Friday, April 19, 2024
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19साल3000करोड़ खर्च फिर भी आ गई बाढ़

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विनय कुमार मिश्र

19साल3000करोड़ खर्च फिर भी आ गई बाढ़

गोरखपुर। हर साल बाढ़ जैसी विभीषिका से निपटने के लिए सरकार मोटी रकम खर्च करती हैं बरसात शुरु होने से पहले बाढ़ का निरीक्षण रखरखाव हेतु आवश्यक निर्देश बजट आदि की तैयारी होने लगती है। सरकार हर साल करोड़ों रुपए देती है बंधे के रखरखाव के लिए ताकि बाढ़ के समय आम जनमानस की बर्बादी और अनावश्यक हानियों को रोका जा सके मगर यह जानकर आश्चर्य और ताज्जुब होगा कि सरकार से जो धन बंधे के निर्माण रखरखाव आदि के लिए मिलते हैं उसका बंदरबांट करके जनता को मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है।
1998 के बाद गोरखपुर जिले हेतु सरकार ने 19 सालों में 3000करोड़ रूपये बंधे के निर्माण रखरखाव आदि के लिए जारी कर चुकी है लेकिन रखरखाव निर्माण के नाम पर सिर्फ तमाशा किया गया अब तक।इसका जीता जागता सबूत इस साल आयी भयंकर बाढ़ है।सरकारी तंत्र का मानना  है कि 1998 के बाढ़ के बाद बंधों को डेढ़ मीटर ऊंचा किया गया था ताकि बाढ़ से बचा जा सके लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर बंधों को डेढ़ मीटर तक ऊंचा किया गया तब फिर जनता बाढ़ का दंश क्यों झेली क्योंकि 1998 जैसी न बारिश हुई न1998 जैसा पानी नेपाल ने छोड़ा फिर गोरखपुर की जनता कोे बाढ़ जैसी विभिषिका से क्यों जूझना पड़ा।गोरखपुर जिले में एक तरफ बाढ़ तो एक तरफ भयंकर सूखा नजर आ रहा।इन सबके बीच अगर देखा जाए तो प्रशासन की लापरवाही सौ आने दिखती है।एक तरफ बंधा लोगों के लिए जीवन मृत्यु का रास्ता तय करता है तो दूसरी तरफ से ठेकेदारों और प्रशासनिक अधिकारियों के सोने के अंडा देने वाली मुर्गी का काम करते है ये बंधे। बुद्धिजीवियों की ऐसी मान्यता है कि प्रशासन बंधे की मरम्मत के नाम पर सिर्फ तमाशा करता है क्योंकि अगर पूरे बजट को अच्छे से बंधों पर खर्च किया जाता तो शायद ऐसी नौबत ही नहीं आती। इस बात की पुष्टि स्थानीय लोग भी करते हैं दूसरी तरफ लोगों का मानना है कि प्रशासन बाढ़ पीड़ितों के के लिए मिले बजट का पूरा का पूरा खर्च नहीं करता है और मन भर के लूट खसोट किया जाता है क्योंकि सरकार बाढ़ पीड़ितों के लिए भरपूर रकम प्रदान करती है जिसका कोई हिसाब नही होता है लेकिन यह रकम प्रशासनिक अधिकारियों के लिए कम पड़ जाती है सोचने वाली बात यह है कि बाढ़ पीड़ितों के लिए जहां सारे संस्थान लोग एकजुट होकर सहायता करने में तत्पर रहते हैं वही प्रशासन सरकारी रकम को टिकाने लगाने में व्यस्त रहता है।जो भी हो लेकिन एक बार बाढ़ पीड़ितों के दुख दर्द को तो समझ लेते साहब तो शायद ये सवाल ही न उठता।

https://www.youtube.com/watch?v=WibAR5bvXQM


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