, जो इस तरह की कुत्सित राजनीति पसमांदा समाज के साथ की गई।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी अपनी बदनीयती का खामियाजा भुगत रही है। आज उसे परिवार संभालने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। उन्होंने मौलाना अरशद मदनी से अपील की कि वह सबसे बड़े मंच की अगुवाई करने के नाते देश की 85 फीसदी दलित पिछड़े मुसलमान की आवाज भी उठाएं। इस समाज को उनकी हमदर्दी की जरूरत भी है। मुमकिन है कि उनकी अगुवाई से ही पसमांदा समाज का भला हो, उसे नया रास्ता हासिल हो, कौम को नेतृत्व मिल सके। आखिर 85 फीसदी पसमांदा मुसलमान मूल रूप से भारतीय नागरिक हैं और उसे दिशा दिखाने वाले रहनुमा की फौरी तौर पर जरूरत भी है।और अपनी जमीयत में भी पसमांदा मुस्लिमों को अहम पदों पर हिस्सेदारी दे।
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